बुधवार, 17 मई 2017

अतिस ---- औषधीय प्रयोग और स्वास्थ्य लाभ

बच्चो के पाचन संस्थान एवं श्वसन संस्थान की यह एक उत्तम औषधि है , जो हिमालय क्षेत्र में पायी जाती है | इसका क्षुप 1 से 3 फुट ऊँचा सीधा शाखाओ से युक्त होता है | इस वनौषधि का ज्ञान हमारे आयुर्वेदाचार्यो को प्राचीन समय से ही था , प्राय सभी रोगों को हरने वाली इस औषधि को शास्त्रों में विश्वा या अतिविश्वाके नाम से उल्लेखित किया गया है | इसकी विशेषता यह है की यह विष वर्ग वत्सनाभ के कुल की होने के बाद भी विषैली नहीं है एवं इसका सेवन मनुष्य को चारो तरफ से स्वास्थ्य लाभ देता है | अतिस के पत्र 2 से 4 इंच लम्बे होते है जो उपर से लट्वाकर होते है , इसके पुष्प हरिताभ नील वर्ण के एवं चमकीले होते है जो मंजरी के रूप में लगते है | अतिस के फल गोल होते है और 5 कोशो वाले होते है जिनमे बीज उपस्थित रहते है |


अतिस का मूल ही मुख्य रूप से औषध उपयोग में लिया जाता है , जो की दो कंदों के रूप में होता है | इसमें 
से एक कंद पिछले वर्ष का और दूसरा कंद इसी वर्ष का होता है | अतिस का ताजा कंद 1 से 1.5 इंच लम्बा और .5 इंच मोटा होता है | इसकी कंद का वर्ण ऊपर से धूसर एवं तोड़ने पर सफ़ेद रंग का और अन्दर काली बिंदियो से युक्त होता है |

अतिस के पर्याय 

संस्कृत - अतिविषा , विश्वा, घुन्बल्ल्भ, श्रंगी , शुक्लकंदा , भंगुरा, घुणप्रिय , काश्मीरा |

हिंदी - अतिस 

मराठी - अतिविष

बंगला - आतिच 

गुजराती - अतिवखनी, कली, वखमी, अतिवस, अतिविषा

पंजाबी - अतिस, सुखी हरी, चितिजड़ी, पत्रिश, बोंगा 

लेटिन - Aconitum Heterophyllum

अतिस का  रासायनिक संगठन 

अतिस के मूल में अतिसिन ( Atisine ), हेटेरेतेसैन (Heteratisine) , एतिदीन (Atidine), हेतिदीन (Hetidine), हेतेरोफ्य्ल्लिसिने (Heterophyllisine) , आइसोएतिसिन (Isotisine) , स्टार्च और तिक्त क्षार आदि मौजूद होते है |

अतिस के गुणकर्म और रोगप्रभाव 

अतिस दीपन , पाचन, ग्राही, ज्वरातिसरनाशक , क्रमिघ्न, कास नाशक, एवं अर्शोघ्न, बालको के छर्दी , कास आदि रोगों में विशेष लाभकारी है | अतिस की मूल वाजीकारक, पाचक, ज्वार्घन, कटु, बलकारक, कफशामक, अमाशयक्रिया वर्धक , अर्श, रक्तस्राव , शोथ और सामान्य दुर्बलता में लाभकारी है |

अतिस का औषधीय प्रयोग और स्वास्थ्य लाभ 

1. श्वास - कास 

⇒श्वास-कास में 5 ग्राम अतिस मूल के चूर्ण को 2 चम्मच शहद के साथ मिलाकर चाटने से खांसी में आराम मिलता है एवं कफ शरीर से निकलता है 

⇒अतिस चूर्ण 2 ग्राम  के साथ पुष्कर मूल चूर्ण 1 ग्राम मिला ले और इसे शहद के साथ सुबह शाम चाटें | श्वास - कास रोग में तुरंत आराम मिलेगा |

