गुरुवार, 12 नवंबर 2015

कफ रोग --चिकित्सा

कफ

       यह शरीर आयुर्वेद के मतानुसार त्रिधातु में बंटा है जब तक शरीर में त्रिधातु (बात, पित्त, कफ) समानता की स्थिति में रहत है, वह स्वस्थ रहता है। किन्तु, उनकी असामानता की स्थिति में अनेकों रोगों का जन्म होता है, इस बार हम त्रिधातु के तीसरे अंग कफ के बारे में जारकारी दे रहें हैैं। कफ चिकना, भारी, सफेद, पिच्छिल (लेसदार) मीठा तथा शीतल(ठंडा) होता हैं। विदग्ध(दूषित) होने पर इसका स्वाद नमकीन हो जाता है। कफ से सम्बन्धित तकलीफ लगभग 31 प्रतिशत लोगों को रहती है। 
 कफ के स्थान, नाम और कर्म
आमाशय में, सिर (मस्तिष्क) में, हृदय में और सन्धियों (जोड़ों) में रहकर शरीर की स्थिरता और पुष्टि को करता है। 
1- जो कफ आमाशय में अन्न को पतला करता है, उसे क्लेदन कहते हैं।
2- जो कफ मूर्धि (मस्तिष्क) में रहता है, वह ज्ञानेन्द्रियों को तृप्त और स्निग्ध करता है। इसलिए  
 उसको स्नेहन कफ कहते हैं।
3- जो कफ कण्ठ में रहकर कण्ठ मार्ग को कोमल और मुलायम रखता है तथा जिव्हा की रस ग्रन्थियों को क्रियाशील बनाता है और रस व ज्ञान की शक्ति उत्पन्न करता है,उसको रसन कफ कहते हैं।
4- हृदय में (समीपत्वेन उरःस्थित)रहने वाला कफ अपनी स्निग्धता और शीतलता से सर्वदा हृदय की रक्षा करता है। अतः उसको अवलम्बन कफ कहते हैं।
5- सन्धियों (जोड़ों) में जो कफ रहता है, वह उन्हें सदा चिकना रखकर कार्यक्षम बनाता है। उसको संश्लेष्मक कफ कहते है। 
कफ जनित रोग 
 1- तन्द्रा
 2- अति निद्रा
 3- निद्रा
 4- मुख का माधुर्य - मुख के स्वाद का मीठा होना 
 5- मुख लेप - मुख का कफ से लिप्त रहना 
 6- प्रसेतका - मुख से जल का श्राव होना
 7- श्वेत लोकन - समस्त पदार्थो का सफेद दिखना
 8- श्वेत विट्कता - पुरीष का श्वेत वर्ण होना 
 9- श्वेत मूत्रता - मूत्र के वर्ण का श्वेत होना
10- श्वेतड़वर्णता - अंगो के वर्ण का श्वेत होना
11- शैत्यता - शीत प्रतीति
12- उष्णेच्छा - उष्ण पदार्थ और उष्णता की इच्छा
13- तिक्त कामिता - कड़वे और तीखे पदार्थांे की अभिलाषा
14- मलाधिक्य - मल की अधिकता 
15- बहुमूत्रता - मूत्र का अधिक आना
16- शुक्र बहुल्यता - वीर्य की अधिकता
17- आलस्य - आलस्य अधिक आना
18- मन्द बुद्धित्व - बुद्धि की मन्दता
19- तृप्ति - भोजनेच्छा का अभाव
20- घर्घर वाक्यता - वर्णांे के स्पष्टोचारण का अभाव तथा जड़ता।
कफ प्रकोप और शमन -
मधुर (मीठा), स्निग्ध (चिकना), शीतल (ठंडा) तथा गुरु पाकी आहारों के सेवन से प्रातःकाल में भोजन करने के उपरान्त में परिश्रम न करने से श्लेष्मा (कफ) प्रकुपित होता है और उपरोक्त कारणों के विपरीत आचरण करने से शान्त होता है।
कफ प्रकृति के लक्षण- 
कफ प्रकृति मनुष्य की बुद्धि गंभीर होती है। शरीर मोटा होता है तथा केश चिकने होते हैैं। उसके शरीर में बल अधिक होता हैंे, निद्रावस्था में जलाशयों (नदी, तालाब आदि) को देखता है, अथवा उसमें तैरता है। 
