मंगलवार, 27 दिसंबर 2016

*Stone--पथरी

पथरी को लेकर के बहूत सारे सवाल मन में आते हे
कितनी बड़ी निकल सकती हे ?
दवाओ से निकल सकती हे या नहीं ?
कितने दिन लगेंगे ?
आदि आदि

दरअसल होता क्या हे...
पथरी जो बड़े आकार की होगी वो हमेशा गलकर ही बाहर आएगी..

दूसरी बात जितनी बड़ी होगी उतना ही समय उसको बाहर आने में लगेगा

तीसरी बात पथरी का आकार mostly 7-8 mm से कम होगा तभी वो बाहर आएगी
क्यूंकि ureter का आकार 3-4 mm तक का होता हे..ureter की flexibility ज्यादा से ज्यादा 8 mm तक की size को निकलने में सहायता करेगी ...इसके बाद बड़ी size अटक कर रास्ता जाम कर देगी...
इसलिए जितने भी बड़ी पथरी निकालने के प्रयास हे वो सभी पथरी को गलाने के बाद ही शुरू होंगे

अब अगर मेने जितनी भी पथरी को निकाला हे ..
उनमे देखने में आया की किसी किसी की बड़ी पथरी भी गलकर जल्दी निकल गयी और किसी किसी की उतनी ही size की पथरी ने ज्यादा समय लिया..
तो इसके पीछे सीधा सा reason हे पथरी का chemical composition ...मतलब पथरी बनी किन पदार्थो से हे..अगर वो calcium oxalate हे तो धीरे गलेगी
calcium phosphate हे या uretes हे तो जल्दी गलेगी
मतलब आयुर्वेदानुसार हम oxalate पथरी को वातिक मान सकते हे
uretes को पेत्तिक
और बाकी calcium phosphate और cystine को कफज मान सकते हे( ये मेरा मानना हे..सभी के विचार स्वतंत्र हो सकते हे..जरूरी नहीं ये सही भी हो)
बस इससे इतना सा जवाब मिल जाता हे..की फला फला प्रकृति के व्यक्ति को एक ही आहार लेने के बावजूद एक ही स्थान पर पलने के बावजूद पथरियां भी सबको भिन्न भिन्न पनप सकती हे..और इससे उनके बाहर आने का कार्यकाल भी भिन्न भिन्न रहेगा

अब मुद्दे पर आते हे
क्या दे जिससे सफलता मिले ?
तो एक बात अवश्य ध्यान रहे
रोगी की प्रकृति को देखकर पथरी के दोषभेद की hypothesis बनाई जाए..की वातिक हे पेत्तिक हे या कफज हे
और उसी के according ओषध का चुनाव करे
वातिक का चुनाव होता हे तो पथरी में गुग्गुल जरूर दे(मतलब पुड़िया की दवा में महायोगराज गुग्गुल जरूर मिलाये)..
*** गुग्गुल कोशिश करे धूतपापेश्वर का ही लिया जाए
सहजन की छाल का चूर्ण दे या घिस घिस कर पिलाये..
महावातविधवंशक जरूर मिलाये
(मेरी बात हो सकता हे विद्वानों को अजीब लगे लेकिन इन द्रव्यों के गुण कमाल के आते हे)
अब इसी तरह पेत्तिक और कफज में द्रव्यों का selection कर पुड़िया की दवा में मिलाये

मै जो common formula काम में लेता हूँ वो भी बताये चलता हूँ

त्रिविक्रम रस                 5gm
हजरल यहूद                 5gm
क्षार पर्पटी                    5gm
पाषाण वज्र रस             5gm
यवक्षार                         5gm
तालमखाना पञ्चांग क्षार10gm
अमृता सत्व                  10gm
गोक्षुरादी गुग्गुलु             10gm

total 30 dose with honey

tab चंद्रप्रभावटी(धूतपापेश्वर) 1bd
tab cystone 2bid
syp neeri 1 tid
syp गोक्षुरादी क्वाथ 15-15 ml with luke warm water (नागार्जुना pharmacy अहमदाबाद वाली का)
oil गन्धर्व हस्तादी एरंडम 2 tsf with luke warm water /HS
(ये पथरी का अनुलोमन करवाएगा)

घर पर तीन प्रयोग करने को कहे
1.एक चम्मच निम्बू का रस+ एक चम्मच ग्लिसरीन

2.इलायची के दाने 3gm(पिसे हुए)+ 20 gm मक्खन

3.तीन अंजीर रात सुबह शाम भिगोकर मसलकर छानकर पिने को दे
पथ्य में
कुलथी की दाल खाने को कहे

ये प्रयोग दस दिन का रहेगा...पांच दिन बाद ही treatment repeat करे..क्यूंकि क्षार एक साथ लम्बे समय तक नहीं दे सकते हे

सोमवार, 26 दिसंबर 2016

*MANAGEMENT OF PID* *(कुक्षि/गर्भाशय-शोथ चिकित्सा)*

*MANAGEMENT OF PID*
*(कुक्षि/गर्भाशय-शोथ चिकित्सा)*
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एक अनुमान के मुताबिक, लगभग 1.5 प्रतिशत युवा (किशोरियों व पहली बार माँ बनने वाली) महिलाओं को हर वर्ष कुक्षि/गर्भाशय-शोथ (Pelvic inflammatory disease - PID) होती है। दुर्भाग्यवश इनमें से कई महिलाओं को बाद में वन्ध्यत्व (Infertility) हो जाता है।

*हेतु व सम्प्राप्ति (Etio-pathogenesis):*

अनेकों प्रकार के जीवाणु (Bacteria) गर्भाशय (Uterus), गर्भाशय-नलिकाओं (Fallopian tubes), व डिम्बाशयों (Ovaries) में संक्रमण पैदा करके इन अवयवों में शोथ पैदा करते हैं, जिसे कुक्षि/गर्भाशय-शोथ (PID) कहते हैं।

*रूप (Clinical manifestations):*

अधिकांश युवा महिलाओं को आरम्भिक अवस्था में प्रायः कोई कष्ट नहीं होता व उन्हें मालुम ही नहीं पड़ता कि उनके प्रजनन अंगों (गर्भाशय, गर्भाशय-नलिकाओं, व डिम्बाशयों) में किसी प्रकार की कोई ख़राबी है।

रोग बढ़ने अथवा जीर्ण होने पर निम्नलिखित कुछ अथवा सभी कष्ट हो सकते हैं -

● कुक्षि-शूल (Lower abdominal pain);
● योनि-स्राव (Vaginal discharge);
● ज्वर (Fever);
● मूत्रदाह (Burning with urination);
● कष्ट-मैथुन (Painful coitus); व
● अनियमित आर्तव (Irregular menstruation)।

*उपद्रव (Complications):*

सम्यक् चिकित्सा न करने पर निम्नलिखित उपद्रव होने की सम्भावना रहती है -

● वन्ध्यत्व (Infertility);
● अस्थानिक गर्भावस्था (Ectopic pregnancy);
● जीर्ण कुक्षि-शूल (Chronic pelvic pain); व
● विषार्बुद (Cancer)।

