चिकित्सा के लिए आने वाले 100 रोगियों में से लगभग 2-4 रोगी ऐसे आ ही जाते हैं, जो शिकायत करते हैं कि कभी-कभी मैं 'कुछ' खाता/खाती हूँ तो -
● मेरा मन ख़राब होने लगता है, पेट में दर्द होने लगता है; उलटी व पतले दस्त होने लगते हैं;
● मुझे सारे शरीर में खुजली (Itching) होने लगती है व त्वचा पर चकत्ते (Urticaria) पड़ जाते हैं ;
● मेरे होंठ, मुँह, व गला एकदम सूज जाते हैं व इनमें छाले पड़ जाते हैं (Angioedema);
● मुझे बहुत कमजोरी लगाने लगती है, दिल घबराने / बैठने लगता है, और तो और साँस लेने में तक़लीफ़ होने लगती है (Anaphylaxis)।
● मुझे सारे शरीर में खुजली (Itching) होने लगती है व त्वचा पर चकत्ते (Urticaria) पड़ जाते हैं ;
● मेरे होंठ, मुँह, व गला एकदम सूज जाते हैं व इनमें छाले पड़ जाते हैं (Angioedema);
● मुझे बहुत कमजोरी लगाने लगती है, दिल घबराने / बैठने लगता है, और तो और साँस लेने में तक़लीफ़ होने लगती है (Anaphylaxis)।
अक्सर ऐसा मूंगफली, दूध, अंडे, सोयाबीन, मछली आदि के खाने के बाद होता है। बहुत से लोगों को बाज़ार में उपलब्ध कई प्रकार के तथाकथित 'फ्रैश फ्रूट ज्यूस' भी ऐसा करते हैं, जहाँ वास्तविक दोषी इनमें रहने वाला बैन्जोइक एसिड रहता है।
आयुर्वेद इस प्रकार के आहार द्रव्यों को उस व्यक्ति विशेष के लिए असात्म्य मानता है तथा इनसे होने वाले रोगों / कष्टों को असात्म्यता (Hypersensitivity reactions) कहता है।
असात्म्यता (Hypersensitivity reactions) असात्म्य आहार द्रव्य के सेवन करने के तत्काल बाद (Immediate) भी हो सकती है, अथवा कुछ अन्तराल (Delayed) के बाद भी।
*सम्प्राप्ति (Etio-pathogenesis):*
असात्म्यता मुख्यतः वातज रोग है। असात्म्य आहार-द्रव्य के देह के साथ सम्पर्क में आने के बाद वात-दोष (Neuro-endocrine system) क्रियाशील (Activate / stimulate) हो जाता है व असात्म्य आहार-द्रव्य को देह के लिए हानिकारक मानते हुए, इसे एक आपातकालीन स्थिति मानता है, व इसका प्रतिकार करने के लिए कफ / ओज (Defence system) व पित्त (Enzyme system) को क्रियाशील करते हुए, कई प्रकार की प्रक्रियाओं (Mechanisms) व परिवर्तित क्रियाओं (Altered functions) द्वारा इस स्थिति का मुकाबला करने का प्रयास करता है।
रोगी को होने वाले कष्ट बहुधा इन्हीं नवीन प्रक्रियाओं (Mechanisms) व परिवर्तित क्रियाओं (Altered functions) के परिणामस्वरूप होते हैं, जिनका उद्देश्य मुख्य रूप से रोगी की सुरक्षा करना ही होता है।
*चिकित्सा (Management):*
निम्न औषधियाँ / औषध-योग अपने वातशामक, वात-कफशामक, व वात-पित्तशामक कर्मों से आहार असात्म्यता-जन्य रोगों की चिकित्सा में लाभकारी सिद्ध हो सकते हैं; चिकित्सक यथावश्यक इनका युक्तिपूर्वक उपयोग करे -
*I. असात्म्य हर / आमदोषहर औषधियाँ (Anti-allergic drugs):*
● शटी, मधुयष्टी, ज़हरमोहरा, यशद
● दुग्धिका, कण्टकारी, हरिद्रा, शिरीष इत्यादि।
● दुग्धिका, कण्टकारी, हरिद्रा, शिरीष इत्यादि।
*II. दीपन-पाचन-संग्राही औषधियाँ (G.I. Correctives):*
● अतिविषा, पञ्चामृत पर्पटी, शंख, पिप्पली
● शुण्ठी, मरिच, मुस्तक इत्यादि।
● शुण्ठी, मरिच, मुस्तक इत्यादि।
*III. Anti-inflammatory drugs (शोथहर औषधियाँ):*
● शल्लकी, एरण्डमूल, जातीफल
● गुग्गुलु, दशमूल, रास्ना, मधुयष्टी इत्यादि।
● गुग्गुलु, दशमूल, रास्ना, मधुयष्टी इत्यादि।
*IV. रसायन औषधियाँ (Immuno-modulators):*
● शिलाजतु, आमलकी, मुक्ताशुक्ति, अभ्रक, यशद
● अश्वगंधा, गुडूची, हरीतकी, हरिद्रा, कटुकी, भल्लातक इत्यादि।
● अश्वगंधा, गुडूची, हरीतकी, हरिद्रा, कटुकी, भल्लातक इत्यादि।
*V. प्राणवर्धक औषधियाँ (Life-saving drugs):*
● स्वर्ण (मकरध्वज, हेमगर्भपोट्टली रस, याकूति रसायन, बृ. कस्तूरीभैरव रस, जवाहरमोहरा);
● अर्जुन, अकीक, ज़हरमोहरा, गण्डीर, वनपलाण्डू
● नागरबेल, कर्पूर, हिंगु इत्यादि।
● अर्जुन, अकीक, ज़हरमोहरा, गण्डीर, वनपलाण्डू
● नागरबेल, कर्पूर, हिंगु इत्यादि।
*VI. असात्म्य आहार परिवर्जनम् (Eliminate the offending foods)*
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें