शुक्रवार, 23 अक्टूबर 2015

संग्रहणी

संग्रहणी :-
मंदाग्नि के कारण भोजन न पचने पर अजीर्ण होकर दस्त लगते लगते हैं तो यही दस्त संग्रहणी कहलाती है। अर्थात् खाना खाने के बाद तुरंत ही शौच होना या खाने के बाद थोड़ी देर में अधपचा या अपरिपक्व मल निकलना संग्रहणी कही जाती है। इस रोग के कारण अन्न कभी पचकर, कभी बिना पचे, कभी पतला, कभी गाढ़ा कष्ट या दुर्गंध के साथ शौच के रूप में निकलता है। शरीर में दुर्बलता आ जाती है।
वातज संग्रहणी :- जो मनुष्य वातज पदार्थों का भक्षण करे, मिथ्या आहार-विहार करे और अति मैथुन करे तो बादी कुपित होकर जठराग्नि को बिगाड़ देती है। तब वातज संग्रहणी उत्पन्न होती है।
पित्तज संग्रहणी :- जो पुरुष गरम वस्तु का सेवन अधिक करे, मिर्च आदि तीक्ष्ण, खट्टे और खारे पदार्थ खाए तो उसका पित्त दूषित होकर जठराग्नि को बुझा देता है। उसका कच्चा मल निकलने लगता है तब पित्तज संग्रहणी होती है।
कफज संग्रहणी :- जो पुरुष भारी, चिकनी व शीतल वस्तु खाते हैं तथा भोजन करके सो जाते हैं, उस पुरुष का कफ कुपित होकर जठराग्नि को नष्ट कर देता है।
लक्षण :-
वातज :- खाया हुआ आहार कष्ट से पचे, कंठ सूखे, भूख न लगे, प्यास अधिक लगे, कानों में भन-भन होना, जाँघों व नाभि में पीड़ा होना आदि।
पित्तज :- कच्चा मल निकले, पीले वर्ण का पानी मल सहित गुदाद्वार से निकलना और खट्टी डकारें आना।
कफज :- अन्न कष्ट से पचे, हृदय में पीड़ा, वमन और अरुचि हो, मुँह मीठा रहे, खाँसी, पीनस, गरिष्ठता और मीठी डकारें आना।
घरेलू उपचार :-
1........ सोंठ, पीपल, पीपलामूल, चव्य एवं चित्रक का 8 ग्राम चूर्ण नित्य गाय के दूध से बनी छाछ के साथ पिएँ, ऊपर से दो-चार बार और भी छाछ पिएँ तो वात संग्रहणी दूर होगी।
2.......... 8 ग्राम शुद्ध गंधक, 4 ग्राम शुद्ध पारद की कजली, 10 ग्राम सोंठ, 8 ग्राम काली मिर्च, 10 ग्राम पीपली, 10 ग्राम पांचों नमक, 20 ग्राम सेंकी हुई अजवायन, 20 ग्राम भूनी हुई हींग, 24 ग्राम सेंका सुहागा और एक पैसे भर भुनी हुई भाँग-इन सबको पीसकर-छानकर कजली मिला दें। उसके बाद इसे दो दिन बाद भी पीसें तो चूर्ण बन जाए। यह 2 या 4 ग्राम चूर्ण गाय के दूध से बनी छाछ के साथ पीने से वात संग्रहणी मिटती है।
3........... जायफल, चित्रक, श्वेत चंदन, वायविडंग, इलायची, भीमसेनी कपूर, वंशलोचन, जीरा, सोंठ, काली मिर्च, पीपली, तगर, पत्रज और लवंग बराबर-बराबर लेकर चूर्ण बनाकर इन सबके चूर्ण से दुगुनी मिश्री और थोड़ी बिना सेंकी भाँग-ये सब मिलाकर इसमें से 4 या 6 ग्राम चूर्ण गाय के दूध की छाछ के साथ पंद्रह दिनों तक सेवन करें तो पित्त संग्रहणी दूर होगी।
4......... रसोत, अतीस, इंद्रयव, तज, धावड़े के फूल सबका 8 ग्राम चूर्ण गाय के दूध की छाछ के साथ या चावल के पानी के साथ पंद्रह दिनों तक लें तो पित्त संग्रहणी नष्ट होगी।
5......... हरड़ की छाल, पिप्पली, सोंठ, चित्रक, सेंधा नमक और काली मिर्च का 8 ग्राम चूर्ण नित्य गाय के दूध की छाछ के साथ पंद्रह दिन तक सेवन करें तो कफ संग्रहणी दूर होगी।
6.......प्रातः एवं साँय रामबाण रस सादे पानी के साथ। दोपहर मे 250 मिलीग्राम सिद्ध्प्राणेश्वर चावल के पानी से लेने से संग्रहणी रोग से मुक्ति मिलती है।
सभी प्रकार के उदर रोग के लिए शंख भस्म 125 मिलीग्राम, सिद्धप्राणेश्वर 125 मिलीग्राम, रामबाण रस 125 मिलीग्राम, स्वर्ण पर्पटी 60 मिलीग्राम, मकरध्वज 60 मिलीग्राम इन सबको मिलाकर दो पुड़िया बनाकर सुबह शाम भुने हुए जीरे और शहद के साथ लें।
प्रातःकाल मूंग-चावल की खिचड़ी खाएं। शाम को शुद्ध घी का हलवा खाने से इस रोग का निदान हो जाता है।

गुरुवार, 22 अक्टूबर 2015

गोंद के औषधीय गुण -

गोंद के औषधीय गुण -
किसी पेड़ के तने को चीरा लगाने पर उसमे से जो स्त्राव निकलता है वह सूखने पर भूरा और कडा हो जाता है उसे गोंद कहते है .यह शीतल और पौष्टिक होता है . उसमे उस पेड़ के ही औषधीय गुण भी होते है . आयुर्वेदिक दवाइयों में गोली या वटी बनाने के लिए भी पावडर की बाइंडिंग के लिए गोंद का इस्तेमाल होता है .
- कीकर या बबूल का गोंद पौष्टिक होता है .
- नीम का गोंद रक्त की गति बढ़ाने वाला, स्फूर्तिदायक पदार्थ है।इसे ईस्ट इंडिया गम भी कहते है . इसमें भी नीम के औषधीय गुण होते है - पलाश के गोंद से हड्डियां मज़बूत होती है .पलाश का 1 से 3 ग्राम गोंद मिश्रीयुक्त दूध अथवा आँवले के रस के साथ लेने से बल एवं वीर्य की वृद्धि होती है तथा अस्थियाँ मजबूत बनती हैं और शरीर पुष्ट होता है।यह गोंद गर्म पानी में घोलकर पीने से दस्त व संग्रहणी में आराम मिलता है।
- आम की गोंद स्तंभक एवं रक्त प्रसादक है। इस गोंद को गरम करके फोड़ों पर लगाने से पीब पककर बह जाती है और आसानी से भर जाता है। आम की गोंद को नीबू के रस में मिलाकर चर्म रोग पर लेप किया जाता है।
- सेमल का गोंद मोचरस कहलाता है, यह पित्त का शमन करता है।अतिसार में मोचरस चूर्ण एक से तीन ग्राम को दही के साथ प्रयोग करते हैं। श्वेतप्रदर में इसका चूर्ण समान भाग चीनी मिलाकर प्रयोग करना लाभकारी होता है। दंत मंजन में मोचरस का प्रयोग किया जाता है।
- बारिश के मौसम के बाद कबीट के पेड़ से गोंद निकलती है जो गुणवत्ता में बबूल की गोंद के समकक्ष होती है।
- हिंग भी एक गोंद है जो फेरूला कुल (अम्बेलीफेरी, दूसरा नाम एपिएसी) के तीन पौधों की जड़ों से निकलने वाला यह सुगंधित गोंद रेज़िननुमा होता है । फेरूला कुल में ही गाजर भी आती है । हींग दो किस्म की होती है - एक पानी में घुलनशील होती है जबकि दूसरी तेल में । किसान पौधे के आसपास की मिट्टी हटाकर उसकी मोटी गाजरनुमा जड़ के ऊपरी हिस्से में एक चीरा लगा देते हैं । इस चीरे लगे स्थान से अगले करीब तीन महीनों तक एक दूधिया रेज़िन निकलता रहता है । इस अवधि में लगभग एक किलोग्राम रेज़िन निकलता है । हवा के संपर्क में आकर यह सख्त हो जाता है कत्थई पड़ने लगता है ।यदि सिंचाई की नाली में हींग की एक थैली रख दें, तो खेतों में सब्ज़ियों की वृद्धि अच्छी होती है और वे संक्रमण मुक्त रहती है । पानी में हींग मिलाने से इल्लियों का सफाया हो जाता है और इससे पौधों की वृद्धि बढ़िया होती
- गुग्गुल एक बहुवर्षी झाड़ीनुमा वृक्ष है जिसके तने व शाखाओं से गोंद निकलता है, जो सगंध, गाढ़ा तथा अनेक वर्ण वाला होता है. यह जोड़ों के दर्द के निवारण और धुप अगरबत्ती आदि में इस्तेमाल होता है .
- प्रपोलीश- यह पौधों द्धारा श्रावित गोंद है जो मधुमक्खियॉं पौधों से इकट्ठा करती है इसका उपयोग डेन्डानसैम्बू बनाने में तथा पराबैंगनी किरणों से बचने के रूप में किया जाता है।
- ग्वार फली के बीज में ग्लैक्टोमेनन नामक गोंद होता है .ग्वार से प्राप्त गम का उपयोग दूध से बने पदार्थों जैसे आइसक्रीम , पनीर आदि में किया जाता है। इसके साथ ही अन्य कई व्यंजनों में भी इसका प्रयोग किया जाता है.ग्वार के बीजों से बनाया जाने वाला पेस्ट भोजन, औषधीय उपयोग के साथ ही अनेक उद्योगों में भी काम आता है।
- इसके अलावा सहजन , बेर , पीपल , अर्जुन आदि पेड़ों के गोंद में उसके औषधीय गुण मौजूद होते है