*आदर्श चिकित्सा (Treatment protocol):*

कुक्षि/गर्भाशय-शोथ (PID) की सम्यक् चिकित्सा करना आवश्यक है। ऐसा न करने पर रोग जीर्ण रूप धारण कर लेता है, जिससे बाद में उपरोक्त कई प्रकार के उपद्रव होने की प्रबल सम्भावना रहती है ।

निम्नलिखित आदर्श चिकित्सा (Treatment protocol) के अनुसार चिकित्सा करने पर अपेक्षित लाभ मिलने की अधिक सम्भावना रहती है -

I. संक्रमणहर औषधियाँ (Anti-infective / antibacterial drugs);
II. शोथहर औषधियाँ (Anti-inflammatory drugs);
III. गर्भाशय-बल्य औषधियाँ (Uterine tonics);
IV. बीज-बल्य औषधियाँ (Drugs to promote ovulation); व
V. रसायन औषधियाँ (Antioxidants)।

*I. संक्रमणहर औषधियाँ (Anti-infective / anti-bacterial drugs):*

निम्न औषधियों को अधिकतम सहनीय मात्रा (Maximum tolerated dose) में तथा लम्बे समय (6 सप्ताह से 6 माह) तक प्रयोग करने पर, प्रायः अपेक्षित लाभ मिल जाता है -

1. चिरायता, अतिविषा, गन्धक, यशद
.............................................................

.............................................................

2. ताम्र (भस्म / आरोग्यवर्धिनी);
3. मल्ल (सिन्दूर / समीरपन्नग रस);
4. पारद (रससिन्दूर / हिंगुल);
5. गुग्गुलु (शुद्ध / कैशोर / पञ्चतिक्तघृत);
6. दशमूल (क्वाथ / अरिष्ट);
7. मञ्जिष्ठा (महामञ्जिष्ठादि क्वाथ);
8. सारिवा (वटी / सारिवादि अरिष्ट);
9. निम्ब (पञ्चतिक्तघृत);
10. हरिद्रा (चूर्ण); इत्यादि।

_नोट: ताम्र, मल्ल, नारद आदि विष द्रव्यों को सहनीय मात्रा में ही दें तथा हर 45 दिन के बाद एक सप्ताह तक बन्द करें। इन्हें प्रयोग करते समय आमाशय-शोथ होने पर शीतल औषध व आहार दें। हर माह यकृत् परीक्षा (LFT) व वृक्क परीक्षा (KFT) कराते रहें। किसी भी प्रकार की यकृत् अथवा वृक्क में विकृति के संकेत आने पर औषधियाँ तत्काल बन्द करके उचित चिकित्सा करें।_

*II. शोथहर औषधियाँ (Anti-inflammatory drugs):*

1. शल्लकी, एरण्डमूल, जातीफल
.............................................................
.............................................................

2. गुग्गुलु (शुद्ध / कैशोर / शिग्रु / महायोगराज );
3. दशमूल (क्वाथ / अरिष्ट);
4. हरिद्रा (चूर्ण);
5. रास्ना (सप्तक क्वाथ);
6. शिग्रु (गुग्गुलु);

*III. गर्भाशय-बल्य औषधियाँ (Uterine tonics):*

1. अशोक, लोध्र, लज्जालु (Gynorm tablet) + उलटकम्बल, हीराबोल, घृतकुमारी
.............................................................

.............................................................

2. शतावरी (चूर्ण / फलघृत) ।

*IV. बीज-बल्य औषधियाँ (Drugs to promote ovulation):*

1. पुत्रञ्जीव, शतावरी, शिलाजतु, त्रिवंग
.............................................................
.............................................................

2. शिवलिंङ्गी (चूर्ण); इत्यादि।

*V. रसायन औषधियाँ (Antioxidants):*

1. शिलाजतु, आमलकी, मुक्ताशुक्ति, स्वर्णमाक्षिक, अभ्रक, यशद
.............................................................

.............................................................

2. मुक्ताशुक्ति, आमलकी, अभ्रक, यशद
...........................................................
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*श्वास रोग

*श्वासरोग निदान :---*

कासरोग के बढने पर श्वासरोग होता है अथवा वातादि दोषों को प्रकुपित करने वाले आहार विहार का सेवन करने से एवं इसके अलावा कभी-कभी आमात्सार, वमन, विषज विकार, पाण्डुरोग या ज्वर से भी श्वासरोग हो जाता है |
धूलि से, अधिक धूप सेवन, अधिक ठंडी हवा से, मर्म स्थानों पर चोट लगने से, अत्यंतशीतल पानी व बर्फ के अति प्रयोग, आईसक्रीम, कुल्फी जैसे पदार्थों के अति प्रयोग से भी श्वास रोग
की उत्पत्ति हो जाती है ||

 *पूर्व रूप*

मारुतः प्राणवाहीनि स्रोतांस्याविश्य कुप्यति|
उरःस्थः कफमुद्धूय हिक्का श्वासान् करोति सः||
घोरान् प्राणोपरोधाय प्राणिनां पञ्च पञ्च च|
: उभयोः पूर्वरूपाणि शृणु वक्ष्याम्यतः परम्||१८||
कण्ठोरसोर्गुरुत्वं च वदनस्य कषायता|
हिक्कानां पूर्वरूपाणि कुक्षेराटोप एव च||

आनाहः पार्श्व शूलं च पीडनं हृदयस्य च|
प्राणस्य च विलोमत्वं श्वासानां पूर्वलक्षणम्||



 *श्वासरोग की सम्प्राप्ति ::--*
वायु का मार्ग ( श्वासोच्छ्वास) कफ दोष के कारण रूक जाने जब वह वायु चारों और फैल जाता है, अतएव दूषित हो जाता है ; तदनन्तर वह प्राणवह, उदक वह तथा अन्नवह स्रोतो को दूषित करता हुआ श्वासमार्ग में स्थित होकर आमाशय से उत्पन्न होने वाले श्वास रोग को उत्पन्न कर देता है ||
श्वास के पूर्वरूप ::---
हृदय व पार्श्व में पीडा होना, प्राण विलोमता यानि श्वास प्रश्वास की क्रिया में विपरीतता यानि उलटापन होना, आनाह एवं शंख प्रदेश में फटने जैसी पीडा होना -- ये पूर्वरूप हैं ||

*श्वास भेद*

श्वासाश्च पञ्च विज्ञेया: क्षुद्र: स्यात्तमकस्तथा |
उर्ध्वश्वासो महाश्वास्छिन्नश्वासश्च पञ्चम:|
🌵श्वास रोग पांच प्रकार का है :-- क्षुद्र, तमक, उर्ध्वश्वास, महाश्वास एवं छिन्न श्वास |
इसको दमारोग भी कहा जाता है | श्वास लेने में कठिनाइ यानि कष्ट होना ही श्वास का प्रत्यात्म लक्षण है||
🌵 कहते हैं कि दमारोग दम के साथ जाता है |🌷

 *महाश्वास*
उद्धूयमानवातो यः शब्दवहुःखितो नरः|
उच्चैः श्वसिति संरुद्धो मत्तर्षभ इवानिशम्||
प्रनष्ट ज्ञान विज्ञानस्तथा विभ्रान्त लोचनः|
विकृताक्ष्याननो बद्ध मूत्र वर्चा विशीर्ण वाक्||
दीनः प्रश्वसितं चास्य दूराद्विज्ञायते भृशम्|
महाश्वासोपसृष्टः स क्षिप्रमेव विपद्यते||
इति महाश्वासः|

