सोमवार, 21 मार्च 2016

किस-किस चीज को साथ नहीं खाना चाहिए और क्यों, जानते हैं

किस-किस चीज को साथ नहीं खाना चाहिए और क्यों, जानते हैं :----

दूध के साथ दही लें या नहीं?
दूध और दही दोनों की तासीर अलग होती है। दही एक खमीर वाली चीज है। दोनों को मिक्स करने से बिना खमीर वाला खाना (दूध) खराब हो जाता है। साथ ही, एसिडिटी बढ़ती है और गैस, अपच व उलटी हो सकती है। इसी तरह दूध के साथ अगर संतरे का जूस लेंगे तो भी पेट में खमीर बनेगा। अगर दोनों को खाना ही है तो दोनों के बीच घंटे-डेढ़ घंटे का फर्क होना चाहिए क्योंकि खाना पचने में कम-से-कम इतनी देर तो लगती ही है।

दूध के साथ तला-भुना और नमकीन खाएं या नहीं?
दूध में मिनरल और विटामिंस के अलावा लैक्टोस शुगर और प्रोटीन होते हैं। दूध एक एनिमल प्रोटीन है और उसके साथ ज्यादा मिक्सिंग करेंगे तो रिएक्शन हो सकते हैं। फिर नमक मिलने से मिल्क प्रोटींस जम जाते हैं और पोषण कम हो जाता है। अगर लंबे समय तक ऐसा किया जाए तो स्किन की बीमारियां हो सकती हैं।

सोने से पहले दूध पीना चाहिए या नहीं?
आयुर्वेद के मुताबिक नींद शरीर के कफ दोष से प्रभावित होती है। दूध अपने भारीपन, मिठास और ठंडे मिजाज के कारण कफ प्रवृत्ति को बढ़ाकर नींद लाने में सहायक होता है। मॉडर्न साइंस में भी माना जाता है कि दूध नींद लाने में मददगार होता है। इससे सेरोटोनिन हॉर्मोन भी निकलता है, जो दिमाग को शांत करने में मदद करता है। वैसे, दूध अपने आप में पूरा आहार है, जिसमें कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन और कैल्शियम होते हैं। इसे अकेले पीना ही बेहतर है। साथ में बिस्किट, रस्क, बादाम या ब्रेड ले सकते हैं, लेकिन भारी खाना खाने से दूध के गुण शरीर में समा नहीं पाते।

दूध में पत्ती या अदरक आदि मिलाने से सिर्फ स्वाद बढ़ता है, उसका मिजाज नहीं बदलता। वैसे, टोंड दूध को उबालकर पीना, खीर बनाकर या दलिया में मिलाकर लेना और भी फायदेमंद है। बहुत ठंडे या गर्म दूध की बजाय गुनगुना या कमरे के तापमान के बराबर दूध पीना बेहतर है।

नोट : अक्सर लोग मानते हैं कि सर्जरी या टांके आदि के बाद दूध नहीं लेना चाहिए क्योंकि इससे पस पड़ सकती है, यह गलतफहमी है। दूध में मौजूद प्रोटीन शरीर की टूट-फूट को जल्दी भरने में मदद करते हैं। दूध दिन भर में कभी भी ले सकते हैं। सोने से कम-से-कम एक घंटे पहले लें। दूध और डिनर में भी एक घंटे का अंतर रखें।

खाने के साथ छाछ लें या नहीं?
छाछ बेहतरीन ड्रिंक या अडिशनल डाइट है। खाने के साथ इसे लेने से खाने का पाचन भी अच्छा होता है और शरीर को पोषण भी ज्यादा मिलता है। यह खुद भी आसानी से पच जाती है। इसमें अगर एक चुटकी काली मिर्च, जीरा और सेंधा नमक मिला लिया जाए तो और अच्छा है। इसमें अच्छे बैक्टीरिया भी होते हैं, जो शरीर के लिए फायदेमंद होते हैं। मीठी लस्सी पीने से फालतू कैलरी मिलती हैं, इसलिए उससे बचना चाहिए। छाछ खाने के साथ लेना या बाद में लेना बेहतर है। पहले लेने से जूस डाइल्यूट हो जाएंगे।