नाडी परीक्षा


नाडी परीक्षा


नाडी परीक्षा के बारे में शारंगधर संहिता ,भावप्रकाश ,योगरत्नाकर आदि ग्रंथों में वर्णन है .महर्षि सुश्रुत अपनी योगिक शक्ति से समस्त शरीर की सभी नाड़ियाँ देख सकते थे .ऐलोपेथी में तो पल्स सिर्फ दिल की धड़कन का पता लगाती है ; पर ये इससे कहीं अधिक बताती है .आयुर्वेद में पारंगत वैद्य नाडी परीक्षा से रोगों का पता लगाते है . इससे ये पता चलता है की कौनसा दोष शरीर में विद्यमान है .ये बिना किसी महँगी और तकलीफदायक डायग्नोस्टिक तकनीक के बिलकुल सही निदान करती है . जैसे की शरीर में कहाँ कितने साइज़ का ट्यूमर है , किडनी खराब है या ऐसा ही कोई भी जटिल से जटिल रोग का पता चल जाता है .दक्ष वैद्य हफ्ते भर पहले क्या खाया था ये भी बता देतें है .भविष्य में क्या रोग होने की संभावना है ये भी पता चलता है .

- महिलाओं का बाया और पुरुषों का दाया हाथ देखा जाता है .

- कलाई के अन्दर अंगूठे के नीचे जहां पल्स महसूस होती है तीन उंगलियाँ रखी जाती है .

- अंगूठे के पास की ऊँगली में वात , मध्य वाली ऊँगली में पित्त और अंगूठे से दूर वाली ऊँगली में कफ महसूस किया जा सकता है .

- वात की पल्स अनियमित और मध्यम तेज लगेगी .

- पित्त की बहुत तेज पल्स महसूस होगी .

- कफ की बहुत कम और धीमी पल्स महसूस होगी .

- तीनो उंगलियाँ एक साथ रखने से हमें ये पता चलेगा की कौनसा दोष अधिक है .

- प्रारम्भिक अवस्था में ही उस दोष को कम कर देने से रोग होता ही नहीं .

- हर एक दोष की भी ८ प्रकार की पल्स होती है ; जिससे रोग का पता चलता है , इसके लिए अभ्यास की ज़रुरत होती है .

- कभी कभी २ या ३ दोष एक साथ हो सकते है .

- नाडी परीक्षा अधिकतर सुबह उठकर आधे एक घंटे बाद करते है जिससरे हमें अपनी प्रकृति के बारे में पता चलता है . ये भूख- प्यास , नींद , धुप में घुमने , रात्री में टहलने से ,मानसिक स्थिति से , भोजन से , दिन के अलग अलग समय और मौसम से बदलती है .

- चिकित्सक को थोड़ा आध्यात्मिक और योगी होने से मदद मिलती है . सही निदान करने वाले नाडी पकड़ते ही तीन सेकण्ड में दोष का पता लगा लेते है .वैसे ३० सेकण्ड तक देखना चाहिए .

- मृत्यु नाडी से कुशल वैद्य भावी मृत्यु के बारे में भी बता सकते है .

- आप किस प्रकृति के है ? --वात प्रधान , पित्त प्रधान या कफ प्रधान या फिर मिश्र ? खुद कर के देखे या किसी वैद्य से पता कर देखिये .

छाछ

रोज़ सुबह एक ग्लास ताज़ा छाछ पीना अमृत सेवन के सामान है. इससे चेहरा चमकने लगता है.
- खाने के साथ छाछ पीने से जोड़ों के दर्द से भी राहत मिलती है।छाछ कैल्शियम से भरी होती है।
- इसका रोजाना सेवन करने वाले को कभी भी पाचन सबंधी समस्याएं प्रभावित नहीं करती हैं। खाना खाने के बाद पेट भारी हो जाना अरूचि आदि दूर करने के लिए गर्मियों में छाछ जरुर पीना चाहिए। 
- एसिडिटी- गर्मी के कारण अगर दस्त हो रही हो तो बरगद की जटा को पीसकर और छानकर छाछ में मिलाकर पीएं। छाछ में मिश्री, काली मिर्च और सेंधा नमक मिलाकर रोजाना पीने से एसिडिटी जड़ से साफ हो जाती है।
- रोग प्रतिरोधकता बढाए- इसमें हेल्‍दी बैक्‍टीरिया और कार्बोहाइड्रेट्स होते हैं साथ ही लैक्‍टोस शरीर में आपकी रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढाता है, जिससे आप तुरंत ऊर्जावान हो जाते हैं।
- कब्ज- अगर कब्ज की शिकायत बनी रहती हो तो अजवाइन मिलाकर छाछा पीएं। पेट की सफाई के लिए गर्मियों में पुदीना मिलाकर लस्सी बनाकर पीएं।
- खाना न पचने की शिकायत- जिन लोगों को खाना ठीक से न पचने की शिकायत होती है। उन्हें रोजाना छाछ में भुने जीरे का चूर्ण, काली मिर्च का चूर्ण और सेंधा नमक का चूर्ण समान मात्रा में मिलाकर धीरे-धीरे पीना चाहिए। इससे पाचक अग्रि तेज हो जाएगी।
- विटामिन- बटर मिल्‍क में विटामिन सी, ए, ई, के और बी पाये जाते हैं जो कि शरीर के पोषण की जरुरत को पूरा करता है।
- मिनरल्‍स- यह स्वस्थ पोषक तत्वों जैसे लोहा, जस्ता, फास्फोरस और पोटेशियम से भरा होता है, जो कि शरीर के लिये बहुत ही जरुरी मिनरल माना जाता है।
- यदि आप डाइट पर हैं तो रोज़ एक गिलास मट्ठा पीना ना भूलें। यह लो कैलोरी और फैट में कम होता है। 
- हिचकी लगने पर मट्ठे में एक चम्मच सौंठ डालकर सेवन करें।
- उल्टी होने पर मट्ठे के साथ जायफल घिसकर चाटें।
- गर्मी में रोजाना दो समय पतला मट्ठा लेकर उसमें भूना जीरा मिलाकर पीने से गर्मी से राहत मिलती है।
- मट्ठे में आटा मिलाकर लेप करने से झुर्रियाँ कम पड़ती हैं। 
- पैर की एड़ियों के फटने पर मट्ठे का ताजा मक्खन लगाने से आराम मिलता है।
- सिर के बाल झड़ने पर बासी छाछ से सप्ताह में दो दिन बालों को धोना चाहिए।
- मोटापा अधिक होने पर छाछ को छौंककर सेंधा नमक डालकर पीना चाहिए।
- सुबह-शाम मट्ठा या दही की पतली लस्सी पीने से स्मरण शक्ति तेज होती है।
- उच्च रक्तचाप होने पर गिलोय का चूर्ण मट्ठे के साथ लेना चाहिए।
- अत्यधिक मानसिक तनाव होने पर छाछ का सेवन लाभकारी होता है।
- जले हुए स्थान पर तुरंत छाछ या मट्ठा मलना चाहिए।
- विषैले जीव-जंतु के काटने पर मट्ठे में तम्बाकू मिलाकर लगाना चाहिए।
- कहा जाता है किसी ने जहर खा लिया हो तो उसे बार-बार फीका मट्ठा पिलाना चाहिए। परंतु डॉक्टर की सलाह अवश्य लें।
- अमलतास के पत्ते छाछ में पीस लें और शरीर पर मलें। कुछ देर बाद स्नान करें। शरीर की खुजली नष्ट हो जाती है।