 *उर्धव्श्वास*
दीर्घं श्वसिति यस्तूर्ध्वं न च प्रत्याहरत्यधः|
श्लेष्मावृत मुखस्रोताः क्रुद्ध गन्धवहार्दितः||
ऊर्ध्व दृष्टि र्विपश्यंश्च विभ्रान्ताक्ष इतस्ततः|
प्रमुह्यन् वेदनार्तश्च शुष्कास्योऽरतिपीडितः||
ऊर्ध्वश्वासे प्रकुपिते ह्यधःश्वासो निरुध्यते|
मुह्यतस्ताम्यतश्चोर्ध्वं श्वासस्तस्यैव हन्त्यसून्||
इत्यूर्ध्वश्वासः|

 *छिन्नश्वास*
यस्तु श्वसिति विच्छिन्नं सर्वप्राणेन पीडितः|
न वा श्वसिति दुःखार्तो मर्म च्छेदरुगर्दितः||
आनाह स्वेद मूर्च्छार्तो दह्यमानेन बस्तिना|
विप्लुताक्षः परिक्षीणः श्वसन् रक्तैकलोचनः||
विचेताः परिशुष्कास्यो विवर्णः प्रलपन्नरः|
छिन्नश्वासेन विच्छिन्नः स शीघ्रं प्रजहात्यसून्||
इति छिन्नश्वासः

 *तमकश्वास*
प्रतिलोमं यदा वायुः स्रोतांसि प्रतिपद्यते|
ग्रीवां शिरश्च सङ्गृह्य श्लेष्माणं समुदीर्य च||
करोति पीनसं तेन रुद्धो घुर्घुरुकं तथा|
अतीव तीव्रवेगं च श्वासं प्राण प्रपीडकम्||
प्रताम्यत्यतिवेगाच्च कासते सन्निरुध्यते|
प्रमोहं कासमानश्च स गच्छति मुहुर्मुहुः||
श्लेष्मण्यमुच्यमाने तु भृशं भवति दुःखितः|
तस्यैव च विमोक्षान्ते मुहूर्तं लभते सुखम्||
अथास्योद्ध्वंसते कण्ठः कृच्छ्राच्छक्नोति भाषितुम्|
न चापि निद्रां लभते शयानः श्वासपीडितः||
पार्श्वे तस्यावगृह्णाति शयानस्य समीरणः|
आसीनो लभते सौख्यमुष्णं चैवाभिनन्दति||
उच्छ्रिताक्षो ललाटेन स्विद्यता भृशमर्तिमान्|
विशुष्कास्यो मुहुः श्वासो मुहुश्चैवावधम्यते||
मेघाम्बुशीतप्राग्वातैः श्लेष्मलैश्चाभिवर्धते|
स याप्यस्तमकश्वासः साध्यो वा स्यान्नवोत्थितः||
इति तमकश्वासः|

 *प्रतमक संतमक श्वास*
ज्वर मूर्च्छापरीतस्य विद्यात् प्रतमकं तु तम्|
उदावर्त रजोऽजीर्ण क्लिन्न काय निरोधजः||
तमसा वर्धतेऽत्यर्थं शीतैश्चाशु प्रशाम्यति|
मज्जतस्तमसीवाऽस्य विद्यात् सन्तमकं तु तम्||
इति प्रतमक सन्तमक श्वासौ|

*क्षुद्र श्वास*
रूक्षायासोद्भवः कोष्ठे क्षुद्रो वात उदीरयन्|
क्षुद्रश्वासो न सोऽत्यर्थं दुःखेनाङ्ग प्रबाधकः||
हिनस्ति न स गात्राणि न च दुःखो यथेतरे|
न च भोजनपानानां निरुणद्ध्युचितां गतिम्||
नेन्द्रियाणां व्यथां नापि काञ्चिदापादयेद्रुजम्|
स साध्य उक्तो बलिनः सर्वे चाव्यक्त लक्षणाः||
इति श्वासाः समुद्दिष्टा हिक्काश्चैव स्वलक्षणैः

 *चिकित्सा*

 एक चम्मच सोंठ, छ: काली मिर्च, काला नमक 1/4 चम्मच, तुलसी की 5 पत्तियों को पानी में उबाल कर पीने से श्वास में आराम मिलता है
 सप्लाई में आया स्वाशान्तक चूर्ण और कनका सब भी कारगर हो रहा है मैने कई रोगियो पर काम लिया है🙏🙏





छोटी पीपल + आमलकी + सोंठ के चूर्ण को शहद व मिश्री के साथ प्रयोग करने से हिचकी व श्वास रोग में लाभदायी है ||

 Shwaskuthar rs500mg laxmi bilas500mg rs  parwal pisti250mg  sutsekher500mg rs  milakr  subh sam shahd s dene s swas kas thik hota h

  *अमृतादि क्वाथ :--* गिलोय + नागरमोथा + भारंगी + कण्टकारी + तुलसी - समभाग मिलाकर, क्वाथ बनाकर छोटी पीपल के चूर्ण के साथ प्रयोग करने से श्वास बहुत हितकारी है||

दशमूल क्वाथ में  पुष्करमूल चूर्ण मिलाकर पिलाने से श्वास रोगी का श्वास तो आराम होगा ही कास, पार्श्वशूल तथा हृत्शूल व बैचेनी मिटने पर आशीर्वाद भी देगा ||

 🌹श्वास रोग में पुरातन गुड तथा सरसों का तैल मिलाकर चटावें | यह प्रयोग तीन सप्ताह तक करें | श्वास रोगी मुस्कराएगा ||

 👆उपरोक्त वर्णित योग सभी श्वास पर सहायक क्वाथ हैं , एवं दोषानुसार कल्पना करने पर भी ये प्रयोज्य हैं ||

 *कुलत्थादि क्वाथ ::--*-
 कुलत्थ+ सोंठ+ भटकटैया +वासा -- इन सबको समभाग लेकर क्वाथ करें | इस क्वाथ के साथ पुष्करमूल का चूर्ण प्रयोग करने पर श्वास में बहुत ही हितकारी है ||

 *तमके तुम विरेचनम*् ।
हरीतकी+द्राक्षा  क्वाथ  देवे।प्रथमदिन।

मल्लभस्म 125mg
यवक्षार    2gram
--------------------------------'
मिला कर  सोलह पुडियाऐ बनाए।
प्रातःकाल एक पुडिया शीतल जल से लेवे।सोलह दिन तक।
     आवश्यकता होने पर सात दिन के अन्तराल पर सोलह दिन और देवे।
दूध घी का पथ्य रखे। चिकित्सक  की देखरेख में ही लेवे ।चमत्कारिक फलदायी योग।

 पुराना  गुड़ और। सरसो  का तैल। का प्रयोग     सभी  5  प्रकार के  अस्थमा
में  उपयोगी है  क्या ??
श्वासन्तक चूर्ण के अच्छे result हैं।कई रोगियों को चूर्ण+बलसुधा मिला कर दी है,अच्छे परिणाम हैं

