*अशोक के गुण धर्म*
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अशोक वृक्ष की तीन प्रजाती पाई जाती है इनमें से औषधीय गुण सीता अशोक में ही अधिक होते है जबकि लोग अन्य अशोक की छाल और यहाँ तक कि कचनार और वरगद तक की छाल अशोक के नाम पर बेची जाती है
*महर्श्रि कश्यपके अनुसार अशोक*
अशोक को मंगलकारक वृक्ष बताया है | वाराह मिहिर इसे शोकनाशक बताकर घर के सामने लगाने का कह रहें हैं यानि वास्तु विद्या सम्मत है| अग्निपुराण भी इसको उपवन व घर के सामने शुभ बता रहा है| महाकवि इसको मालविकाग्नि मित्र में प्रसन्नता पैदा करने वाला बता रहे हैं | लौकश्रुति है कि महात्मा बुद्ध का जन्म अशोक वृक्ष की छाया में हुआ था, सो बौद्ध भी इसे पवित्र मानते है | लिंगपुराण में भी यह शोकनाशक बताया है | विष्णु संहिता भी-- अशोक: शोकनाशन:, सत्यनामा भवाशोक: | रामचरित मानस की चौपाई तो प्रसिद्ध ही है:-- सुनहु विनय मम विटप अशोका| सत्य नाम करु हरु मम शोका || साथ ही "ऋतुसंहार" और " कुमारसंभव" भी वसन्त के उल्लास वर्णन में इसे शोकनाशक बता रहे हैं |
*वनस्पति शास्त्रियों की नजर मै अशोक*
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वानस्पतिक जगत हमेशा आदरणीय 🌹विलियम जोन्स🌹 का आभारी है, जिन्होंने वनस्पतिशास्त्र में अद्वितीय सेवा दी हैं || 🌷 वेभी जब अशोक वृक्ष को पुष्पित देखे तो शोक रहित हो गए और इसका नाम भी Jonesia Asoka ही रखा|| कुछ काल बाद इसका नाम " सराका अशोका" कर दिया गया ||🌹
*सुश्रुत*ने रोध्रादि गण में अशोक की गणना की है| यह गण योनिदोषहर, स्तंभक, व्रणरोपक और विषनाशक माना गया है | चरक ने इसको कषायस्कंध में गिना है | अत: यह रक्तशोधक है|< कहा है- व्रण कषाय: संधत्ते- यानि कषाय द्रव्यों के प्रयोग से व्रण के किनारे जुड जाते हैं ||
इसकी छाल में हीमेटाक्सिलीन टैनिन, कैटेकोल एक सुगन्धित तैल, केरोस्टरोल, ग्लाईकोसाईड, सैपोनिन, कार्बनिक कैल्सियम, लौहे के योगिक पाये जाते हैं | 🌷 मुख्य क्रिया स्टिरायड व कैल्सियम लवणों के कारण होती है |
*असली अशोक छाल*
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यद्यपि इसके काण्ड की छाल कुछ मोटी एवं वर्ण में लाल होती है, किन्तु अधिकतर छाल इसकी पतली शाखाओ की ही विक्रयार्थ आती है | अत: यह छाल लाल रंग की पतली, मुडी हुई भीतर से कुछ सिकुडी हुई होती है |अशोक त्वक-- पतली नलिकाकार , इसका बाह्य भाग हरित धूसर आभायुक्त किन्तु सूखने पर रक्ताभ धूसर रंग | उपरी भागपर अनेक गर्त व उत्सेध पाए जाते हैं | आभ़्यान्तरिक भाग चिकना होता है, जिसका रंग लाल होता है |
*नकली अशोक छाल*
छाल मोटी, कटी-फटी हुई सी, खुरदरी होती है | अन्दर से सौत्रिक तन्तुमय तथा रंग में लाल होती है ||
*मिलावट*--- असली छाल में ज्यादातर -- काष्ठदारू ( आसापाल- नकली अशोक) की छाल , लाल कांचनार की छाल और वटप्ररोह की की छाल मिला कर बेची जाती है ||:
*प्रदर*