सर्दियों में बादाम से ज्यादा असरदार है चना, रोज खाएंगे तो होंगे ये ढेरों फायदे

सर्दियों में बादाम से ज्यादा असरदार है चना, रोज खाएंगे तो होंगे ये ढेरों फायदे
____________________________________________________
सर्दियों में रोजाना 50 ग्राम चना खाना शरीर के लिए बहुत लाभकारी होता है। आयुर्वेद मे माना गया है कि चना और चने की दाल दोनों के सेवन से शरीर स्वस्थ रहता है। चना खाने से अनेक रोगों की चिकित्सा हो जाती है। इसमें कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, नमी, चिकनाई, रेशे, कैल्शियम, आयरन व विटामिन्स पाए जाते हैं। चने का गरीबों का बादाम कहा जाता है, क्योंकि ये सस्ता होता है लेकिन इसी सस्ती चीज में बड़ी से बड़ी बीमारियों की लड़ने की क्षमता है। चने के सेवन से सुंदरता बढ़ती है साथ ही दिमाग भी तेज हो जाता है। मोटापा घटाने के लिए रोजाना नाश्ते में चना लें। अंकुरित चना 3 साल तक खाते रहने से कुष्ट रोग में लाभ होता है। गर्भवती को उल्टी हो तो भुने हुए चने का सत्तू पिलाएं। चना पाचन शक्ति को संतुलित और दिमागी शक्ति को भी बढ़ाता है। चने से खून साफ होता है जिससे त्वचा निखरती है।
सर्दियों में चने के आटे का हलवा कुछ दिनों तक नियमित रूप से सेवन करना चाहिए। यह हलवा वात से होने वाले रोगों में व अस्थमा में फायदेमंद होता है।
रात को चने की दाल भिगों दें सुबह पीसकर चीनी व पानी मिलाकर पीएं। इससे मानसिक तनाव व उन्माद की स्थिति में राहत मिलती है। 50 ग्राम चने उबालकर मसल लें। यह जल गर्म-गर्म लगभग एक महीने तक सेवन करने से जलोदर रोग दूर हो जाता है।
चने के आटे की की नमक रहित रोटी 40 से 60 दिनों तक खाने से त्वचा संबंधित बीमारियां जैसे-दाद, खाज, खुजली आदि नहीं होती हैं। भुने हुए चने रात में सोते समय चबाकर गर्म दूध पीने से सांस नली के अनेक रोग व कफ दूर हो जाता हैं।
25 ग्राम काले चने रात में भिगोकर सुबह खाली पेट सेवन करने से डायबिटीज दूर हो जाती है। यदि समान मात्रा में जौ चने की रोटी भी दोनों समय खाई जाए तो जल्दी फायदा होगा।
चने को पानी में भिगो दें उसके बाद चना निकालकर पानी को पी जाएं। शहद मिलाकर पीने से किन्हीं भी कारणों से उत्पन्न नपुंसकता समाप्त हो जाती है।
हिचकी की समस्या ज्यादा परेशान कर रही हो तो चने के पौधे के सूखे पत्तों का धुम्रपान करने से शीत के कारण आने वाली हिचकी तथा आमाशय की बीमारियों में लाभ होता है।
पीलिया में चने की दाल लगभग 100 ग्राम को दो गिलास जल में भिगोकर उसके बाद दाल पानी में से निकलाकर 100 ग्राम गुड़ मिलाकर 4-5 दिन तक खाएं राहत मिलेगी।
देसी काले चने 25-30 ग्राम लेकर उनमें 10 ग्राम त्रिफला चूर्ण मिला लें चने को कुछ घंटों के लिए भिगो दें। उसके बाद चने को किसी कपड़े में बांध कर अंकुरित कर लें। सुबह नाश्ते के रूप में इन्हे खूब चबा चबाकर खाएं।
बुखार में ज्यादा पसीना आए तो भूने को पीसकर अजवायन और वच का चूर्ण मिलाकर मालिश करनी चाहिए।
चीनी के बर्तन में रात को चने भिगोकर रख दे। सुबह उठकर खूब चबा-चबाकर खाएं इसके लगातार सेवन करने से वीर्य में बढ़ोतरी होती है व पुरुषों की कमजोरी से जुड़ी समस्याएं खत्म हो जाती हैं। भीगे हुए चने खाकर दूध पीते रहने से वीर्य का पतलापन दूर हो जाता है।
दस ग्राम चने की भीगी दाल और 10 ग्राम शक्कर दोनों मिलाकर 40 दिनों तक खाने से धातु पुष्ट हो जाती है।
गर्म चने रूमाल या किसी साफ कपड़े में बांधकर सूंघने से जुकाम ठीक हो जाता है। बार-बार पेशाब जाने की बीमारी में भुने हूए चनों का सेवन करना चाहिए। गुड़ व चना खाने से भी मूत्र से संबंधित समस्या में राहत मिलती है। रोजाना भुने चनों के सेवन से बवासीर ठीक हो जाता है।