 मूल चिकित्सा के साथ रोगी को अग्निवर्धक एवं रक्तवर्धक औषध दी जाये तो मेरे हिसाब से अच्छा रहेगा ।

यहाँ पर एक अनपढ़ ग्रामीण लेकिन प्रसिद्ध वैद्य जी श्वास रोग का शहद एवं अदरख रस में हिंगुल की टिकिया को आठ दस बार घिसकर गुनगुना करके पिलाते है चमत्कारिक लाभ मिलता है

श्वास रोग मे ।
*सितोपलादि चूर्ण*
*विषाण भष्म*
*प्रवाल भष्म*
*अभ्रक भष्म*
*लोह भष्म*
यथोचित मात्रा मे सेव के मुरब्बे के साथ दें ।

 *वासाहरिद्रामगधागुडूचीभार्गीघनानागररिंगणीनाम्।
क्वाथेन मारीचरजोsन्वितेन श्वासः शमं याति न कस्य पुंसः

 *तमक श्वास पर कुछ अनुभूत प्रयोग* 👇
रक्त पुनर्नवा की 8अंगुल लंबी मूल लीजिये इसको कूट कर क्वाथ बनाबें इसमे आधा चम्मच चन्दन बुरादा आधा चम्मच हल्दी डालकर चतुर्थांश क्वाथ बानबे । 1माह के निरन्तर प्रयोग से अवश्य लाभ होगा। सांठी की यह तासीर है यह फ़ुफ़ुस में जमे हुए कफ और श्वास वाहिनी के कफ को निकाल देती है एक माह के बाद रोगी को चवनप्राश और सितोपलादि का प्रयोग जारी रखें । यह योग मेरा अनुभूत है।

 तमक श्वास में वमन कर्म करावें
 पश्चात आहार,विहार का ध्यान रखवाकर मल्ल तेल का उपयोग कराना श्रेयष्कर है।

 मेरी समझ में अस्थमा पेसेंट को वमन कराने के बजाय औषध से कफ उत्क्लेशित करके निकलना ठीक है वमन में रिस्क है दिनेश जी पंचकर्म के बिशेषज्ञ है ऐसे चिकित्सक वमन करा सकते हैं

 श्रृंगयादि चूर्ण 3ग्राम
अभ्रक भस्म 1000 पुटी 60मि ली
मल्ल सिन्दूर स्वर्णजारित 60मि ली
श्रृंगारभ्र रस।        250 मि ली
प्रवाल भस्म।        250मिली
                  -------------------
                   1×3
वासा कंटकारी अवलेह से
अग्नि चतुर्मुख चूर्ण 5 ग्राम
                     ---–--------
                   1×2 भोजन केबाद
    कंनकासव 30 मिली
      द्राक्षासव 30 मिली
                 --------------–
             1×2 समभाग कोष्ण जल

श्वास रोग में अग्नि का ध्यान रखा जाना आव्यस्यक होगा अतः अग्नि वर्धक  साथ में देंवे तो बेहतर होगा

 *श्वेत पलाण्डु* के टुकड़े सूर्योदय पूर्व दो तोला प्रतिदिन शहद में डूबो डूबो कर चालीस दिन सेवन करना पित्तानुबंधी तमक श्वास की शान्ती हेतु परम उपयोगी है।

 *सद्धय फल हेतु योग---*
*रससिन्दूर 10 ग्राम*
*श्वासकुठार 10ग्राम*
*सोमलता 100ग्राम*
भली प्रकार मर्दन करें रखे।
मात्रा-  एक ग्राम 1  ×  4
एक घूट गरम जल से।
तत्काल लाभ देने वाला योग है।

 अभ्यंग,स्वेदन के उपरांत ऊपर वाला योग सद्य लाभ देगा

 अत्यधिक कफ प्रकोप हो तो अर्क क्षीर,40मिली,मधुयष्टि चूर्ण 5ग्राम,हल्दी 5 ग्राम चटावे,उष्ण जल पान ,2 -3घंटे बाद कफ बाहर

 *अरकपुष्पकलिका-*-दो भाग
*पीपल*              एक भाग
*सैंधानमक*        एक भाग
*कपूर*              चौथा भाग
*गुड़*।।।।         तीन भाग
कट कर  500 mg की गोलियाँ बनावे।
आचूषणार्थ  या गरम जल से।तमक श्वास में शिविरों में बहुत बार काम में ली फलप्रद रही।


 श्वास रोग  दुर्जय रोग कहा है। यह रोग स्वतन्त्र व्याधि के रूप में भी और अनेक व्याधियों के लक्षण के रूप में भी उत्पन्न होता है।

 पुष्करमूल, कर्चूर, कंटकारी, भारंगी, शुण्ठी, त्रिवृत 1.5 gm प्रत्येक मुन्नका 5 नग क्वाथ 30ml, हिंगु व बृहत एला 250 mg + वासाघृत 10 gm प्रात:

*अमृतादि क्वाथ* सह श्रृंग्यादि चूर्ण :--- श्वासं शमयेद् अतिदोषमुग्रम् ::--
श्रृंग्यादि चूर्ण-- काकडासिंगी+ सोंठ+ पीपर+ नागरमोथा+ पुस्करमूल +कचूर + मरिच + मिश्री -- समभाग , चूर्ण बना लें ||
*अमृतादि क्वाथ::--*
गिलोय + अडूसा ( वासा) + तथा पञ्चमूल ( बेल, गंभारी, सोनपाठा, अरणी, पाढल ) - समभाग मिलाकर क्वाथ करें||
इस क्वाथ के साथ उपरोक्त चूर्ण का विधिवत् प्रयोग कराने से श्वास रोग में अच्छे परिणाम आते हैं ||
🌷 साथ में अभ्रक की सहस्रपुटी भष्म या श्रंगाराभ्र का प्रयोग भी कराएँ, तो, शानदार परिणाम आते हैं ||
🌷अगर वमन कर्म का अनुभव है तो पूर्व में वमन कराने पर , बहुत जल्दी रोगी को राहत मिलती है | अगर रोगी बलवान , युवा है तो अच्छे परिणाम आते हैं |

 गुड़ और तेल की मात्रा महोदय???🙏🏻

श्वास कास के वेगके समय
विक्स वेपोरब का steam inhalation अत्यधिक लाभकारी सिद्ध हुआ है।

 *शुन्ठीभार्गयादि*क्वाथ भी अत्यन्त गुणकारी अनुभूति कराता है।इसीप्रकार भारगी गुड़ भी।

 रोगी व रोग की दशानुसार कम ज्यादा | मात्रा का निर्धारण क्रमश: होगा | शुरु में गुड - १० ग्राम व तैल अवलेहन लायक | तैल जरूर घाणी का है तो ,बहुत उपयुक्त है ||

कफ निष्कासन के लिए सरसो तैल 15मिली गोघृत 5ग्राम,गुड़ 10ग्राम,नागर चूर्ण 3 ग्राम, पिप्पली 1ग्राम,कचूर1/2ग्राम को  कटोरी में डाल भगोनी में  पानी रख कटोरी पानी में रख गरम कर के पिघला के सुबह खाली पेट पिलाने से कफ निकल जाने से रोगी को लाभ मिलता हैं.