🌹प्रदर की चिकित्सा हेतु चरक व सुश्रुत में अशोक का वर्णन नहीं है | लेकिन चरक ने कषाय गण व सुश्रुत ने रोध्रादि गण में परिगणन करके , इस गुण की इंगित किया है |🌷 प्रदर में सर्वप्रथम प्रयोग संभवत: "सिद्ध योग" के लेखक आचार्य वृन्द ने किया है | इसके पश्चात् शोढल, चक्रपाणि आदि परवर्ती आचार्यों ने इसे प्रदर रोग में विविध कल्पों के रूप में प्रयुक्त किया है |
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*सामान्यतः*अशोक का क्वाथ बलशाली स्त्रियों को लाभप्रद है, ज्यादा निर्बल को दोषों व प्रकृति परखकर क्वाथ या अरिष्ट की योजना करनी चाहिए |( क्योंकि अशोकारिष्ट की संभाषा में यह प्रश्न उठा था ) ||बलहीन स्त्रियों में अशोक छाल का क्षीरपाक हितकर होता है | यह रज: स्राव को नियमित करके बल भी बढाता है |
*अशोक* में विद्यमान "टैनिन" की मात्रा की वजह से पित्त प्रकृति वाली महिलाओं को इससे अपेक्षित लाभ नहीं मिलता है| कई बार रक्तस्राव बढकर क्लान्ति, अरति, ग्लानि आदि उपद्रवों को जन्म देता है ||
🌹दूध के मिश्रण से टैनिन का प्रभाव कम हो जाता है और लाभ की प्राप्ति होती है| इसलिए आचार्यों ने बहुत जगह निर्बल एवं पैत्तिक रोगी को विभिन्न औषधियों के क्षीरपाक के निर्देश दिए हैं *आचार्यसुश्रुत*
|ने सर्पदष्ट चिकित्सा में ऋषभ अगद तथा दुन्दुभिस्वनीय अध्याय में अशोक का वर्णन है | सभी निघण्टुकारों ने इसे कृमिहर कहा है |🌵 लेकिन *राजनिघंटु* में "कृमिकारक" कहा है-- जोकि उचित नहीं है , क्योकि स्वामी *भागीरथ* ने " कृमिकारक इत्यत्र "कृमिहारक: " पाठो ज्ञेय: | कहकर संशोधन किया है, जो उचित लगता है | क्योकि यह व्रण व कुष्ठ और रक्त विकारों मे भी लाभकारी है||
*अशोक की विविध भैषज कल्पनाएं*
::-- अशोकारिष्ट, अशोक क्षीर पाक, अशोक घृत, शर्बत अशोक, अशोक सार यानि घनसत्व, अशोक अर्क और अशोकावलेह, अशोकादि क्वाथ , अशोकादि पेय, गर्भाशय शोथहर क्वाथ, अबला संजीवन अर्क, अशोकादि चूर्ण, प्रदरहरणी वटी, प्रदरहर चूर्ण आदि ||
*अशोक क्वाथ*में किंचित फिटकरी डालकर योनि में पिचकारी लगाने या प्रक्षालन करने से प्रदर में उपयोगी है|
: 🌺अशोकछाल + बबूल छाल + गूलर छाल --- १०-१० ग्राम लेकर पानी में भिगो दें , अर्धांश काढा बनाकर , योनि प्रक्षालन या पिचु या पिचकारी प्रात: सायं देने से प्रदर में लाभकारी |
🌺अशोक छाल + बबूल छाल + लोध्र -- के क्वाथ से योनि प्रक्षालन यन्त्र से करें | ये तीनों भी कषाय होने से स्तंभक असर दिखाते हैं ||
[: इन उपरोक्त तीनों योगो से शिथिल यौनि का संकोच होने लगता है ||
: *सुवर्ण प्राप्ति हेतु योग*
( सुन्दरता वर्धन योग ) ::---
असली अशोक के क्वाथ में पीली सरसों उबलकर ( क्वाथ इतना डालें कि सरसो पी जाए व उबालने जलीयांश उड जाए , क्वाथ बचना न चाहिए ) , थोडे समय धूप लगाकर , छाया में सुखाकर रख ले || 🌹 फिर अशोक के क्वाथ में पीसकर चटनी बनाकर , उबटन लगावें | शरीर का वर्ण सुन्दर होता है, कील मुहांसे मिटते हैं ||