बुधवार, 21 अक्टूबर 2015

Ayurveda Medicine

आयुर्वेदिक दवा आयुर्वेद के मूल सिध्धन्तो पर आधारित है और उसी अनुसार उनका प्रयोग किया जाता है जिससे रोगी को अवश्य और शत प्रतिशत आराम मिलता है।
अर्शोघनी वटी.......
यह वटी वातज यानि की बिना खून वाली बवासीर और खूनी बवासीर को ठीक करने में बहुत कारगर है।
इसकी 2-2 गोली चार बार ठंडे पानी या ताज़ा पानी से लें।
आरोग्यवर्धिनी वटी.........
आरोग्यवर्धिनी वटी आयुर्वेद विज्ञान की श्रेष्ठ गुटिका है। जैसा इसका नाम वैसा ही इसका काम है।
ये गोली हैपेटाइटिस, लीवर से संबन्धित सभी तरह के रोग, त्वचा के रोग, एलर्जी, काले सफ़ेद धब्बे, खाज, खुजली, एसिडिटी, आमाश्य और आंत से संबन्धित रोग, ह्रदय रोग, गैस बनना, कोई भी शारीरिक तकलीफ हो उसमे इसका प्रयोग कर सकते हैं। इसे वैद्य समाज के लोग बहुत प्रयोग करते हैं।
इसकी एक गोली सुबह और एक गोली शाम को पानी, शहद या दूध से लेनी चाहिए। सुबह या दिन मे एक गोली खाने से भी काम चल जाता है। ऊपर बताए गए रोगों मे इसका प्रयोग कर सकते हैं। इसे सभी दवा बनाने वाली कंपनीयां बनाती हैं इसलिए सर्व सुलभ भी है। जिन्हे कोई बीमारी न हो वो भी इसका प्रयोग कर सकते हैं। इसे खाते रहने से व्यक्ति का आरोग्य बना रहता है।
अग्नितुन्डी वटी..........
गुण :- अग्नि के मन्द होने से पैदा सभी रोगों में देने से पूरा लाभ होता है। यह वटी अग्नि दीपक, वातानुलोमक,पाचक और मृदु रेचक है ।
मात्रा:- 1 से 2 गोली भोजन के बाद, हल्के गरम पानी के साथ खाना चाहिये ।
अज्मोदादि वटी........
गुण :- आमवात, गृध्रसी, तूनी, प्रतितूनी, विश्वाची, शोथ, सन्धि शोथ, सन्धि शूल, अस्थि शूल, कटि शूल, गुदा शूल, जन्घा शूल, पृष्ट शूल, वस्ति शूल, विशूचिका और ह्रुदय रोग दूर होते है ।
मात्रा :- 3 से 6 गॊली , गरम पानी से, दिन में दो तीन बार ।
अभयादि बटी.......
गुण :- जीर्ण ज्वर, प्लीहा, पांडु , काम्ला, कुम्भ कामला, रक्त पित्त, अम्ल पित्त, आठ प्रकार के उदर रोग, सब प्रकार के अजीर्ण, अषठीला, आध्यमान, विबन्ध, गुल्म आदि रोग नष्ट हो जाते है ।
मात्रा:- 2 गोली, हरड़ का चूर्ण मिला हुआ चावल का धोवन के साथ अथवा गरम जल के साथ लें।
अमृतादि गुग्गुल वटी.......
गुण :- वात रक्त, कुष्ठ, अर्श, भगन्दर, प्रमेह, आम्वात, एवम आढ्यवात में उपयोगी है ।
मात्रा:- 1 से 3 ग्राम, रास्नादि काढा या गरम जल के साथ, दिन में दो या तीन बार लें।
आमलक्यादि वटिका.......
गुण:- इस वटी को उस समय प्रयोग करते हैं जब बुखार के बीच में बहुत प्य़ास और मुख सूखने लगता है और बार बार अधिक पानी पीने के बाद भी प्यास नहीं बुझती है ।
आमवातारि वटिका.......
गुण :- यह वटी बहुत से रोगों की दशाओं में प्रयोग की जाती है । आमवात, गुल्म, शूल, उदर रोग, यक्रत रोग,प्लीहा रोग, अष्ठीला रोग, आनाह,आन्त्र बृध्धी, अर्श, भगन्दर, ग्रन्थि शूल, शिर:शूल, गृध्रसी, पान्डु, कामला,हलीमक, शोथ, अम्लपित्त, वात रोग, अरुचि, श्लीपद, अर्बुद, गलगन्ड, गन्डमाला, विद्रधी, पाषाण गर्धभ, कुष्ठ और कृमि रोग नष्ट होते हैं ।
मात्रा :- 1 गोली , त्रिफला के काढे के साथ दिन में दो बार। एक या दो गोली मुख में रखकर चूसना भी लाभप्रद है।
इन्दु वटी......
सभी प्रकार के कान के रोग यानी कान तथा कान से सम्बन्धित सभी रोगों के अलावा मधुमेह आदि आदि बीमारियों की अवस्थाओं में उपयोग की जाती है । इसकी एक गोली आवले के रस के साथ सुबह शाम खाना चाहिये
इन्दुकला वटी.......
गुण :- यह वटिका मसूरिका, रोमान्तिका, विस्फोट ज्वर, लोहित ज्वर, सर्व व्रण रोग और कासादि रोगों को दूर करती है ।
इसे एक गोली रोजाना तुलसी पत्र के रस के साथ दिन में दो समय सेवन करना चाहिये
ऊपर बतायी गयी आयुर्वेदिक दवाये एक वयस्क के लिये है। बच्चो को आधी दवा और बहुत छोटे बच्चो को चौथायी मात्रा देनी चाहिये।

रविवार, 18 अक्टूबर 2015

‪#‎Premature_Ejaculation‬

शीघ्रपतन के लिए ऐमरजैंसी आयुर्वेदिक उपचार 
★★★★★★★★★★★★★★★★
1) Jatifaladi vati 1 ya 2 goli
जातिफलादि वटी दूध से एक या दो गोली ।
2) Viryastamban vati 1 ya 2 goli
वीर्यस्तंभन वटी 1 या दो गोली
3 )Kaminividravan ras 1 ya 2 goli
कामिनीविद्रावण रस 1 या दो गोली 
आयुर्वेद की मशहूर दवा । बलैक में बिकती है ।
4) कामचूड़ामनी रस 
Kaam chudamani ras 
1 या दो गोली
यह आपको आसानी से मिल सकती है लेकिन बाजारू के रिज्लट खास नही अगर किसी वैद्य की बनी मिल जाए तो अच्छा ।
Before sex with hot milk.
सब दवाईया संभोग से दो घंटे पहले दूध से सेवन करें ।
5 ) मदनानंद मोदक लें । 
कुछ कंपनी बनाती है लेकिन कोई खास रिज्लट नही आता ।
सेवनकरता नींद की या बी.पी लो या नशा की शिकायत करता है । इसलिए सावधानी से लें । बार - बार लेने पर नुकसान हो सकता है ।
6 )Musli churan
एक चम्मच दूध से ।
रोज लेने पर कोई हानि नही करता ।
7 )Ashwgandha churan 
यह भी आप रोज ले सकते है । 
कोई हानि नही ।मोटे लोग न लें । मोटापा लाता है । 
जो मोटे हो वह इसका घनसत्व + असली शिलाजीत सत् लें सकते है ।
Anand churan 
आनंद चूर्ण 
यह चूरन कोई कंपनी नही बनाती खुग ही निर्माण करना होता है । किसी वैद्य से तैयार करवा लें । यह वीर्य को बहुत गाड़ा करता है और वीर्य के दोष ठीक करता है ।स्तंभनकारी है ।
Ye sab emergency dwayian h long performence k liye.

फटी एड़ियो का उपचार :-

फटी एड़ियो का उपचार :-
शरीर में उष्णता या खुश्की बढ़ जाने, नंगे पैर चलने फिरने, खून की कमी, तेज ठंड के प्रभाव से तथा धूल मिट्टी से पैर की एड़ियां फट जाती हैं। यदि इनकी देखभाल न की जाए तो ये ज्यादा फट जाती हैं और इनसे खून आने लगता है, ये बहुत दर्द करती हैं। एक कहावत शायद इसलिए प्रसिद्ध है........ जाके पैर न फटी बिवाई, वो क्या जाने पीर पराई। तो जानिए इससे कैसे छुटकारा पाया जाए।
घरेलू इलाज :-
पैरों में जाड़े में बिवाई खूब फटती है, ऐसे समय ये जायफल बड़ा काम आता है, इसे महीन पीसकर बिवाइयों में भर दीजिये। 12-15 दिन में ही पैर भर जायेंगे।
अमचूर का तेल 50 ग्राम, मोम 20 ग्राम, सत्यानाशी के बीजों का पावडर 10 ग्राम और शुद्ध घी 25 ग्राम। सबको मिलाकर एक जान कर लें और
शीशी में भर लें। सोते समय पैरों को धोकर साफ कर लें और पोंछकर यह दवा बिवाई में भर दें और ऊपर से मोजे पहनकर सो जाएं। कुछ दिनों में बिवाई दूर हो जाएगी, तलवों की त्वचा साफ, चिकनी व साफ हो जाएगी।
त्रिफला चूर्ण को खाने के तेल में तलकर मल्हम जैसा गाढ़ा कर लें। इसे सोते समय बिवाइयों में लगाने से थोड़े ही दिनों में बिवाइयां दूर हो जाती हैं।
चावल को पीसकर नारियल में छेद करके भर दें और छेद बन्द करके रख दें। 10-15 दिन में चावल सड़ जाएगा, तब निकालकर चावल को पीसकर बिवाइयों में रोज रात को भर दिया करें। इस प्रयोग से भी बिवाइयां ठीक हो जाती हैं।
गुड़, गुग्गल, राल, सेंधा नमक, शहद, सरसों, मुलहटी व घी सब 10-10 ग्राम लें। घी व शहद को छोड़ सब द्रव्यों को कूटकर महीन चूर्ण कर लें, घी व शहद मिलाकर मल्हम बना लें। इस मल्हम को रोज रात को बिवाइयों पर लगाने से ये कुछ ही दिन में ठीक हो जाती हैं।
रात को सोते समय चित्त लेट जाएं, हाथ की अंगुली लगभग डेढ़ इंच सरसों के तेल में भिगोकर नाभि में लगाकर 2-3 मिनट तक रगड़ते हुए मालिश करें और तेल को सुखा दें। जब तक तेल नाभि में जज्ब न हो जाए, रगड़ते रहें। यह प्रयोग सिर्फ एक सप्ताह करने पर बिवाइयां ठीक हो जाती हैं और एड़ियां साफ, चिकनी व मुलायम हो जाती हैं। एड़ी पर कुछ भी लगाने की जरूरत नहीं। और हाँ इससे आपके होठ भी नरम और चिकने रहेंगे।
गुनगुने पानी मे नमक डालकर पैरों को 10-15 मिनट तक भिगोकर रखें। इसके बाद थोड़ा सा सरसों का तेल पैरों की एड़ियों में लगाने से फटी एड़ियाँ ठीक हो जाती है । यह क्रिया रात को सोने से पहले रोजाना करे । या फिर इसी गर्म पानी से अपनी एड़ियों को धोकर बाजार से खरीदा हुआ शुद्ध देसी मोम और तिल का तेल इन दोनों को मिलाकर एक महलम तैयार करे फिर अपनी फटी एड़ियों अथवा गढ़े वाले स्थान पर इस तैयार मलहम को रात्री को सोने से पहले लगाये और लगाने के बाद एक सूती कपडा बांधकर आराम से सो जाये ऐसा करने से तीन दिन में ही आपको अपनी फटी में काफी आराम दिखाई देगा ।