सात दिन बाद एक दिन छोड़ कर सात दिन तक फिर सप्ताह में दो बार देते हैं

शुक्रवार, 16 दिसंबर 2016

अशोक

*अशोक के गुण धर्म*
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 अशोक वृक्ष की तीन प्रजाती पाई जाती है इनमें से औषधीय गुण सीता अशोक में ही अधिक होते है जबकि लोग अन्य अशोक की छाल  और यहाँ तक कि कचनार और वरगद तक की छाल अशोक के नाम पर बेची जाती है
*महर्श्रि कश्यपके अनुसार अशोक*

 अशोक को मंगलकारक वृक्ष बताया है | वाराह मिहिर इसे शोकनाशक बताकर घर के सामने लगाने का कह रहें हैं यानि वास्तु विद्या सम्मत है| अग्निपुराण भी इसको उपवन व घर के सामने शुभ बता रहा है| महाकवि इसको मालविकाग्नि मित्र में प्रसन्नता पैदा करने वाला बता रहे हैं | लौकश्रुति है कि महात्मा बुद्ध का जन्म  अशोक वृक्ष की छाया में हुआ था, सो बौद्ध भी इसे पवित्र मानते है | लिंगपुराण में भी यह शोकनाशक बताया है | विष्णु संहिता भी-- अशोक: शोकनाशन:, सत्यनामा भवाशोक: | रामचरित मानस की चौपाई तो प्रसिद्ध ही है:-- सुनहु विनय मम विटप अशोका| सत्य नाम करु हरु मम शोका || साथ ही "ऋतुसंहार"  और " कुमारसंभव" भी वसन्त के उल्लास वर्णन में इसे शोकनाशक बता रहे हैं |
*वनस्पति शास्त्रियों की नजर मै अशोक*
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 वानस्पतिक जगत हमेशा आदरणीय 🌹विलियम जोन्स🌹 का आभारी है, जिन्होंने वनस्पतिशास्त्र में अद्वितीय सेवा दी हैं || 🌷 वेभी जब अशोक वृक्ष को पुष्पित देखे तो शोक रहित हो गए और इसका नाम भी Jonesia Asoka ही रखा|| कुछ काल बाद इसका नाम " सराका अशोका" कर दिया गया ||🌹
 *सुश्रुत*ने रोध्रादि गण में अशोक की गणना की है| यह गण योनिदोषहर, स्तंभक, व्रणरोपक और विषनाशक माना गया है | चरक ने इसको कषायस्कंध में गिना है | अत: यह रक्तशोधक है|< कहा है- व्रण कषाय: संधत्ते- यानि कषाय द्रव्यों के प्रयोग से व्रण के किनारे जुड जाते हैं ||

 इसकी छाल में हीमेटाक्सिलीन टैनिन, कैटेकोल एक सुगन्धित तैल, केरोस्टरोल, ग्लाईकोसाईड, सैपोनिन, कार्बनिक कैल्सियम, लौहे के योगिक पाये जाते हैं | 🌷 मुख्य क्रिया स्टिरायड व कैल्सियम लवणों के कारण होती है |
*असली अशोक छाल*
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 यद्यपि इसके काण्ड की छाल कुछ मोटी एवं वर्ण में लाल होती है, किन्तु अधिकतर छाल इसकी पतली शाखाओ की ही विक्रयार्थ आती है | अत: यह छाल लाल रंग की पतली, मुडी हुई भीतर से कुछ सिकुडी हुई होती है |अशोक त्वक-- पतली नलिकाकार , इसका बाह्य भाग हरित धूसर आभायुक्त किन्तु सूखने पर  रक्ताभ धूसर रंग | उपरी भागपर अनेक गर्त व उत्सेध पाए जाते हैं | आभ़्यान्तरिक भाग चिकना होता है, जिसका रंग लाल होता है |
*नकली अशोक छाल*
 छाल मोटी, कटी-फटी हुई सी, खुरदरी होती है | अन्दर से सौत्रिक तन्तुमय तथा रंग में लाल होती है ||
 *मिलावट*--- असली छाल में ज्यादातर -- काष्ठदारू ( आसापाल- नकली अशोक) की छाल , लाल कांचनार की छाल और वटप्ररोह की की छाल मिला कर बेची जाती है ||:
*प्रदर*
🌹प्रदर की चिकित्सा हेतु चरक व सुश्रुत में अशोक का वर्णन नहीं है | लेकिन चरक ने कषाय गण व सुश्रुत ने रोध्रादि गण में परिगणन करके , इस गुण की इंगित किया है |🌷 प्रदर में सर्वप्रथम प्रयोग संभवत: "सिद्ध योग" के लेखक आचार्य वृन्द ने किया है | इसके पश्चात् शोढल, चक्रपाणि आदि परवर्ती आचार्यों ने इसे प्रदर रोग में विविध कल्पों के रूप में प्रयुक्त किया है |
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*सामान्यतः*अशोक का क्वाथ बलशाली स्त्रियों को लाभप्रद है, ज्यादा निर्बल को दोषों व प्रकृति परखकर क्वाथ या अरिष्ट की योजना करनी चाहिए |( क्योंकि अशोकारिष्ट की संभाषा में यह प्रश्न उठा था ) ||बलहीन स्त्रियों में अशोक छाल का क्षीरपाक हितकर होता है | यह रज: स्राव को नियमित करके बल भी बढाता है |

*अशोक* में विद्यमान "टैनिन" की मात्रा की वजह से पित्त प्रकृति वाली महिलाओं को इससे अपेक्षित लाभ नहीं मिलता है| कई बार रक्तस्राव बढकर क्लान्ति, अरति, ग्लानि आदि उपद्रवों को जन्म देता है ||
🌹दूध के मिश्रण से टैनिन का प्रभाव कम हो जाता है और लाभ की प्राप्ति होती है| इसलिए आचार्यों ने बहुत जगह निर्बल एवं पैत्तिक रोगी को विभिन्न औषधियों के क्षीरपाक के निर्देश दिए हैं *आचार्यसुश्रुत*
|ने सर्पदष्ट चिकित्सा में ऋषभ अगद तथा दुन्दुभिस्वनीय अध्याय में अशोक का वर्णन है | सभी निघण्टुकारों ने इसे कृमिहर कहा है |🌵 लेकिन *राजनिघंटु* में "कृमिकारक" कहा है-- जोकि उचित नहीं है , क्योकि स्वामी *भागीरथ* ने  " कृमिकारक इत्यत्र "कृमिहारक: " पाठो ज्ञेय: | कहकर संशोधन किया है, जो उचित लगता है | क्योकि यह व्रण व कुष्ठ और रक्त विकारों मे भी लाभकारी है||

*अशोक की विविध भैषज कल्पनाएं*


::-- अशोकारिष्ट, अशोक क्षीर पाक, अशोक घृत, शर्बत अशोक, अशोक सार यानि घनसत्व, अशोक अर्क और अशोकावलेह, अशोकादि क्वाथ , अशोकादि पेय, गर्भाशय शोथहर क्वाथ, अबला संजीवन अर्क, अशोकादि चूर्ण, प्रदरहरणी वटी, प्रदरहर चूर्ण आदि ||

 *अशोक क्वाथ*में किंचित फिटकरी डालकर योनि में पिचकारी लगाने या प्रक्षालन  करने से प्रदर में उपयोगी है|