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अशोक वृक्ष की तीन प्रजाती पाई जाती है इनमें से औषधीय गुण सीता अशोक में ही अधिक होते है जबकि लोग अन्य अशोक की छाल और यहाँ तक कि कचनार और वरगद तक की छाल अशोक के नाम पर बेची जाती है
*महर्श्रि कश्यपके अनुसार अशोक*
अशोक को मंगलकारक वृक्ष बताया है | वाराह मिहिर इसे शोकनाशक बताकर घर के सामने लगाने का कह रहें हैं यानि वास्तु विद्या सम्मत है| अग्निपुराण भी इसको उपवन व घर के सामने शुभ बता रहा है| महाकवि इसको मालविकाग्नि मित्र में प्रसन्नता पैदा करने वाला बता रहे हैं | लौकश्रुति है कि महात्मा बुद्ध का जन्म अशोक वृक्ष की छाया में हुआ था, सो बौद्ध भी इसे पवित्र मानते है | लिंगपुराण में भी यह शोकनाशक बताया है | विष्णु संहिता भी-- अशोक: शोकनाशन:, सत्यनामा भवाशोक: | रामचरित मानस की चौपाई तो प्रसिद्ध ही है:-- सुनहु विनय मम विटप अशोका| सत्य नाम करु हरु मम शोका || साथ ही "ऋतुसंहार" और " कुमारसंभव" भी वसन्त के उल्लास वर्णन में इसे शोकनाशक बता रहे हैं |
*वनस्पति शास्त्रियों की नजर मै अशोक*
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वानस्पतिक जगत हमेशा आदरणीय 🌹विलियम जोन्स🌹 का आभारी है, जिन्होंने वनस्पतिशास्त्र में अद्वितीय सेवा दी हैं || 🌷 वेभी जब अशोक वृक्ष को पुष्पित देखे तो शोक रहित हो गए और इसका नाम भी Jonesia Asoka ही रखा|| कुछ काल बाद इसका नाम " सराका अशोका" कर दिया गया ||🌹
*सुश्रुत*ने रोध्रादि गण में अशोक की गणना की है| यह गण योनिदोषहर, स्तंभक, व्रणरोपक और विषनाशक माना गया है | चरक ने इसको कषायस्कंध में गिना है | अत: यह रक्तशोधक है|< कहा है- व्रण कषाय: संधत्ते- यानि कषाय द्रव्यों के प्रयोग से व्रण के किनारे जुड जाते हैं ||
इसकी छाल में हीमेटाक्सिलीन टैनिन, कैटेकोल एक सुगन्धित तैल, केरोस्टरोल, ग्लाईकोसाईड, सैपोनिन, कार्बनिक कैल्सियम, लौहे के योगिक पाये जाते हैं | 🌷 मुख्य क्रिया स्टिरायड व कैल्सियम लवणों के कारण होती है |
*असली अशोक छाल*
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यद्यपि इसके काण्ड की छाल कुछ मोटी एवं वर्ण में लाल होती है, किन्तु अधिकतर छाल इसकी पतली शाखाओ की ही विक्रयार्थ आती है | अत: यह छाल लाल रंग की पतली, मुडी हुई भीतर से कुछ सिकुडी हुई होती है |अशोक त्वक-- पतली नलिकाकार , इसका बाह्य भाग हरित धूसर आभायुक्त किन्तु सूखने पर रक्ताभ धूसर रंग | उपरी भागपर अनेक गर्त व उत्सेध पाए जाते हैं | आभ़्यान्तरिक भाग चिकना होता है, जिसका रंग लाल होता है |
*नकली अशोक छाल*
छाल मोटी, कटी-फटी हुई सी, खुरदरी होती है | अन्दर से सौत्रिक तन्तुमय तथा रंग में लाल होती है ||
*मिलावट*--- असली छाल में ज्यादातर -- काष्ठदारू ( आसापाल- नकली अशोक) की छाल , लाल कांचनार की छाल और वटप्ररोह की की छाल मिला कर बेची जाती है ||:
*प्रदर*