शनिवार, 17 अक्टूबर 2015

Thyroid हाइपर और हाइपो थाइरोइड का घरेलु और सफल उपचार

Thyroid हाइपर और हाइपो थाइरोइड का घरेलु और सफल उपचार

हाइपर थाइरोइड और हाइपो थाइरोइड का घरेलु और सफल उपचार।

आज कल की भाग दौड़ भरी ज़िन्दगी में ये समस्या आम सी हो गयी हैं, और अलोपथी में इसका कोई इलाज भी नहीं हैं, बस जीवन भर दवाई लेते रहो, और आराम कोई नहीं।

थायराइड मानव शरीर मे पाए जाने वाले एंडोक्राइन ग्लैंड में से एक है। थायरायड ग्रंथि गर्दन में श्वास नली के ऊपर एवं स्वर यन्त्र के दोनों ओर दो भागों में बनी होती है। इसका आकार तितली जैसा होता है। यह थाइराक्सिन नामक हार्मोन बनाती है जिससे शरीर के ऊर्जा क्षय, प्रोटीन उत्पादन एवं अन्य हार्मोन के प्रति होने वाली संवेदनशीलता नियंत्रित होती है।
थॉयराइड ग्रंथि तितली के आकार की होती है जो गले में पाई जाती है। यह ग्रंथि उर्जा और पाचन की मुख्य ग्रंथि है। यह एक तरह के मास्टर लीवर की तरह है जो ऐसे जीन्स का स्राव करती है जिससे कोशिकाएं अपना कार्य ठीक प्रकार से करती हैं। इस ग्रंथि के सही तरीके से काम न कर पाने के कारण कई तरह की समस्‍यायें होती हैं। इस लेख में विस्‍तार से जानें थॉयराइड फंक्‍शन और इसके उपचार के बारे में।
थॉयराइड को साइलेंट किलर माना जाता है, क्‍योंकि इसके लक्षण व्‍यक्ति को धीरे-धीरे पता चलते हैं और जब इस बीमारी का निदान होता है तब तक देर हो चुकी होती है। इम्यून सिस्टम में गड़बड़ी से इसकी शुरुआत होती है लेकिन ज्यादातर चिकित्‍सक एंटी बॉडी टेस्ट नहीं करते हैं जिससे ऑटो-इम्युनिटी दिखाई देती है।
* यह ग्रंथि शरीर के मेटाबॉल्जिम को नियंत्रण करती है यानि जो भोजन हम खाते हैं यह उसे उर्जा में बदलने का काम करती है।
* इसके अलावा यह हृदय, मांसपेशियों, हड्डियों व कोलेस्ट्रोल को भी प्रभावित करती है।
*आमतौर पर शुरुआती दौर में थायराइड के किसी भी लक्षण का पता आसानी से नहीं चल पाता, क्योंकि गर्दन में छोटी सी गांठ सामान्य ही मान ली जाती है। और जब तक इसे गंभीरता से लिया जाता है, तब तक यह भयानक रूप ले लेता है।

आखिर क्या कारण हो सकते है जिनसे थायराइड होता है।

* थायरायडिस- यह सिर्फ एक बढ़ा हुआ थायराइड ग्रंथि (घेंघा) है, जिसमें थायराइड हार्मोन बनाने की क्षमता कम हो जाती है।
* इसोफ्लावोन गहन सोया प्रोटीन, कैप्सूल, और पाउडर के रूप में सोया उत्पादों का जरूरत से ज्यादा प्रयोग भी थायराइड होने के कारण हो सकते है।
* कई बार कुछ दवाओं के प्रतिकूल प्रभाव भी थायराइड की वजह होते हैं।
* थायराइट की समस्या पिट्यूटरी ग्रंथि के कारण भी होती है क्यों कि यह थायरायड ग्रंथि हार्मोन को उत्पादन करने के संकेत नहीं दे पाती।
* भोजन में आयोडीन की कमी या ज्यादा इस्तेमाल भी थायराइड की समस्या पैदा करता है।
* सिर, गर्दन और चेस्ट की विकिरण थैरेपी के कारण या टोंसिल्स, लिम्फ नोड्स, थाइमस ग्रंथि की समस्या या मुंहासे के लिए विकिरण उपचार के कारण।
* जब तनाव का स्तर बढ़ता है तो इसका सबसे ज्यादा असर हमारी थायरायड ग्रंथि पर पड़ता है। यह ग्रंथि हार्मोन के स्राव को बढ़ा देती है।
* यदि आप के परिवार में किसी को थायराइड की समस्या है तो आपको थायराइड होने की संभावना ज्यादा रहती है। यह थायराइड का सबसे अहम कारण है।
* ग्रेव्स रोग थायराइड का सबसे बड़ा कारण है। इसमें थायरायड ग्रंथि से थायरायड हार्मोन का स्राव बहुत अधिक बढ़ जाता है। ग्रेव्स रोग ज्यादातर 20 और 40 की उम्र के बीच की महिलाओं को प्रभावित करता है, क्योंकि ग्रेव्स रोग आनुवंशिक कारकों से संबंधित वंशानुगत विकार है, इसलिए थाइराइड रोग एक ही परिवार में कई लोगों को प्रभावित कर सकता है।
* थायराइड का अगला कारण है गर्भावस्था, जिसमें प्रसवोत्तर अवधि भी शामिल है। गर्भावस्था एक स्त्री के जीवन में ऐसा समय होता है जब उसके पूरे शरीर में बड़े पैमाने पर परिवर्तन होता है, और वह तनाव ग्रस्त रहती है।
* रजोनिवृत्ति भी थायराइड का कारण है क्योंकि रजोनिवृत्ति के समय एक महिला में कई प्रकार के हार्मोनल परिवर्तन होते है। जो कई बार थायराइड की वजह बनती है।
थायराइड के लक्षण:-

कब्ज-

थाइराइड होने पर कब्ज की समस्या शुरू हो जाती है। खाना पचाने में दिक्कत होती है। साथ ही खाना आसानी से गले से नीचे नहीं उतरता। शरीर के वजन पर भी असर पड़ता है।

हाथ-पैर ठंडे रहना-

थाइराइड होने पर आदमी के हाथ पैर हमेशा ठंडे रहते है। मानव शरीर का तापमान सामान्य यानी 98.4 डिग्री फॉरनहाइट (37 डिग्री सेल्सियस) होता है, लेकिन फिर भी उसका शरीर और हाथ-पैर ठंडे रहते हैं।
प्रतिरोधक क्षमता कमजोर होना- थाइराइड होने पर शरीर की रोग-प्रतिरोधक क्षमता कम़जोर हो जाती है। इम्यून सिस्टम कमजोर होने के चलते उसे कई बीमारियां लगी रहती हैं।