दही और फल एक साथ लें या नहीं?
फलों में अलग एंजाइम होते हैं और दही में अलग। इस कारण वे पच नहीं पाते, इसलिए दोनों को साथ लेने की सलाह नहीं दी जाती। फ्रूट रायता कभी-कभार ले सकते हैं, लेकिन बार-बार इसे खाने से बचना चाहिए।

दूध के साथ फल खाने चाहिए या नहीं?
दूध के साथ फल लेते हैं तो दूध के अंदर का कैल्शियम फलों के कई एंजाइम्स को एड्जॉर्ब (खुद में समेट लेता है और उनका पोषण शरीर को नहीं मिल पाता) कर लेता है। संतरा और अनन्नास जैसे खट्टे फल तो दूध के साथ बिल्कुल नहीं लेने चाहिए। व्रत वगैरह में बहुत से लोग केला और दूध साथ लेते हैं, जोकि सही नहीं है। केला कफ बढ़ाता है और दूध भी कफ बढ़ाता है। दोनों को साथ खाने से कफ बढ़ता है और पाचन पर भी असर पड़ता है। इसी तरह चाय, कॉफी या कोल्ड ड्रिंक के रूप में खाने के साथ अगर बहुत सारा कैफीन लिया जाए तो भी शरीर को पूरे पोषक तत्व नहीं मिल पाते।

मछली के साथ दूध पिएं या नहीं?
दही की तासीर ठंडी है। उसे किसी भी गर्म चीज के साथ नहीं लेना चाहिए। मछली की तासीर काफी गर्म होती है, इसलिए उसे दही के साथ नहीं खाना चाहिए। इससे गैस, एलर्जी और स्किन की बीमारी हो सकती है। दही के अलावा शहद को भी गर्म चीजों के साथ नहीं खाना चाहिए।

फल खाने के फौरन बाद पानी पी सकते हैं, खासकर तरबूज खाने के बाद?
फल खाने के फौरन बाद पानी पी सकते हैं, हालांकि दूसरे तरल पदार्थों से बचना चाहिए। असल में फलों में काफी फाइबर होता है और कैलरी काफी कम होती है। अगर ज्यादा फाइबर के साथ अच्छा मॉइश्चर यानी पानी भी मिल जाए तो शरीर में सफाई अच्छी तरह हो जाती है। लेकिन तरबूज या खरबूज के मामले में यह थ्योरी सही नहीं बैठती क्योंकि ये काफी फाइबर वाले फल हैं। तरबूज को अकेले और खाली पेट खाना ही बेहतर है। इसमें पानी काफी ज्यादा होता है, जो पाचन रसों को डाइल्यूट कर देता है। अगर कोई और चीज इसके साथ या फौरन बाद/पहले खाई जाए तो उसे पचाना मुश्किल होता है। इसी तरह, तरबूज के साथ पानी पीने से लूज-मोशन हो सकते हैं। वैसे तरबूज अपने आप में काफी अच्छा फल है। यह वजन घटाने के इच्छुक लोगों के अलावा शुगर और दिल के मरीजों के लिए भी अच्छा है।

खाने के साथ फल नहीं खाने चाहिए।
कार्बोहाइड्रेट और प्रोटींस के पाचन का मिकैनिज्म अलग होता है। कार्बोहाइड्रेट को पचानेवाला स्लाइवा एंजाइम एल्कलाइन मीडियम में काम करता है, जबकि नीबू, संतरा, अनन्नास आदि खट्टे फल एसिडिक होते हैं। दोनों को साथ खाया जाए तो कार्बोहाइड्रेट या स्टार्च की पाचन प्रक्रिया धीमी हो जाती है। इससे कब्ज, डायरिया या अपच हो सकती है। वैसे भी फलों के पाचन में सिर्फ दो घंटे लगते हैं, जबकि खाने को पचने में चार-पांच घंटे लगते हैं। मॉडर्न मेडिकल साइंस की राय कुछ और है। उसके मुताबिक, फ्रूट बाहर एसिडिक होते हैं लेकिन पेट में जाते ही एल्कलाइन हो जाते हैं। वैसे भी शरीर में जाकर सभी चीजें कार्बोहाइड्रेट, फैट, प्रोटीन आदि में बदल जाती हैं, इसलिए मॉडर्न मेडिकल साइंस तरह-तरह के फलों को मिलाकर खाने की सलाह देता है।