: 🌺अशोकछाल + बबूल छाल + गूलर छाल --- १०-१० ग्राम लेकर पानी में भिगो दें , अर्धांश काढा बनाकर , योनि प्रक्षालन या पिचु या पिचकारी प्रात: सायं देने से प्रदर में लाभकारी |

🌺अशोक छाल + बबूल छाल + लोध्र -- के क्वाथ से योनि प्रक्षालन यन्त्र से  करें | ये तीनों भी कषाय होने से स्तंभक असर दिखाते हैं ||

[: इन उपरोक्त तीनों योगो से शिथिल यौनि का संकोच होने लगता है ||

: *सुवर्ण प्राप्ति हेतु योग*


 ( सुन्दरता वर्धन योग ) ::---
असली अशोक के क्वाथ में पीली सरसों उबलकर ( क्वाथ इतना डालें कि सरसो पी जाए व उबालने जलीयांश उड जाए , क्वाथ बचना न चाहिए ) , थोडे समय धूप लगाकर , छाया में सुखाकर रख ले || 🌹 फिर अशोक के क्वाथ में पीसकर चटनी बनाकर , उबटन लगावें | शरीर का वर्ण सुन्दर होता है, कील मुहांसे मिटते हैं ||

बुधवार, 7 दिसंबर 2016

Trikantakadi Guggulu

Trikantakadi Guggulu--- Ingredients, Benefits, Dose, Limitations

Just like any other disorders, Ayurveda expertises in the treatment of urinary disorders. We can find many effective formulations in the core of Ayurvedic treatises which are used in treating difficult diseases of urinary system. Trikantakadi Guggulu is one such wonderful formulation used in effective treatment of dysuria, urinary diseases and urinary stones. .

Meaning--
Trikantakadi Guggulu, this term can be split into 2 components:
Trikantakadi which means Trikantaka (Gokshura or Tribulus terrestris) and other herbs 
Guggulu means Commiphora  mukul

Thus Trikantakadi means a medicinal formulation or compound prepared with Trikantaka as the chief ingredient, with Guggulu as base ingredient (which is also other chief ingredient). 

Trikantakadi Guggulu is one of the popular Guggulu Kalpas. Guggulu Kalpas are a set of formulations which are prepared with Guggulu or Commiphora mukul as the chief ingredient. The name of the Kalpas change according to the ingredients used the methods in which they are prepared or the diseases in which they are indicated.

Indications  and benefits  of Trikantakadi Guggulu--

Trikantakadi Guggulu is used to treat the below said conditions

Prameha – Urinary disorders, DiabetesPradara – Menorrhagia (excessive uterine bleeding)Mutraghata – diseases wherein there is obstruction to the free flow of urineMutrakrichchra – difficulty to pass urine or painful micturation (dysuria)Ashmari – urinary calculi (stones in the urinary tract)Shukra doshas – contamination and diseases of the semen (reproductive tissue)

Simily--

Trikantakadi Guggulu is said to ward off the above said diseases just like the wind with high velocity will scatter and destroy the clouds.

Trikantakadi Guggulu– Ingredients and method of preparation
त्रिकण्टकानां क्वथिते अष्ट निध्ने पुरं पचेत् पाक विधान युक्त्या।
फल त्रिक व्योष पयो धराणां चूर्णं पुरेण प्रमितं प्रदध्यात्॥
वटी प्रमेहं प्रदरं च मूत्राघातं च कृच्छ्रं च तथा अश्मरीं च।
अहुक्रस्य दोषान् सकलां च वातान् निहन्ति मेघान् इव वायु वेगः॥(यो.र.मूत्राकृच्छ्र चिकित्सा.१,२)
Trikantakaanaam kwathite ashta nidhne puram pachet paaka vidhaana yuktyaa
Phala trika vyosha payo dharaanaam choornam purena pramitam pradadhyaat
Vatee prameham pradaram cha mootraaghaatam cha kruchchram cha tathaa ashmareem cha
Shukrasya doshaan sakalaam cha vaataan nihanti meghaan iva vaayu vegaha (Ref – Yoga Ratnakara Mutrakrichchra Chikitsaa, 1,2)

The below mentioned are ingredients of Trikantakadi Guggulu:

Gokshura – Tribulus terrestris
Guggulu – Commiphora mukul
Haritaki – Terminalia chebula
Bibhitaki – Terminalia bellirica
Amalaki – Phyllanthus Emblica / Emblica officinalis (Indian gooseberry)
Pippali – Piper longum (long pepper)
Maricha – Black pepper
Shunti – Ginger
Musta – Cyperus rotundus

Method of preparation –
Preparation of Gokshura Kwatha – First the decoction of Gokshura (Tribulus terrestris) should be prepared. For this, 1 portion of coarse powder of Gokshura is boiled with 16 times water on moderate fire, until 1/8th portion of the liquid remains. This is filtered and the filtrate is collected.
Processing Guggulu – The Guggulu is heated in the above said Kashaya or Kwatha and is processed.

Adding other ingredients – When the Guggulu has been properly processed in the Gokshura Kwatha, the powder of Triphala (i.e. Haritaki, Bibhitaki and Amalaki), powder of Trikatu (Pippali, Maricha and Shunti) and powder of Musta are added and thoroughly mixed until a semisolid material is obtained. The quantity of all the powders put together should be equal to that of the quantity of Guggulu.

When the contents cool down, tablets should be prepared from them. Tablets should be dried in shade and stored in air tight vessels or containers. The tablets can be consumed fresh.
The tablets thus obtained are called Trikantakadi Guggulu.

Dose –  1-2 tablets per day or as directed by the physician

Vehicle (Anupana) –
The medicine should be taken with Ushnodaka (hot water) or any Kashaya / kwatha which act on the uro-genital system like Brihatyadi Kashayam, Sukumara Kashayam, Vidaryadi Kashayam, Nishakatakadi Kashayam, etc or as directed by the physician. The tablet shall be used with different vehicles in urinary disorders (mutrakrichra, mutraghata, prameha etc), diabetes (madhumeha), gynaecological disorders or diseases pertaining to uterus (pradara etc).

Specialty and probable mode of action of Trikantakadi Guggulu –
Trikantakadi Guggulu is a combination of Gokshura and Guggulu, with inclusions of Triphala, Trikatu and Musta.
Seeing the indications, it is clear that the medicine is prescribed in urinary and genital disorders.

The whole ingredients are processed in the decoction of Gokshura, which by itself is a good diuretic and aphrodisiac. Gokshura is also used extensively in the treatment of urinary disorders like Mutrakrichra (dysuria or difficulty in passing urine), Mutraghata (obstruction to passage of urine), Mutra ashmari (urinary stones) and Prameha (urinary disorders, diabetes mellitus).
Gokshura along with Guggulu and other ingredients have potential anti-inflammatory action.

Most of these diseases are caused by vitiated kapha with association of either morbid vata or pitta. The whole compound has potential kapha alleviating property. Morbid kapha tends to trespass into the sites of Vata wherein the urinary and genital apparatus are present, mainly controlled by Apana Vayu. Apana Vayu helps in easy discharge of urine, semen, stools and menstrual blood. The kapha gravitated due to the pulling effect of vata, blocks the apana vayu functions and blocks the excretion of all these elements. This is the cause of many urinary and genital disorders mentioned above. By clearing the blocks caused by morbid kapha, the whole compound clears the channels and pathways for these elements to be eliminated properly in proper time.