थकान

थाइराइड की समस्या से ग्रस्त आदमी को जल्द थकान होने लगती है। उसका शरीर सुस्त रहता है। वह आलसी हो जाता है और शरीर की ऊर्जा समाप्त होने लगती है।

त्वचा का सूखना या ड्राई होना

थाइराइड से ग्रस्त व्यक्ति की त्वचा सूखने लगती है। त्वचा में रूखापन आ जाता है। त्वचा के ऊपरी हिस्से के सेल्स की क्षति होने लगती है जिसकी वजह से त्वचा रूखी-रूखी हो जाती है।

जुकाम होना

थाइराइड होने पर आदमी को जुकाम होने लगता है। यह नार्मल जुकाम से अलग होता है और ठीक नहीं होता है।

डिप्रेशन

थाइराइड की समस्या होने पर आदमी हमेशा डिप्रेशन में रहने लगता है। उसका किसी भी काम में मन नहीं लगता है, दिमाग की सोचने और समझने की शक्ति कमजोर हो जाती है। याद्दाश्त भी कमजोर हो जाती है।

बाल झड़ना

थाइराइड होने पर आदमी के बाल झड़ने लगते हैं तथा गंजापन होने लगता है। साथ ही साथ उसके भौहों के बाल भी झड़ने लगते है।

मांसपेशियों और जोड़ों में दर्द

मांसपेशियों और जोड़ों में दर्द और साथ ही साथ कमजोरी का होना भी थायराइड की समस्या के लक्षण हो सकते है।

शारीरिक व मानसिक विकास

थाइराइड की समस्या होने पर शारीरिक व मानसिक विकास धीमा हो जाता है।

अगर आपको ऐसे कोई भी लक्षण दिखाई दे तो अपने डाक्टर से संपर्क करें आपको थाइराइड समस्या हो सकती है।

अति असरकारक घरेलु उपाय__सुबह खाली पेट लौकी का जूस पिए, घर में ही गेंहू के जवारों का जूस निकाल कर पिए, इसके बाद एक गिलास पानी में हर रोज़ ३० मिली एलो वेरा जूस और २ बूँद तुलसी की डाल कर पिए, एलो वेरा जूस आपको किसी बढ़िया कंपनी का यूज़ करना होगा, जिसमे फाइबर ज़्यादा हो, सिर्फ कोरा पानी ना हो। बाजार से आज कल पांच तुलसी बहुत आ रही हैं, किसी बढ़िया कंपनी की आर्गेनिक पांच तुलसी ले। ये सब करने के आधे घंटे तक कुछ भी न खाए पिए, इस समय में आप प्राणायाम करे।अखरोट और बादाम है फायदेमंद :-अखरोट और बादाम में सेलेनियम नामक तत्‍व पाया जाता है जो थॉयराइड की समस्‍या के उपचार में फायदेमंद है। 1 आंउस अखरोट में 5 माइक्रोग्राम सेलेनियम होता है। अखरोट और बादाम के सेवन से थॉयराइड के कारण गले में होने वाली सूजन को भी काफी हद तक कम किया जा सकता है। अखरोट और बादाम सबसे अधिक फायदा हाइपोथॉयराइडिज्‍म (थॉयराइड ग्रंथि का कम एक्टिव होना) में करता है।
इसके साथ में रात को सोते समय गाय के गर्म दूध के साथ 1 चम्मच अश्वगंधा चूर्ण का सेवन करे।
इसके साथ प्राणायाम करना हैं, जिसे उज्जायी प्राणायाम बोलते हैं। इस प्राणायाम में गले को संकुचित करते हुए पुरे ज़ोर से ऊपर से श्वांस खींचनी हैं।

आयुर्वेदिक औषद्धियों

जानिए अपनी कुछ आयुर्वेदिक औषद्धियों के बारे में जो शरीर की विभिन्न व्यवस्थाओ को शक्ति प्रदान करती है :-
1........चंद्रप्रभा वटी :-
आयुर्वेद में इसके उपयोग बहुत विस्तार से दिये गयें हैं। यह मूत्र रोगों पर और यौन रोगों पर विशेष असर दिखाती है। बार बार पेशाब आना, पेशाब में शक्कर का जाना, स्त्री को सफ़ेद पानी का जाना, मासिक धर्म की अनियमितताए, पुरुषों को पेशाब में धातु जाने की समस्या, पेशाब में जलन होना ऐसे अनेक विकारो पर यह दवा काम करती है।
यह स्नायु और हड्डी को भी मजबूती प्रदान करती है। इसलिए इसका प्रयोग कमजोरी में भी करते है।
इसकी 1-1 गोली सुबह शाम नाश्ते या भोजन के बाद पानी से ले। इसे शहद या दूध से भी ले सकते है।
2.......... योगराज गुग्गुल :-
इस दवा का प्रयोग स्नायुओ को मजबूती प्रदान करता है। बुढ़ापे की व्याधियो जैसे पैर की पिंडलियों में दर्द होना, घुटनों में दर्द होना वगैरह के लिए यह दवा अच्छा असर दिखाती है।
इसकी 1-1 गोली सुबह शाम नाश्ते या भोजन के बाद पानी से ले. इसे शहद से या दूध से भी ले सकते है।
3....... त्रयोदशांग गुग्गुल :-
यह वात विकारो की एक जबरदस्त दवा है। इसके प्रयोग से लकवे (पक्षाघात) में अद्भुत लाभ होता है। लकवा होने के बाद जितने जल्दी इसे प्रयोग में लाया जायेगा लाभ उतना ही जल्द होंगा। यदि लकवा होने के बाद ज्यादा समय बीत गया है तो एक लम्बे काल के लिए इस दवा का नियमित सेवन करना होगा।
सर्वाइकल स्पोंडीलायटिस में भी यह अच्छा काम करती है।
इसकी 1-1 गोली सुबह शाम नाश्ते या भोजन के बाद पानीसे ले। इसे शहद से या दूध से भी ले सकते है।
4.......... सितोपलादी चूर्ण :-
यह खांसी की एक जबरदस्त दवा है। सूखी खांसी पर इसे जादू की तरह काम करते हुए देखा गया है। एक चौथाई चम्मच चूर्ण शहद के साथ एक दिन में 3-4 बार ले सकते है।
5....... हरिद्रा खंड :-
यह खुजली की एक जबरदस्त दवा है। शीत पित्त में भी ये दवा जादू की तरह काम करती है। इसे आधा चम्मच रोजाना पानी से तीन बार ले सकते है।
6........सितोपलादि चूर्ण :-
सभी प्रकार के कास (खांसी), श्वास रोग, क्षय, राजयक्ष्मा, मुँह से खून गिरना,
साथ-साथ थोडा ज्वर रहना, जुकाम आदि मे इस चूर्ण से बहुत लाभ होता है।
एक से तीन ग्राम की मात्रा शहद या शुद्ध घी के साथ लें।