मीठे फल और खट्टे फल एक साथ न खाएं
आयुर्वेद के मुताबिक, संतरा और केला एक साथ नहीं खाना चाहिए क्योंकि खट्टे फल मीठे फलों से निकलनेवाली शुगर में रुकावट पैदा करते हैं, जिससे पाचन में दिक्कत हो सकती है। साथ ही, फलों की पौष्टिकता भी कम हो सकती है। मॉडर्न मेडिकल साइंस इससे इत्तफाक नहीं रखती।

खाने के साथ पानी पिएं या नहीं?
पानी बेहतरीन पेय है, लेकिन खाने के साथ पानी पीने से बचना चाहिए। खाना लंबे समय तक पेट में रहेगा तो शरीर को पोषण ज्यादा मिलेगा। अगर पानी ज्यादा लेंगे तो खाना फौरन नीचे चला जाएगा। अगर पीना ही है तो थोड़ा पिएं और गुनगुना या नॉर्मल पानी पिएं। बहुत ठंडा पानी पीने से बचना चाहिए। पानी में अजवाइन या जीरा डालकर उबाल लें। यह खाना पचाने में मदद करता है। खाने से आधा घंटा पहले या एक घंटा बाद गिलास भर पानी पीना अच्छा है।

लहसुन या प्याज खाने चाहिए या नहीं?
लहसुन और प्याज को रोजाना के खाने में शामिल किया जाना चाहिए। लहसुन फैट कम करता है और बैड कॉलेस्ट्रॉल (एलडीएल) घटाकर गुड कॉलेस्ट्रॉल (एचडीएल) बढ़ाता है। इसमें एंटी-बॉडीज और एंटी-ऑक्सिडेंट गुण होते हैं। प्याज से भूख बढ़ती है और यह खून की नलियों के आसपास फैट जमा होने से रोकता है। लंबे समय तक इसके इस्तेमाल से सर्दी-जुकाम और सांस संबंधी एलर्जी का मुकाबला अच्छे से किया जा सकता है। लहसुन और प्याज कच्चा या भूनकर, दोनों तरह से खा सकते हैं। लेकिन लहसुन कच्चा खाना बेहतर है। कच्चे लहसुन को निगलें नहीं, चबाकर खाएं क्योंकि कच्चा लहसुन कई बार पच नहीं पाता। साथ ही, उसमें कई ऐसे तेल होते हैं, जो चबाने पर ही निकलते हैं और उनका फायदा शरीर को मिलता है।

परांठे के साथ दही खाएं या नहीं?
आयुर्वेद के मुताबिक परांठे या पूरी आदि तली-भुनी चीजों के साथ दही नहीं खाना चाहिए क्योंकि दही फैट के पाचन में रुकावट पैदा करता है। इससे फैट्स से मिलनेवाली एनजीर् शरीर को नहीं मिल पाती। दही खाना ही है तो उसमें काली मिर्च, सेंधा नमक या आंवला पाउडर मिला लें। हालांकि रोटी के साथ दही खाने में कोई परहेज नहीं है। मॉडर्न साइंस कहता है कि दही में गुड बैक्टीरिया होते हैं, जोकि खाना पचाने में मदद करते हैं इसलिए दही जरूर खाना चाहिए।

फैट और प्रोटीन एक साथ खाएं या नहीं?
घी, मक्खन, तेल आदि फैट्स को पनीर, अंडा, मीट जैसे भारी प्रोटींस के साथ ज्यादा नहीं खाना चाहिए क्योंकि दो तरह के खाने अगर एक साथ खाए जाएं, तो वे एक-दूसरे की पाचन प्रक्रिया में दखल देते हैं। इससे पेट में दर्द या पाचन में गड़बड़ी हो सकती है।