Triphala also clears the constipation and urinary blocks. Constipation is many times a causative factor for urinary obstruction and menstrual disorders, dysmenorrhoea, dysuria etc conditions.

Triphala, Musta, Trikatu and Triphala have good vata alleviating property. When Vayu gets controlled, all the activities will be conducted in a smooth way.

Triphala and Gokshura are very good herbs in dealing with the contamination of semen by doshas (veerya dosha). The compound as a whole will also act on endometrial functions and correct uterine disorders, menorrhagia and dysmenorrhoea. Pradara (menorrhagia) is caused due to apana vata dysfunctions being associated with either morbid kapha, which blocks the vayu functions or morbid pitta which causes inflammation. The whole compound acts effectively to reduce swelling and inflammation. This reduces the quantum of bleeding in the consecutive periods, but care should be taken not to administer it during the bleeding phase, it should be administered in inter-menstrual phase.

Apart from being a potential laxative, Triphala has Rasayana properties (rejuvenation, anti-ageing, immune modulator) which helps in effective healing and also in preventing relapses. It also acts as an anti-inflammatory and also reduces oedema in the genito-urinary passages.

Guggulu is the best in the business of rectifying and stabilizing the metabolic errors. It removes blocks in various channels of the body and facilitates easy transportation of nutrients and essentials. Guggulu effectively alleviates Vata which is basically the causative factor for all the painful and obstructive conditions.

The vata alleviating property of Trikatu, Guggulu and Triphala in the compound imparts a total and comprehensive effect on the morbid Vata. The laxative property of Triphala helps in pushing the vitiated Vata in a downward direction, hence clearing the lower passages and keeping the abdomen and pelvis clean and sterile.

Limitations of Trikantakadi Guggulu –
Trikantakadi Guggulu is an excellent remedy for uro-genital diseases but should be skilfully chosen. It is not wise to try this remedy in the presence of large urinary stones, when the causes of urinary obstruction is not known and if there is any serious disorder at the backdrop of urinary blockage, in conditions of heart diseases and kidney diseases and in kidney damage or failure.

It should be used under observation in people who are suffering from hypertension or any serious illness of chronic origin, in pregnancy and during active severe bleeding. It is not a single handed remedy in the mentioned disorders and shall need the support of co-prescriptions in the form of disease modifying formulations.

Its action will be enhanced when used along with or following Virechana (therapeutic purgation), vasti (therapeutic enemas), uttara vasti (enemas administered through urinary or genital passages) or external therapies like avagaha (tub bath) etc.

Just before finishing –
Try Ayurvedic way of treatment and medication to enjoy better quality and quantity of health.

Trikantakadi Guggulu might not be a universal remedy for the above said conditions in everyone, because the treatment and medication differs from person to person depending on their Prakriti (birth constitution) and Vikriti (nature of morbidity). Other disease modifying medicines might be required to enhance the effect of this compound

*Ayurvedic Medicine for Kidney Failure

Sarvatobhadra Vati --
Ayurvedic Medicine for Kidney Failure
Sarvatobhadra Vati is a main medicines used for kidney failure in ayurveda. Other medicines also require in the management of kidney failure according to the humors (VATA PIT KAPHA) involvement, but Sarvatobhadra Vati works as a RASAYANA (Rejuvenation agent).
The author of BHAISHAJYA RATNAVALI has described the use of Sarvatobhadra Vati in renal diseases. Other medicines for kidney failure in ayurveda are MAHESHVAR VATI, which is also mentioned in same chapter of VRIC ROGA CHIKITSA PRAKARNA.
Ingredients of Sarvatobhadra Vati
Swarna Bhasma
18 mg
 Rajat Bhasms
18 mg
Abharaka Bhasma
18 mg
Loha Bhasma
18 mg
Shilajit
18 mg
Purified Gandhaka
18 mg
Swarn Mashika Bhasma
18 mg
Varuna (Crataeva nurvala)
For Decoction – Q.S.
All ingredients are taken in equal quantity and grinded in decoction of Crataeva nurvala. Adding Abhrak Bhasma 1000 Puti in instead plane Abhrak Bhasma has good results.
Therapeutic Indications
Sarvatobhadra Vati is beneficial in following diseases:
NephritisNephrotic syndromePolycystic kidney diseaseEnd Stage Renal DiseaseNephromegaly (Enlargement of kidneys)Nephrogenic diabetes insipidusNephritis (inflammation of kidneys)Glomerulonephritis (inflammation of the glomeruli)Interstitial nephritis or tubulo-interstitial nephritisUrinary tract infections along with ayurvedic Alkalizer
Benefits & uses of Sarvatobhadra Vati
Sarvatobhadra Vati is mainly used in kidney diseases along with Chandraprabha vati or Shiva Gutika, Shilajeet Capsule, Punarnava, Gokhshur, etc.
RELATED
However, if it is used alone in kidney failure without using Chandraprabha vati or Shiva Gutika, it is not effective. It is because it works as only RASAYANA for kidneys and it needs support from other ayurvedic medicines.
How to use it in kidney failure
Here is description according to DOSHA.
Kidneys are situated in place of PITTA humor, but play a crucial role in VATA functions. Secondly, the blockage in kidney occurs due to AMA toxin or aggravated KAPHA humor.
Therefore, treatment of renal failure should be according to the dominance of a particular humor. The disease is TRIDOSHA type.
VATA DOSHA Dominance
Vata Dosha in kidney failure is always involved, but the careful evaluation can help to detect the dominance of any DOSHA in the disease. Some VATA DOSHA symptoms in kidney failure are:
Dry skinsevere headacheFrequent hiccupsShortness of breathWeaknessInsomnia or sleeplessnessLoss of tasteNumbnessBone painDark skin
If above symptoms present in the patient, then go for following treatment.
Medicines with milk
Sarvatobhadra Vati
125 mg with milk
Chandraphrabha Vati
1 gram with milk
Shilajeet
500 mg with milk
Ashwagandha
2 grams with milk
Long pepper
125 mg with milk
Decoction of following combination
Giloy
2 grams
Gokhshur (tribulus terrestris)
2 grams
Trinpanchamool
6 grams
Take 200 ml water and add above coarse powders of above herbs.Boil and simmer the water with herbs until the water remains about 50 ml.Drink this decoction twice a day.
PITTA DOSHA Dominance
In DOSHA Pitta Dosha dominance, your doctor will find the following symptoms, signs or associated diseases:
Burning urinationBurning sensation in abdomenHeat in feet or burning sensation in feetHeartburnBitter taste in mouth Sour taste of mouth VertigoDarkness in front of eyes while standingHeart palpitation
Other symptoms of PITTA DOSHA can also be present.
Treatment of PITTA case
Chandraprabha Vati
1 gram with milk
 Arjun bark powder 
2 grams with milk
 Sarvatobhadra Vati
Sarvatobhadra Vati
125 mg with Gokhsur decoction
Decoction of following combination
Trinpanchamool
6 grams
Pitpapra (fumaria vaillantii)
2 grams
Coriander seeds
1 gram
Medicines with water
 GILOY Satva
1 gram
Avipattikar churna
3 grams before meal
KAPHA DOSHA Dominance
Your doctor may detect following signs in  KAPHA DOSHA dominance.
Dull headacheLoss of appetiteHeaviness in abdomenLaziness or sleepiness Salty test in mouth Sweet taste in mouthWhite layer on the tongue
Other symptoms may also present. The following treatment is effective in this case.
Treatment of KAPHA Case
Chandraprabha vati
1 gram with milk
Sarvatobhadra Vati
125 mg with varuna decoction
Churna effective in KAPHA case
Punarnava powder
3 grams
Kutki
500 mg
Nagarmotha
250 mg
Black pepper
50 mg
Long pepper
50 mg
NOTE
Generally, patients have mixed symptoms, so doctor has to decide the treatment according to each symptom and herbs according to intensity of primary dominance, secondary dominance and tertiary dominance of the humors. It needs a careful analysis of each symptom and feeling of the patient. Misdiagnosis can cause failure of ayurevdic treatment.
Dosage & Administration
Dose: 125 mg to 250 mg twice a day
Sarvatobhadra Vati should be taken preferably before meal or on empty stomach. The following adjuvants help according to humors involvement.
Suitable Adjuvant
In VATA Dominance
With Milk & Shilajeet
In PITTA Dominance
Gokhshur Decoction
In KAPHA Dominance
Varuna Decoction
Sarvatobhadra Vati can be taken on regular basis for 4 to 8 weeks months if dosage is 1 tablet or 250 mg twice daily if the urine output is normal. After that, Sarvatobhadra Vati should be skipped for 1 to 2 weeks. Taking it with Chandraprabha vati is more useful and it may not work alone in some cases.
Side effects of Sarvatobhadra Vati
Sarvatobhadra Vati contains mineral compounds, so it should be used under medical supervision. It does also not work alone, patients may need other medicines according to TRIDOSHA, and so it is suggestible that patients should use this under the guidance of ayurevdic physician.
Pregnancy
Safety and efficacy is not established.
Breastfeeding
Safety and efficacy is not established.
Reference
Chapter 93, VRIC ROGA CHIKITSA PRAKARNA, BHAISHAJYA RATNAVALI