कफ रोग निवारक दवायें  
1-सर्दी व जुकाम 
o-काली मिर्च का चूर्ण एक ग्राम सुबह खाली पेट पानी के साथ प्रतिदिन लेते रहने से सर्दी जुकाम की शिकायत दूर होती है। 
      o- दो लौंग कच्ची, दो लौंग भुनी हुई को पीसकर शहद में मिलाकर सुबह खाली पेट एवं रात्रि में खाने के आधा घंटे के बाद लें, कफ वाली खांसी में आराम आ जायेगा। 
2- श्वासनाशक कालीहल्दी 
कालीहल्दी को पानी में घिसकर एक चम्मच लेप बनायंे। साथ ही एक चम्मच शहद के साथ सुबह खाली पेट दवा नित्य 60 दिन खाने से दमा रोग में आराम हो जाता है।
3- कफ पतला हो तथा सूखी खांसी सही हो
शिवलिंगी, पित्त पापड़ा, जवाखार, पुराना गुड़, यह सभी बराबर भाग लेकर पीसें और जंगली बेर के बराबर गोली बनायें। एक गोली मुख में रखकर उसका दिन में दो तीन बार रस चूसंे। यह कफ को पतला करती है, जिससे कफ बाहर निकल जाता है तथा सूखी खांसी भी सही होती है।  
4- दमा रोग
20 ग्राम गौमूत्र अर्क में 20 ग्राम शहद मिलाकर प्रतिदिन सुबह खाली पेट 90 दिन तक पीने से दमा रोग में आराम हो जाता है। इसे लगातार भी लिया जा सकता है, दमा, टी.वी. हृदय रोग एवं समस्त उदर रोगों में भी लाभकारी है।
5- कुकुर खांसी
धीमी आंच में लोहे के तवे पर बेल की पत्तियों को डालकर भूनते-भूनते जला डालें। फिर उन्हें पीसकर ढक्कन बन्द डिब्बे में रख लें और दिन में तीन या चार बार सुबह, दोपहर, शाम और रात सोते समय एक माशा मात्रा में 10 ग्राम शहद के साथ चटायें, कुछ ही दिनों के सेवन से कुकुर खांसी ठीक हो जाती हैै। यह दवा हर प्रकार की खांसी में लाभ करती है।
6- गले का कफ
 पान का पत्ता 1 नग, हरड़ छोटी 1 नग, हल्दी आधा ग्राम, अजवायन 1 ग्राम, काला नमक आवश्यकतानुसार, एक गिलास पानी में डालकर पकायें आधा गिलास रहने पर गरम-गरम दिन में दो बार पियें । इससे कफ पतला होकर निकल जायेगा। रात्रि में सरसों के तेल की मालिश गले तथा छाती व पसलियांे में करें।
7- खांसी की दवा-
भूरी मिर्च 5 ग्राम, मुनक्का बीज निकला 20 ग्राम, मिश्री 20 ग्राम, छोटी पीपर 5 ग्राम तथा छोटी इलायची 5 ग्राम, इन सभी को पीसकर चने के बराबर गोली बना लें। सुबह एक गोली मुँह में डाल कर चूसें। इसी तरह दोपहर और शाम को भी चूसें। कफ ढ़ीला होकर निकल जाता है और खांसी सही हो जाती है।   
8- गला बैठना
दिन में तीन या चार बार कच्चे सुहागे की चने बराबर मात्रा मुंह में डालकर चूसें। गला निश्चित ही खुल जाता है और मधुर आवाज आने लगती है। गायकों के लिए यह औषधि अति उत्तम है।
9- श्वास 
पीपल की छाल को रविपुष्य या गुरुपुष्य के दिन सुबह न्यौता देकर तोड़ लाएं और सुखाकर रख लें। माघ पूर्णिमा को बारह बजे रात में कपिला गाय के दूध में चावल की खीर बनाकर उसमें एक चुटकी दवा डाल लें और चांदनी रात में तीन घंटे रखकर मरीज को खिलाएं श्वास रोग के लिए अत्यंत लाभकारी है

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