गुरुवार, 15 अक्टूबर 2015

किशमिश

किशमिश ---
1. कब्‍ज - जब किशमिश को खाई जाती है तो यह पेट में जा कर पानी को सोख लेती हैं। जिस वजह से यह फूल जाती है और कब्‍ज में राहत दिलाती है।
2. वजन बढाए- हर मेवे की तरह किशमिश भी वजन बढाने में मददगार साबित होती है क्‍योंकि इसमें फ्रकटोज़ और ग्‍लूकोज़ पाया जाता है जिससे एनर्जी मिलती है। अगर आपको भी अपना वजन बढाना है और वो भी कोलेस्‍ट्रॉल बढाए बिना तो आज से ही किशमिश खाना शुरु कर दें।
3. अम्लरक्तता- जब खून में एसिड बढ जाता है तो यह परेशानी पैदा हो जाती है। इसकी वजह से स्‍किन डिज़ीज, फोडे़, गठिया, गाउट, गुर्दे की पथरी, बाल झड़ने, हृदय रोग, ट्यूमर और यहां तक कि कैंसर होने की संभावना पैदा हो जाती है। किशमिश में अच्‍छी मात्रा में पोटैशियम और मैगनीशियम पाया जाता है जिसको खाने से अम्लरक्तता की परेशानी दूर हो जाती है।
4. एनीमिया- किशमिश में भारी मात्रा में आयरन होता है जो कि सीधे एनीमिया से लड़ने की शक्‍ति रखता है। खून को बनाने के लिये विटामिन बी कॉमप्‍लेक्‍स की जरुरत को भी यही किशमिश पूरी करती है। कॉपर भी खून में लाल रक्‍त कोशिका को बनाने का काम करता है।
5. बुखार- किशमिश में मौजूद फिनॉलिक पायथोन्‍यूट्रियंट जो कि जर्मीसाइडल, एंटी बॉयटिक और एंटी ऑक्‍सीडेंट तत्‍वों की वजह से जाने जाते हैं, बैक्‍टीरियल इंफेक्‍शन तथा वाइरल से लड़ कर बुखार को जल्‍द ठीक कर देते हैं।
6. शराब के नशे से छुटकारा- शराब पीने की इच्छा हो तब शराब की जगह 10 से 12 ग्राम किशमिश चबा-चबाकर खाते रहें या किशमिश का शरबत पियें। शराब पीने से ज्ञानतंतु सुस्त हो जाते हैं परंतु किशमिश के सेवन से शीघ्र ही पोषण मिलने से मनुष्य उत्साह, शक्ति और प्रसन्नता का अनुभव करने लगता है। यह प्रयोग प्रयत्नपूर्वक करते रहने से कुछ ही दिनों में शराब छूट जायेगी।
7. यौन दुर्बलता- इस समस्‍या के लिये रोजाना किशमिश खाएं क्‍योंकि यह कामेच्छा को प्रोत्साहित करती है। इसमें मौजूद अमीनो एसिड, यौन दुर्बलता को दूर करता है। इसीलिये तो शादी-शुदा जोडों को पहली रात दूध का गिलास दिया जाता है जिसमें किशमिश और केसर होता है।
8. हड्डी की मजबूती- किशमिश में बोरोन नामक माइक्रो न्‍यूट्रियंट पाया जाता है जो कि हड्डी को कैल्‍शियम सोखने में मदद करता है। बोरोन की वजह से ऑस्‍टियोप्रोसिस से बडी़ राहत मिलती है साथ ही किशमिश खाने से घुटनों की भी समस्‍या नहीं पैदा होती।
9. आंखों के लिये- इसमें एंटी ऑक्‍सीडेंट प्रोपर्टी पाई जाती है, जो कि आंखों की फ्री रैडिकल्‍स से लड़ने में मदद करता है। किशमिश खाने से कैटरैक, उम्र बढने की वजह से आंखों की कमजोरी, मसल्‍स डैमेज आदि नहीं होता। इसमें विटामिन ए, ए-बीटा कैरोटीन और ए-कैरोटीनॉइड आदि होता है, जो कि आंखों के लिये अच्‍छा होता है।

सोमवार, 12 अक्टूबर 2015

दुबलापन : कारण व उपचार

सहज कृशता :माता-पिता यदि कृश हों तो बीजदोष के फलस्वरूप उत्पन्न होने वाला शिशु भी सहज रूप से कृश ही उत्पन्न होता है। गर्भावस्था में पोषण का पूर्णतः अभाव होने से अथवा गर्भवती स्त्री के किसी संक्रामक या कृशता उत्पन्न करने वाली विकृति के चलते गर्भस्थ शिशु के शारीरिक अवयवों का समुचित विकास नहीं हो पाता, जन्म के समय ऐसे शिशु कृश स्वरूप में ही जन्म लेते हैं। ऐसे कृशकाय शिशु की उचित देखभाल एवं समय पर चिकित्सा करने के बाद भी इसकी कृशता का पूर्ण रूप से निवारण नहीं होने पर अंततोगत्वा ये सहज कृशता के स्वरूप को प्राप्त कर जीवन पर्यंत उससे ग्रसित रहते हैं। निरंतर चिकित्सा लाभ लेते रहने पर ही इनका जीवित रहना संभव होता है।जन्मोत्तर कृशता :अग्निमांद्य के फलस्वरूप रस धातु की उत्पत्ति अल्प मात्रा में होने से जो धातुक्षय होता है, उसे अनुमोल क्षय तथा कुप्रवृत्ति तथा अतिमैथुन से होने वाले शुक्रक्षय के फलस्वरूप अन्य धातुओं के होने वाले क्षय को प्रतिलोम क्षय कहते हैं। दुर्घटना, आघात, वमन, अतिसार, रक्तपित्त आदि के अकस्मात होने वाला धातुक्षय तथा पंचकर्म के अत्याधिक प्रयोग से होने वाले धातुक्षय से भी अंत में कृशता उत्पन्न होती है। निष्कर्ष यह है कि किसी भी कारण से होने वाला धातुक्षय ही कृशता का जनक है। जन्मोत्तर कृशता के दो प्रकार संभव हैं-लगातार उत्पन्न कृशता :अग्निमांद्य,ज्वर, पांडु, उन्माद, श्वांस आदि व्याधियों से दीर्घ अवधि तक ग्रस्त रहने पर शरीर में लगातार कृशता उत्पन्न होती है, जो धीरे-धीरे बढ़कर अंत में अतिकृशता का रूप धारण कर लेती है। शरीर की स्वाभाविक क्रिया के फलस्वरूप वृद्धावस्था में होने वाली कृशता का भी इसमें समावेश हो जाता है।अकस्मात उत्पन्न कृशता :मधुमेह, रजक्षमा, रक्तपित्त, वमन, ग्रहणी, कैंसर आदि व्याधियों के कारण शरीर में अकस्मात कृशता उत्पन्न होती है। अवटुका ग्रंथि के अंतःस्राव की अभिवृद्धि से भी अकस्मात कृशता उत्पन्न होती है, जिसे आधुनिक चिकित्सा के अनुसार हाइपरथायरायडिज्म या थायरोढाक्सिकोसित कहते हैं।वैज्ञानिकों का यह भेद चरकोक्त जठराग्निवर्धन से समानता रखता है, क्योंकि जठराग्निवर्धन के संपूर्ण लक्षण इसमें घटित होते हैं। थायराइड नामक ग्रंथि के अंतःस्राव में वृद्धि होने पर इंसुलिन के द्वारा शरीर में दहन क्रिया अत्यंत तीव्र वेग से होने के कारण प्रथमतः रस, रक्तगत शर्करा का दहन होने से शर्करा की मात्रा न्यून होने पर शरीर में संचित स्नेहों तथा प्रोटीनों का दहन होने लगता है।इसी के परिणामस्वरूप शरीर में धातुक्षय होकर कृशता उत्पन्न होती है, इसी को भस्मक रोग की संज्ञा आयुर्वेदाचार्यों ने दी है। महर्षि चरक ने इन लक्षणों को अत्यग्नि संभव नाम दिया है।दुबलेपन से होने वाली हानियाँ :पूर्व मे जो लक्षण बताए गए हैं, वे कृश व्यक्ति में बाहर से दिखाई देने वाले हैं। इसके अतिरिक्त शरीर की आंतरिक विकृति के फलस्वरूप जो लक्षण मिलते हैं, उनमें अग्निमांद्य, चिड़चिड़ापन, मल-मूत्र का अल्प मात्रा में विसर्जन, त्वचा में रूक्षता, शीत, गर्मी तथा वर्षा को सहन करने की शक्ति नहीं होना, कार्य में अक्षमता आदि लक्षण होते हैं। कृश व्यक्ति श्वास, कास, प्लीहा, अर्श, ग्रहणी, उदर रोग, रक्तपित्त आदि में से किसी न किसी से पीड़ित होकर काल कवलित हो जाता है।चिकित्ससंतर्पण :सर्वप्रथम उसके अग्निमांद्य को दूर करने का प्रयत्न करना चाहिए। लघु एवं शीघ्र पचने वाला संतर्पण आहार, मंथ आदि अन्य पौष्टिक पेय पदार्थ, रोगी के अनुकूल ऋतु के अनुसार फलों को देना चाहिए, जो शीघ्र पचकर शरीर का तर्पण तथा पोषण करे। रोगी की जठराग्नि का ध्यान रखते हुए दूध, घी आदि प्रयोग किया जा सकता है। कृश व्यक्ति को भरपूर नींद लेनी चाहिए, इस हेतु सुखद शय्या का प्रयोग अपेक्षित है। कृशता से पीड़ित व्यक्ति को चिंता, मैथुन एवं व्यायाम का पूर्णतः त्याग करना अनिवार्य है।पंचकर्म :कृश व्यक्ति के लिए मालिश अत्यंत उपयोगी है। पंचकर्म के अंतर्गत केवल अनुवासन वस्ति का प्रयोग करना चाहिए तथा ऋतु अनुसार वमन कर्म का प्रयोग किया जा सकता है। कृश व्यक्ति के लिए स्वदन व धूम्रपान वर्जित है। स्नेहन का प्रयोग अल्प मात्रा में किया जा सकता है।रसायन एवं वाजीकरण :कृश व्यक्ति को बल प्रदान करने तथा आयु की वृद्धि करने हेतु रसायन औषधियों का प्रयोग परम हितकारी है, क्योंकि अतिकृश व्यक्ति के समस्त धातु क्षीण हो जाती हैं तथा रसायन औषधियों के सेवन से सभी धातुओं की पुष्टि होती है, इसलिए कृश व्यक्ति के स्वरूप, प्रकृति, दोषों की स्थिति, उसके शरीर में उत्पन्न अन्य रोग या रोग के लक्षणों एवं ऋतु को ध्यान में रखकर किसी भी रसायन के योग अथवा कल्प का प्रयोग किया जा सकता है। वाजीकरण औषधियों का प्रयोग भी परिस्थिति के अनुसार किया जा सकता है।औषधि चिकित्सा क्रम :सर्वप्रथम रोग की मंद हुई अग्नि को दूर करने का प्रयोग आवश्यक है, इसके लिए दीपन, पाचन औषधियों का प्रयोग अपेक्षित है। अग्निमांद्य दूर होने पर अथवा रोगी की पाचन शक्ति सामान्य होने पर जिन रोगों के कारण कृशता उत्पन्न हुई हो तथा कृशता होने के पश्चात जो अन्य रोग हुए हों, इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए ही औषधियों की व्यवस्था करना अपेक्षित है।
NDND
कृशता में उपयोगी औषधियाँ :लवणभास्कर चूर्ण, हिंग्वाष्टक चूर्ण, अग्निकुमार रस, आनंदभैरव रस, लोकनाथ रस( यकृत प्लीहा विकार रोगाधिकार), संजीवनी वटी, कुमारी आसव, द्राक्षासव, लोहासव, भृंगराजासन, द्राक्षारिष्ट, अश्वगंधारिष्ट, सप्तामृत लौह, नवायस मंडूर, आरोग्यवर्धिनी वटी, च्यवनप्राश, मसूली पाक, बादाम पाक, अश्वगंधा पाक, शतावरी पाक, लौहभस्म, शंखभस्म, स्वर्णभस्म, अभ्रकभस्म तथा मालिश के लिए बला तेल, महामाष तेल (निरामिष) आदि का प्रयोग आवश्यकतानुसार करना चाहिए।भोजन में जरूरी :गेहूँ, जौ की चपाती, मूंग या अरहर की दाल, पालक, पपीता, लौकी, मेथी, बथुआ, परवल, पत्तागोभी, फूलगोभी, दूध, घी, सेव, अनार, मौसम्बी आदि फल अथवा फलों के रस, सूखे मेवों में अंजीर, अखरोट, बादाम, पिश्ता, काजू, किशमिश आदि। सोते समय एक गिलास कुनकुने दूध में एक चम्मच शुद्ध घी डालकर पिएँ, इसी के साथ एक चम्मच अश्वगंधा चूर्ण लें, लाभ न होने तक सेवन करें।