मंगलवार, 6 दिसंबर 2016

*आहार असात्म्यता चिकित्सा---Management of Food Allergy

चिकित्सा के लिए आने वाले 100 रोगियों में से लगभग 2-4 रोगी ऐसे आ ही जाते हैं, जो शिकायत करते हैं कि कभी-कभी मैं 'कुछ' खाता/खाती हूँ तो -
● मेरा मन ख़राब होने लगता है, पेट में दर्द होने लगता है; उलटी व पतले दस्त होने लगते हैं;
● मुझे सारे शरीर में खुजली (Itching) होने लगती है व त्वचा पर चकत्ते (Urticaria) पड़ जाते हैं ;
● मेरे होंठ, मुँह, व गला एकदम सूज जाते हैं व इनमें छाले पड़ जाते हैं (Angioedema);
● मुझे बहुत कमजोरी लगाने लगती है, दिल घबराने / बैठने लगता है, और तो और साँस लेने में तक़लीफ़ होने लगती है (Anaphylaxis)।
अक्सर ऐसा मूंगफली, दूध, अंडे, सोयाबीन, मछली आदि के खाने के बाद होता है। बहुत से लोगों को बाज़ार में उपलब्ध कई प्रकार के तथाकथित 'फ्रैश फ्रूट ज्यूस' भी ऐसा करते हैं, जहाँ वास्तविक दोषी इनमें रहने वाला बैन्जोइक एसिड रहता है।
आयुर्वेद इस प्रकार के आहार द्रव्यों को उस व्यक्ति विशेष के लिए असात्म्य मानता है तथा इनसे होने वाले रोगों / कष्टों को असात्म्यता (Hypersensitivity reactions) कहता है।
असात्म्यता (Hypersensitivity reactions) असात्म्य आहार द्रव्य के सेवन करने के तत्काल बाद (Immediate) भी हो सकती है, अथवा कुछ अन्तराल (Delayed) के बाद भी।
*सम्प्राप्ति (Etio-pathogenesis):*
असात्म्यता मुख्यतः वातज रोग है। असात्म्य आहार-द्रव्य के देह के साथ सम्पर्क में आने के बाद वात-दोष (Neuro-endocrine system) क्रियाशील (Activate / stimulate) हो जाता है व असात्म्य आहार-द्रव्य को देह के लिए हानिकारक मानते हुए, इसे एक आपातकालीन स्थिति मानता है, व इसका प्रतिकार करने के लिए कफ / ओज (Defence system) व पित्त (Enzyme system) को क्रियाशील करते हुए, कई प्रकार की प्रक्रियाओं (Mechanisms) व परिवर्तित क्रियाओं (Altered functions) द्वारा इस स्थिति का मुकाबला करने का प्रयास करता है।
रोगी को होने वाले कष्ट बहुधा इन्हीं नवीन प्रक्रियाओं (Mechanisms) व परिवर्तित क्रियाओं (Altered functions) के परिणामस्वरूप होते हैं, जिनका उद्देश्य मुख्य रूप से रोगी की सुरक्षा करना ही होता है।
*चिकित्सा (Management):*
निम्न औषधियाँ / औषध-योग अपने वातशामक, वात-कफशामक, व वात-पित्तशामक कर्मों से आहार असात्म्यता-जन्य रोगों की चिकित्सा में लाभकारी सिद्ध हो सकते हैं; चिकित्सक यथावश्यक इनका युक्तिपूर्वक उपयोग करे -
*I. असात्म्य हर / आमदोषहर औषधियाँ (Anti-allergic drugs):*
● शटी, मधुयष्टी, ज़हरमोहरा, यशद
● दुग्धिका, कण्टकारी, हरिद्रा, शिरीष इत्यादि।
*II. दीपन-पाचन-संग्राही औषधियाँ (G.I. Correctives):*
● अतिविषा, पञ्चामृत पर्पटी, शंख, पिप्पली
● शुण्ठी, मरिच, मुस्तक इत्यादि।
*III. Anti-inflammatory drugs (शोथहर औषधियाँ):*
● शल्लकी, एरण्डमूल, जातीफल
● गुग्गुलु, दशमूल, रास्ना, मधुयष्टी इत्यादि।
*IV. रसायन औषधियाँ (Immuno-modulators):*
● शिलाजतु, आमलकी, मुक्ताशुक्ति, अभ्रक, यशद
● अश्वगंधा, गुडूची, हरीतकी, हरिद्रा, कटुकी, भल्लातक इत्यादि।
*V. प्राणवर्धक औषधियाँ (Life-saving drugs):*
● स्वर्ण (मकरध्वज, हेमगर्भपोट्टली रस, याकूति रसायन, बृ. कस्तूरीभैरव रस, जवाहरमोहरा);
● अर्जुन, अकीक, ज़हरमोहरा, गण्डीर, वनपलाण्डू
● नागरबेल, कर्पूर, हिंगु इत्यादि।
*VI. असात्म्य आहार परिवर्जनम् (Eliminate the offending foods)*

शनिवार, 3 दिसंबर 2016