🌹प्रदर की चिकित्सा हेतु चरक व सुश्रुत में अशोक का वर्णन नहीं है | लेकिन चरक ने कषाय गण व सुश्रुत ने रोध्रादि गण में परिगणन करके , इस गुण की इंगित किया है |🌷 प्रदर में सर्वप्रथम प्रयोग संभवत: "सिद्ध योग" के लेखक आचार्य वृन्द ने किया है | इसके पश्चात् शोढल, चक्रपाणि आदि परवर्ती आचार्यों ने इसे प्रदर रोग में विविध कल्पों के रूप में प्रयुक्त किया है |
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*सामान्यतः*अशोक का क्वाथ बलशाली स्त्रियों को लाभप्रद है, ज्यादा निर्बल को दोषों व प्रकृति परखकर क्वाथ या अरिष्ट की योजना करनी चाहिए |( क्योंकि अशोकारिष्ट की संभाषा में यह प्रश्न उठा था ) ||बलहीन स्त्रियों में अशोक छाल का क्षीरपाक हितकर होता है | यह रज: स्राव को नियमित करके बल भी बढाता है |
*अशोक* में विद्यमान "टैनिन" की मात्रा की वजह से पित्त प्रकृति वाली महिलाओं को इससे अपेक्षित लाभ नहीं मिलता है| कई बार रक्तस्राव बढकर क्लान्ति, अरति, ग्लानि आदि उपद्रवों को जन्म देता है ||
🌹दूध के मिश्रण से टैनिन का प्रभाव कम हो जाता है और लाभ की प्राप्ति होती है| इसलिए आचार्यों ने बहुत जगह निर्बल एवं पैत्तिक रोगी को विभिन्न औषधियों के क्षीरपाक के निर्देश दिए हैं *आचार्यसुश्रुत*
|ने सर्पदष्ट चिकित्सा में ऋषभ अगद तथा दुन्दुभिस्वनीय अध्याय में अशोक का वर्णन है | सभी निघण्टुकारों ने इसे कृमिहर कहा है |🌵 लेकिन *राजनिघंटु* में "कृमिकारक" कहा है-- जोकि उचित नहीं है , क्योकि स्वामी *भागीरथ* ने " कृमिकारक इत्यत्र "कृमिहारक: " पाठो ज्ञेय: | कहकर संशोधन किया है, जो उचित लगता है | क्योकि यह व्रण व कुष्ठ और रक्त विकारों मे भी लाभकारी है||
*अशोक की विविध भैषज कल्पनाएं*
::-- अशोकारिष्ट, अशोक क्षीर पाक, अशोक घृत, शर्बत अशोक, अशोक सार यानि घनसत्व, अशोक अर्क और अशोकावलेह, अशोकादि क्वाथ , अशोकादि पेय, गर्भाशय शोथहर क्वाथ, अबला संजीवन अर्क, अशोकादि चूर्ण, प्रदरहरणी वटी, प्रदरहर चूर्ण आदि ||
*अशोक क्वाथ*में किंचित फिटकरी डालकर योनि में पिचकारी लगाने या प्रक्षालन करने से प्रदर में उपयोगी है|
: 🌺अशोकछाल + बबूल छाल + गूलर छाल --- १०-१० ग्राम लेकर पानी में भिगो दें , अर्धांश काढा बनाकर , योनि प्रक्षालन या पिचु या पिचकारी प्रात: सायं देने से प्रदर में लाभकारी |
🌺अशोक छाल + बबूल छाल + लोध्र -- के क्वाथ से योनि प्रक्षालन यन्त्र से करें | ये तीनों भी कषाय होने से स्तंभक असर दिखाते हैं ||
[: इन उपरोक्त तीनों योगो से शिथिल यौनि का संकोच होने लगता है ||
: *सुवर्ण प्राप्ति हेतु योग*
( सुन्दरता वर्धन योग ) ::---
असली अशोक के क्वाथ में पीली सरसों उबलकर ( क्वाथ इतना डालें कि सरसो पी जाए व उबालने जलीयांश उड जाए , क्वाथ बचना न चाहिए ) , थोडे समय धूप लगाकर , छाया में सुखाकर रख ले || 🌹 फिर अशोक के क्वाथ में पीसकर चटनी बनाकर , उबटन लगावें | शरीर का वर्ण सुन्दर होता है, कील मुहांसे मिटते हैं ||