शनिवार, 3 अक्तूबर 2015

अम्लपित्त

**अम्लपित्त***
अम्लपित्त आज के युग की अव्यवस्थित दिनचर्या की देन है. इसे Hyper Acidity या Acid Dyspepsia भी कहा जाता है. यह एक ऐसा रोग है जिससे आज बहुशः लोग ग्रस्त हैं.
जब पाचक पित्त विदग्ध व अम्लीभूत अर्थात् विकृत हो जाता है तो गले व सीने में जलन, खट्टी डकार, अरूचि, शिरःशूल, थकान, बेचैनी, वमन, मुख दुर्गंध आदि उत्पन्न करता है. इसे अम्लपित्त या एसीडिटी कहा जाता है. इस रोग के जीर्ण होने पर अन्य विकार यथा अल्सर, अल्सरेटिव कोलाइटिस, ग्रहणी, आँत्रशोथ आदि होने की भी सम्भावना बन जाती है.
अम्लपित्त का एक मुख्य कारण मन्दाग्नि है.
कारण:-
*अग्निमांद्य
*मन्दाग्नि में गरिष्ठ भोजन
*अजीर्ण में भोजन
*विदाही भोजन
*विरूद्ध भोजन
*अधिक समय तक खाली पेट रहना
*समय पर भोजन न करना
*खाना खाने के बाद तत्काल सोने की प्रवृति
*अधिक उपवास
*चाय-कॉफी, कोल्ड ड्रिंक का अति सेवन
*गुटखा, धूम्रपान, शराब आदि सेवन
*वेगधारण
*भोजन के तत्काल बाद स्नान
*रात्रि जागरण
*अनावश्यक व कैमिकल युक्त दवाईयों का प्रयोग
आदि...
आयुर्वेदानुसार अम्लपित्त दो प्रकार का होता है- ऊर्ध्वग अम्लपित्त व अधोग अम्लपित्त.
ऊर्ध्वग अम्लपित्त में कफ का अनुबंध होता है. इसमें हरा पीला पित्त युक्त वमन हो सकता है. खट्टी डकारें, गले व हृदय प्रदेश में जलन, शिरःशूल आदि लक्षण होते हैं.
अधोग अम्लपित्त में जलन, भ्रम, मूर्च्छा, पसीना, थकान, त्वचा पर चकत्ते आदि लक्षण हो सकते हैं.
चिकित्सा:-
*सर्वप्रथम कारण का त्याग करें.
*अम्ल द्रव्य-मिर्च मसाला-तैलीय भोजन न लें.
*कचौरी, समोसा, पिज्जा, मैदे के बने पदार्थ, कोल्ड ड्रिंक, खैनी-गुटखा-शराब-सिगरेट न लें.
*उचित व सादा भोजन लें.
*समय पर व पूर्ण निद्रा लें.
*चिकित्सक के परामर्श से अन्य आवश्यक निदान परिवर्जन करें.
चिकित्सा व्यवस्था:-
आयुर्वेद में अम्लपित्त की चिकित्सा हेतु कई दवाईयाँ उपलब्ध हैं-
सूतशेखर रस, लीलाविलास रस, कामदुधा रस, प्रवाल पिष्टी, प्रवाल पंचामृत, अविपत्तिकर चूर्ण, द्राक्षावलेह, नारिकेल खण्ड, कूष्माण्ड खण्ड, उशीरासव, मुलैठी चूर्ण, शतावरी चूर्ण, आदि आदि.
पथ्य:- आँवला, सेब, अनार, गुलकंद, किशमिश, परवल, करेला, लौकी, केला, दूध, धनिया, त्रिफला, शहद आदि.
अपथ्य:- दही, तिल, बैंगन, टमाटर, कुलथी, उड़द, मिर्च मसाला, खट्टी वस्तुऐं, माँसाहार आदि.
औषध उपचार:-
जीर्ण व पुरातन अम्लपित्त से परेशान रोगी यह योग बनाकर प्रयोग कर सकते हैं-
1.अविपत्तिकर चूर्ण 200 मिग्रा
आमलकी रसायन 100 मिग्रा
शतावरी चूर्ण 100 मिग्रा
सूतशेखर रस सादा 100 मिग्रा
कामदुधा रस सादा 50 मिग्रा
शंख भस्म 50 मिग्रा
प्रवाल पिष्टी 50 मिग्रा
सज्जी क्षार 50 मिग्रा
मुलैठी सत 50 मिग्रा
यह एक मात्रा है. इस अनुपात में अधिक लेकर सबको महीन पीस लें तथा 750 मिग्रा के कैप्सूल या गोली बना लें.
मात्रा:- 1 से 2 गोली/कैप्सूल सुबह शाम खाने के बाद जल से या दूध से या अर्क सौंफ से या मीठे अनार के रस से लें.
गुण व उपयोग:-
यह योग अम्लतानाशक है. अम्लस्राव को नियंत्रित करता है व आमाशय की अंतःकला को सुरक्षित रखता है. साथ ही जलन, वमन, जी मिचलाना आदि में राहत देता है.
यह योग अम्लपित्त, आमाशय व ग्रहणी व्रण, अजीर्ण, उदरवायु आदि रोगों में लाभप्रद है तथा पाचक पित्त की विकृति को दूर कर पाचन में सहायता करता है.

2.स्वर्ण सूतशेखर रस 125 mg
कामदुधा रस 250 mg
 जहर मोहरा pisti 250 mg
BD
With 
draksha avlah
10-10 gm 
 Empty stomach

Before  meal 15 mnits
अविपत्तिकर चूर्ण 2 gm
 Bd  with water

After meal

 शंख वटी 250 mg
शूलवज्रणी 250 mg
लवण भास्कर चूर्ण 1 gm
 Bd
 With water

रात्रि

Warm water

हरड़ पाक 5 gm


चिकित्सकीय परामर्श से प्रयोग करें.

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