दूध, ब्रेड और बटर एक साथ लें या नहीं?
दूध को अकेले लेना ही बेहतर है। तब शरीर को इसका फायदा ज्यादा होता है। आयुर्वेद के मुताबिक प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट और फैट की ज्यादा मात्रा एक साथ नहीं लेनी चाहिए क्योंकि तीनों एक-दूसरे के पचने में रुकावट पैदा कर सकते हैं और पेट में भारीपन हो सकता है। मॉडर्न साइंस इसे सही नहीं मानता। उसके मुताबिक यह सबसे अच्छे नाश्तों में से है क्योंकि यह अपनेआप में पूरा है।

तरह-तरह की डिश एक साथ खाएं या नहीं?
एक बार के खाने में बहुत ज्यादा वैरायटी नहीं होनी चाहिए। एक ही थाली में सब्जी, नॉन-वेज, मीठा, चावल, अचार आदि सभी कुछ खा लेने से पेट में खलबली मचती है। रोज के लिए फुल वैरायटी की थाली वाला कॉन्सेप्ट अच्छा नहीं है। कभी-कभार ऐसा चल जाता है।

खाने के बाद मीठा खाएं या नहीं?
मीठा अगर खाने से पहले खाया जाए तो बेहतर है क्योंकि तब न सिर्फ यह आसानी से पचता है, बल्कि शरीर को फायदा भी ज्यादा होता है। खाने के बाद में मीठा खाने से प्रोटीन और फैट का पाचन मंदा होता है। शरीर में शुगर सबसे पहले पचता है, प्रोटीन उसके बाद और फैट सबसे बाद में।

खाने के बाद चाय पिएं या नहीं?
खाने के बाद चाय पीने से कई फायदा नहीं है। यह गलत धारणा है कि खाने के बाद चाय पीने से पाचन बढ़ता है। हालांकि ग्रीन टी, डाइजेस्टिव टी, कहवा या सौंफ, दालचीनी, अदरक आदि की बिना दूध की चाय पी सकते हैं।

छोले-भठूरे या पिज्जा/बर्गर के साथ कोल्ड ड्रिंक्स लें या नहीं?
कोल्ड ड्रिंक में मौजूद एसिड की मात्रा और ज्यादा शुगर फास्ट फूड (पिज्जा, बर्गर, फ्रेंच फ्राइस आदि) में मौजूद फैट के साथ अच्छा नहीं माना जाता। तला-भुना खाना एसिडिक होता है और शुगर भी एसिडिक होती है। ऐसे में दोनों को एक साथ लेना सही नहीं है। साथ ही बहुत गर्म और ठंडा एक साथ नहीं खाना चाहिए। गर्मागर्म भठूरे या बर्गर के साथ ठंडा कोल्ड ड्रिंक पीना शरीर के तापमान को खराब करता है। स्नैक्स में मौजूद फैटी एसिड्स शुगर का पाचन भी खराब करते हैं। फास्ट फूड या तली-भुनी चीजों के साथ कोल्ड ड्रिंक के बजाय जूस, नीबू-पानी या छाछ ले सकते हैं। जूस में मौजूद विटामिन-सी खाने को पचाने में मदद करता है।

भारी काबोर्हाइड्रेट्स के साथ भारी प्रोटीन खाएं या नहीं?
मीट, अंडे, पनीर, नट्स जैसे प्रोटीन ब्रेड, दाल, आलू जैसे भारी कार्बोहाइड्रेट्स के साथ न खाएं। दरअसल, हाई प्रोटीन को पचाने के लिए जो एंजाइम चाहिए, अगर वे एक्टिवेट होते हैं तो वे हाई कार्बो को पचाने वाले एंजाइम को रोक देते हैं। ऐसे में दोनों का पाचन एक साथ नहीं हो पाता। अगर लगातार इन्हें साथ खाएं तो कब्ज की शिकायत हो सकती है।