⇒अस्थमा आदि में अतिस चूर्ण , नागरमोथा, कर्कटश्रंगी तथा यवक्षार इन सभी को सामान मात्रा में लेकर इनको 2 से 3 ग्राम की मात्रा में शहद के साथ सेवन करे | अस्थमा या दमा रोग में  यह बेहद कारगर है |

2. बालरोग 

⇒अतिस की मूल को पिसकर चूर्ण बनाले और इसे शीशी में भरकर रखे | बालको के सभी रोग जैसे - उदरशूल,ज्वर, अतिसार आदि में 250 से 500 mg शहद के साथ दिन में दो या तीन बार चटाए |

⇒अतिसार ( दस्त ) और आमातिसार में 2 ग्राम अतिस चूर्ण देकर , 8 घंटे तक पानी में भिगोई हुई 2 ग्राम सोंठ को पीसकर पिलाने से लाभ होता है |इसका प्रयोग तब तक करे जब तक अतिसार बंद ना हो जावे |

⇒अगर बच्चो के पेट में कीड़े हो तो 2 ग्राम अतिस और 2 ग्राम वायविडंग का चूर्ण लेकर शहद के साथ बचो को चटाने से पेट के कीड़े नष्ट होजाते है |

3. उदर रोग में अतिस का प्रयोग 

⇒वमन में 1 ग्राम अतिस चूर्ण और 2 ग्राम नागकेशर चूर्ण को मिलकर सेवन करने से वमन जल्दी ही रुक जाता है |

⇒पाचन शक्ति कमजोर हो तो 2 ग्राम अतिस चूर्ण के साथ 1 ग्राम सोंठ का चूर्ण या 1 ग्राम पिप्पली का चूर्ण मिलाकर शहद के साथ चाटने से पाचन शक्ति मजबूत बनती है एवं पाचन से सम्बंधित सभी रोगों में लाभ मिलता है |

⇒रक्तपित की समस्या में 3 ग्राम अतिस चूर्ण के साथ 3 ग्राम इन्द्र्जौ की छाल का चूर्ण मिळाले और इसे शहद के साथ सुबह- शाम चाटें | रक्तपित की समस्या के साथ साथ अतिसार में भी तुरंत लाभ मिलेगा |

 ⇒गृहणी रोग में अतिस, सोंठ और नागरमोथा को मिलकर इनका क्वाथ तैयार करले | इसका सेवन सुबह- शाम गुनगुने जल के साथ करे | इससे गृहणी रोग में आम दोष का  पाचन होता है |

⇒मन्दाग्नि में अतिस, सोंठ, गिलोय और नागरमोथा को सामान  मात्रा में लेकर इनका काढ़ा बनाले | इसके सेवन से भूख  खुलकर लगती है एवं पाचन क्रिया में सुधर होता है |

⇒अतिस के 2 ग्राम चूर्ण को हरेड के मुरबे के साथ खाने से अमातिसर में लाभ मिलता है |

4. अन्य रोगों में अतिस का घरेलु उपयोग 

⇒अर्श रोग में अतिस के साथ राल और कपूर मिलकर , धुंवा देने से रक्तार्श में फायदा मिलता है |

⇒शरीर या यौन दुर्बलता में अतिस के 2 ग्राम चूर्ण के साथ इलाइची और वंस्लोचन को मिलाकर , मिश्री युक्त दूध के साथ सेवन करने से शरीर में बल बढ़ता है एवं यौन कमजोरी भी जाती रहती है |

⇒ज्वर् रोग में अतिस के 1 ग्राम चूर्ण को गरम पानी के साथ दिन में 3 बार सेवन करने से जल्दी ही बुखार उतर जाता है |

⇒विषम ज्वर में अतिस के 1 ग्राम चूर्ण के साथ कुनैन मिलाकर दिन में तीन या चार बार सेवन करवाने से विषम ज्वर में जल्दी ही आराम आता है |

⇒यौन शक्ति की वर्द्धि के लिए अतिस चूर्ण 5 ग्राम को शक्कर या दूध के साथ सेवन करे | इससे जल्दी ही यौन शक्ति में इजाफा होता है |