शुक्रवार, 18 मार्च 2016

आयुर्वेद औषधियां---एंटीबायोटिक गुण

आयुर्वेद में एंटीबायोटिक गुण वाली औषधियां

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आयुर्वेदिक औषधियों के प्रयोग से बैक्टीरिया में resistance उत्पन्न नहीं होता है और यही इसका सबसे प्रभावी एंटीबायोटिक गुण है. आयुर्वेद विज्ञान में मनुष्य को स्वस्थ रखने के लिए अनेक औषधियों का वर्णन है. इन्हीं औषधियों से आजकल विदेशी कंपनियां उनके केमिकल निकाल कर दवा बनाती हैं और हमसे मुनाफ़ा कमाती हैं. प्राचीन काल से ही आयुर्वेद के चिकित्सकों ने ऐसे अनेक आयुर्वेदिक औषधियों पर कार्य करा है जिनसे गंभीर बीमारियों को दूर किया जा सकता है. परन्तु कालांतर में विदेशी आक्रमणों और अन्य पैथियों के प्रचार के कारण हम लोग अपने ज्ञान से दूर होते गए और विदेशी कंपनियों के जाल में फंसते चले गए.

आयुर्वेदिक औषधियों का सबसे प्रधान फायदा यह होता है कि यदि अच्छे चिकित्सक से इलाज़ करवाया जाय तो इनसे कोई भी नुक्सान नहीं हो सकता. एकल औषधि और कई द्रव्यों को मिलाकर बनायीं गयी औषधियां आजकल अनेक गंभीर बीमारियों में प्रयुक्त करी जा रही हैं और इन पर रिसर्च द्वारा इन्हें प्रमाणित किया जा रहा है. आज हम उन्हीं आयुर्वेदिक दवाओं की बात करने जा रहे हैं जिनके एंटीबायोटिक गुणों पर या तो रिसर्च हो चुकी है और या रिसर्च द्वारा उन्हें इन्फेक्शन कंट्रोल में उपयोगी बताया गया है. आयुर्वेद में बहुत पहले से बक्टेरिया और इन्फेक्शन्स की बात करी गयी है और अलग अलग सन्दर्भों में इनकी अपने ढंग से व्याख्या करी गयी है.

आयुर्वेद में इन्फेक्शन कंट्रोल करने के लिए जो उपाय बताए गए हैं उनको भी अब वैज्ञानिक प्रामाणिक मान चुके हैं. आयुर्वेद में सूर्योदय और सूर्यास्त को germicidal माना गया है. वातावरण के शुद्धिकरण को एक विशेष प्रक्रिया “होम विज्ञान” द्वारा करा जाता था. इस प्रक्रिया में जड़ी बूटियों को वातावरण में प्रज्वल्लित करके हवा को खतरनाक जीवाणुओं से शुद्ध किया जाता था. इन्फेक्शन को आयुर्वेद में “पित्त दुष्टि” या “रक्त दुष्टि” के समतुल्य मान सकते हैं. आयुर्वेदिक सिद्धांतों के अनुसार शारीरिक दोषों को सामान अवस्था में रखकर ही इन्फेक्शन से दूर रहा जा सकता है. पित्त वर्धक पदार्थों के सेवन से बचें और पित्त शामक भोजन लें.

Important Ayurvedic Herbs and medicines which have proved effective against infections-

सामान्य रूप से, infections की चिकित्सा में आयुर्वेद में तुलसी (Ocimum sanctum), मंजिष्ठा (Rubia cordifolia), कुटकी (Picrorrhiza kurroa), नीम (Azadiracta indica), गुग्गुल (Commiphora mukul) हल्दी(Curcuma longa, commonly known as turmeric), दारुहरिद्रा (Berberis spp., commonly known as barberry), अदरख, लहसुन, वचा , कूठ आदि औषधियों का प्रयोग वर्षों से होता आ रहा है. इनमें से अधिकाँश औषधियों का स्वाद कटु अर्थात कड़वा होता है. घृतकुमारी (Aloe vera) को आसव के रूप में लेने से यह लिवर को स्वस्थ रखती है और detoxification में मदद करती है.


महासुदर्शन चूर्ण-
जिन रोगियों में ज्वर, लिवर का बढ़ जाना, थकावट आदि लक्षण होते हैं उनमें महासुदर्शन चूर्ण को उपयोगी पाया गया है.टायफायड, आँतों, फेफड़ों और मूत्राशय के इन्फेक्शन में यह उपयोगी पाया गया है. महासुदर्शन चूर्ण में कुटज प्रमुख रूप से होता है और इसमें S. aureus, S. flexneri, S. typhosa, B. subtilis नामक bacterias के विरुद्ध मज़बूत Antibacterial activity पायी जाती है. अध्ययनों से यह भी पता चलता है कि महासुदर्शन चूर्ण में S. typhi, S. epidermidis, E. coli, S. aureus, K. pneumoniae, P. vulgaris and P. aeruginosa के विरुद्ध antibacterial potential होता है.

अजमोदादि चूर्ण –
अजमोदादि चूर्णके Methanol और acetone extracts में E. coli, S. aureus and P. aeruginosa, S. aureus, S. epidermidis, S. typhi, B. subtilis, E. coli and P. vulgaris के विरुद्ध antibacterial potential होता है.

महासुदर्शन क्वाथ-
Malaria और बिना कारण के होने वाले बुखार में “महासुदर्शन क्वाथ” infection समाप्त करता हैं.

पञ्चवल्कल चूर्ण-
Surgical prophylaxis में “पञ्चवल्कल चूर्ण”या इसका पेस्ट प्रयोग करते हैं. इसमें antibacterial गुण और घाव भरने की क्षमता होती है.

त्रिफला –
त्रिफला के 90% ethanolic और aqueous extracts को Staphylococcus aureus, Klebsiella sp., Pseudomonas areoginosa और Escherichia coli बैक्टीरिया पर laboratory में टेस्ट किया गया.टेस्ट के बाद यह पाया गया कि त्रिफला में इन खतरनाक बैक्टीरिया से लड़ने के लिए antimicrobial क्षमता है.
त्रिफला के औषधीय योग: त्रिफला चूर्ण, त्रिफला वटी, त्रिफलादि क्वाथ.

हल्दी -
हल्दी की पत्तियों से निकाले
हल्दी Curcuma longa व रास्ना Alpinia galanga में fungus Trichophyton longifusus को मारने की क्षमता होती है.
औषध योग –हरिद्रा चूर्ण, महारास्नादि क्वाथ

नीम –
Leptospirosis दुनिया के अनेक देशों में जानवरों से फैलने वाला घातक इन्फेक्शन है. गर्म दशों में यह एक महामारी के रूप में भी फैलता है. साथ ही जो लोग पानी से भरे स्थानों में काम करते हैं उनको इस रोग के होने की अधिक सम्भावना होती है. नीम के तेल में antibacterial और antidermatophytic गुण होने के कारण Leptospiricidal activity को शरीर में होने से रोका जा सकता है. नीम का तेल हमारी त्वचा पर antibacterial film बना देता है और शरीर में bacteria को अन्दर आने से रोक देता है.
नीम का औषध योग- पारिभद्र तेल, पञ्चनिम्बादि चूर्ण.

ब्राह्मी -
ब्राह्मी के तेल का extract gram positive Bacillus subtilis, Staphylococus aureus और gram negative Escherichia coli, Pseudomonas aeruginosa, Shigella somnei organisms के विरुद्ध Antibacterial गुण वाला होता है. ब्राह्मी (Bacopa monneri) के aerial part के Petroleum ether (60-80 Celsius) और ethanolic extracts को indian earth worms (Pheretima posthuma) पर कृमि नाशक गुणों के लिए सफलता पूर्वक प्रयोग किया जा चुका है. इस प्रयोग में albendazole और piperizine citrate को reference standards के रूप में प्रयोग किया गया था.
ब्राह्मी का औषध योग- सारस्वतारिष्ट, ब्राह्मी घृत. ब्राह्मी तेल

तुलसी –
तुलसी में पाए जाने वाले केमिकल्स के अध्ययन से पता चलता है की यह pseudomonas, staphylococcus (gram positive), Escherichia coli (gram negative) bacteria और Candida albicans fungus के विरुद्ध प्रभावशाली है.
तुलसी का औषध योग- तुलसी चूर्ण, तुलसी क्वाथ.

गिलोय/गुडूची -
गिलोय/गुडूची में anti-inflammatory, analgesic, antipyretic और immunosuppressive गुणों की खोज करी जा चुकी है. गुडूची की पत्तियों के extract में Proteus vulgaris, Staphylococcus aureus, Streptococcus pyogenes, Bacillus subtilis और Escherichia coli के विरुद्ध Antibacterial गुण होता है.
गुडूची का औषध योग-अमृतारिष्ट, अमृतादि गुग्गुल

करमर्द-
करमर्द (Carissa carandas) की पत्ती के Benzene extract में भी antibacterial गुण होते हैं.
औषध योग- करमर्द चूर्ण

त्रिफला-
त्रिफला चूर्ण में Staphylococcus epidermidis, S.aureus, Proteus vulgaris, Pseudomonas aeruginosa, Salmonella typhi के विरुद्ध Antibacterial activity पायी जाती है.

हरीतकी –
हरीतकी चूर्ण में S. epidermidis, S. aureus, B.subtilis, P.vulgaris, S.typhi, P.aeruginosa के विरुद्ध मज़बूत Antibacterial activity पायी जाती है.

बहेड़ा –
बहेड़ा चूर्ण में E.coli, S.aureus, P.aeruginosa, P.vulgaris, S.epidermidis, S.typhi, S.typhimurium के विरुद्ध मज़बूत Antibacterial activity पायी जाती है.

स्वर्ण भस्म-
Pulmonary tuberculosis में स्वर्ण भस्म का प्रयोग किया जाता है .स्वर्ण भस्म को एक अच्छा antiseptic माना जाता है और इसमें रसायन गुण यानि शरीर से व्याधि नाशक गुण होने के कारण इसका प्रयोग अनेक रोगों में किया जाता है.

सुदर्शन चूर्ण-
सुदर्शन चूर्ण में रक्त शोधक और उदर रोगों को ठीक करने की क्षमता होती है. अध्ययनों से यह साबित हुआ है की यह S.aureus, S. epidermidis, B.subtilis, S.typhimurium, E.coli, K.pneumoniae, S.typhi and P.vulgaris नामक बैक्टेरिया के विरुद्ध antibacterial कार्य करता है.

स्वादिष्ट विरेचन चूर्ण –
स्वादिष्ट विरेचन चूर्ण के Methanolic extract में S.aureus, B. subtilis, P. vulgaris और P. aeruginosa के विरुद्ध antibacterial गुण होते हैं.

मंजिष्ठादि चूर्ण –
मंजिष्ठादि चूर्ण आयुर्वेद में रक्त शोधक और ज्वर नाशक के रूप में उपयोग किया जाता है. अध्ययनों से यह सिद्ध हुआ है की यह S.epidermidis, S.aureus, B.subtilis, S. typhimurium, E. coli, P. aeruginosa, K. pneumonia, P. vulgaris, S.typhi और E.aerogenes के विरुद्ध antibacterial कार्य करता है.

दशमूल –
दशमूल चूर्ण में S.aureus, S.epidermidis, P.vulgaris, S.typhi, B.subtilis, E.coli, K.pneumonia, E. aerogenes और P.aeruginosa के विरुद्ध antibacterial potential होता है.दशमूल चूर्ण के घटक बिल्व (Aegle marmelos) में V. cholerae, E. coli and Shigella sp. के विरुद्ध antibacterial गुण होते हैं.

पिप्पलीमूल चूर्ण –
पिप्पलीमूल चूर्ण में S. aureus, S. epidermidis, E. coli, B. subtilis and P. vulgaris के विरुद्ध antibacterial गुण देखे गए हैं.


बुधवार, 2 मार्च 2016

एड़ी में दर्द कारण और उपचार--

एड़ी में दर्द कारण और उपचार

Home Remedy for Heel pain – Ankle Pain.
एड़ी में दर्द बहुत कष्टकारी होता हैं। और ये किसी भी आयु के व्यक्ति और औरत या मर्द सभी को हो सकता हैं। एड़ी के दर्द होने के बहुत से कारण हो सकते हैं। ऊंची एड़ी के सैंडल, गलत बूट, गलत जूती या हड्डी का बढ़ना या कोई पुरानी चोट भी इसका एक कारण हो सकता हैं।
आज हम आपको बताएँगे इस दर्द से छुटकारा पाने की युक्ति।
कारण :-
ऊँची एड़ी की सेण्डल पहनना।
पैर का मुड़ जाना।
गिर जाना।
टाइट कपड़े पहनना।
नींद की गोलियाँ खाना।
मोटापा, मधुमेह जैसी बीमारियाँ होना।
पोषण का अभाव।
हार्मोन को प्रभावित करने वाली दवाइयाँ लेना या हार्मोन में एकदम परिवर्तन हो जाना।
चोट, कंकर-पत्थर का लग जाना।
माँस का कम हो जाना।
हड्डी का बढ़ जाना।
ज्यादा समय तक खड़े रहना।
पेट, कमर व पैरों की कोई क्रियाएँ नहीं करना।
ज्यादा खाना, पीना, सोना।

निवारण:-

दर्द के समय ज्यादा चलना फिरना बंद कर एड़ी पर एक लेप बनाकर लगाएँ (हल्दी को तेल या तिल में पकाकर नमक, नीबू व प्याज डालें)।
स्पोर्ट्स जूते या आरामदायक जूते पहने।
गरम ठंडा पानी
गरम ठंडे पानी में पैर को बदल-बदल 3 बार रखें। गरम में पाँच मिनिट, ठंडे में तीन मिनिट। यह क्रिया सिर को गीला कर तथा पानी पीकर व स्टूल पर बैठकर करें।
काला तिल, ग्वारपाठा व अदरक
काली मिट्टी में काला तिल, ग्वारपाठा व अदरक डालकर गर्म करके बाँधने पर अद्भुत लाभ मिलता है।
अश्वगंधा
दर्द निवारण के लिए अश्वगंधा का चूर्ण 1-1 चम्मच दूध के साथ लेवें या अंकुरित मैथी दाना का प्रयोग करें।
ग्वारपाठा
सुबह ग्वारपाठा को छीलकर (50 ग्राम के लगभग) खाएँ।
अदरक
अदरक की सब्जी या चटनी खाएँ। पोदीना में पिण्ड खजूर डालकर चटनी बनाकर खाएँ।
भोजन
भोजन में आलु, ककड़ी, तोरई, सेव, आँवला, टमाटर, कच्चा पपीता, सहना फूल व पत्तागोभी, गुगल का प्रयोग अति लाभकारी है।
मेथी अजवायन कलौंजी और साबूत ईसबगोल
एक चम्मच मेथी, एक चम्मच अजवायन, एक चम्मच कलौंजी और एक चम्मच साबूत ईसबगोल को थोड़ा मिक्सी मे पीसकर सुबह खाली पेट एक चम्मच लें। इसी अनुपात से आप ज्यादा बनाकर रोजाना इस्तेमाल करिए।

नौशादर एक पीस (एक चौथाई छोटा चम्मच) , गवार पाठा – एक चौथाई छोटा चम्मच, और 1/4 चम्मच हल्दी। एक बर्तन में गवार पाठा धीमी आंच पर गरम करे, उस में नौशादर और हल्दी डाले, जब गवार पाठा पानी छोड़ने लगे तब उसे एक कॉटन के टुकड़े पर रख ले और थोड़ा ठंडा करे। जितना गरम सह सके, उसे एक कपडे पर रख कर एड़ी पर पट्टी की तरह बांध लीजिये, ये प्रयोग सोते समय करे क्योंकि इसे बाँध कर चलना नहीं है। ये प्रयोग कम से कम ३० दिन तक पुरे धैर्य से करे।