सिर दर्द की आयुर्वेदिक चिकित्सा

शिर शूलादि वज्र रस, सूतशेखर रस, गोदन्ती भस्म, लक्ष्मीविलास रस अभ्रकयुक्त, चारों 10-10 ग्राम, स्वर्ण माक्षिक भस्म और प्रवाल पिष्टी 5-5 ग्राम लेकर सबको भली-भाँति घोंट-पीसकर मिला लें। इसकी 30 पुड़िया बाँध लें। सुबह-शाम 1-1 पुड़िया शहद में मिलाकर चाट लें। इसके बाद शंखपुष्पी टेबलेट की 2-2 गोली ठंडे किए हुए दूध के साथ ले लें। भोजन के बाद आधा कप पानी में पथ्यादि काढ़ा और अमृतारिष्ट 4-4 चम्मच डालकर दोनों वक्त पी लिया करें।

शनिवार, 10 अक्टूबर 2015

पिगमेंटेशन SunTan झुर्रियो दाग धब्बे आदि के लिए एक नायाब फेस पैक :

पिगमेंटेशन SunTan झुर्रियो दाग धब्बे आदि के लिए एक नायाब फेस पैक :
बादाम (भिगो कर छिलका उतारा हुआ) 2 , गुलाब के 2 ताजे फूलों की पंखुरियां, चिरौंजी भीगी हुई एक चम्मच और पिसा जायफल आधा चम्मच हल्दी पाउडर एक चुटकी और शहद कुछ बूँदें. ये सब चीजें लेकर बारीक पीस लें और इतना कच्चा दूध मिलाएं की एक पेस्ट बन जाये. इस फेस पैक को चेहरे, गर्दन आदि पर 20 से 30 मिनट के लिए लगा कर रखें फिर हलके हाथों से उबटन की तरह................

अस्थमा का घरेलू उपचार

अस्थमा का घरेलू उपचार :
अस्थमा होने पर निम्न घरेलू उपचार अपनाकरआप इसका इलाज कर सकतें हैं और स्वस्थ रह सकते हैं
-*.लहसुन दमा के इलाज में काफी कारगर साबितहोता है। 30 मिली दूध में लहसुन की पांच कलियां उबालें और इस मिश्रण का हर रोज सेवन करने से दमे में शुरुआती अवस्था में काफी फायदा मिलता है।
*.अदरक की गरम चाय में लहसुन की दो पिसी कलियां मिलाकर पीने से भी अस्थमा नियंत्रित रहता है। सबेरे और शाम इस चायका सेवन करने से मरीज को फायदा होता है।
*.दमा रोगी पानी में अजवाइन मिलाकर इसे उबालें और पानी से उठती भाप लें, यह घरेलू उपाय काफी फायदेमंद होता है। 4-5 लौंग लें और 125 मिली पानी में 5 मिनट तक उबालें। इस मिश्रण को छानकर इसमें एक चम्मच शुद्ध शहद मिलाएँ
और गरम-गरम पी लें। हर रोज दो से तीन बार यह काढ़ा बनाकर पीने से मरीज को निश्चित रूप से लाभ होता है।
*.180 मिमी पानी में मुट्ठीभर सहजन की पत्तियां मिलाकर करीब 5 मिनट तक उबालें। मिश्रण को ठंडा होने दें, उसमेंचुटकीभर नमक, कालीमिर्च और नीबू रस भी मिलाया जा सकता है। इस सूप का नियमित रूप से इस्तेमाल दमा उपचार में कारगर माना गया है।
*.अदरक का एक चम्मच ताजा रस, एक कप मैथी के काढ़े और स्वादानुसार शहद इस मिश्रण में मिलाएं। दमे के मरीजों के लिए यह मिश्रण लाजवाब साबित होता है।
मैथी का काढ़ा तैयार करने के लिए एक चम्मच मैथीदाना और एक .............

Bones


Diet in renal stone



चेहरे के दाग-धब्बों को हटाए

चेहरे के दाग-धब्बों को हटाए
प्रदूषण या धूप में जाने की वजह से कई बार चेहरे पर गहरे धब्बे हो जाते हैं। आप इन धब्बों का उपचार घर पर ही कर सकते हैं। जी हां, आपको इनके लिए बाज़ार में बिकने वाली महंगी स्किन लाइटनिंग क्रीम लगाने की ज़रूरत नहीं। सिर्फ शहद से बने एक फेसपैक के नियमित इस्तेमाल से ही आप इस तरह के धब्बों से छुटकारा पा सकते हैं।
इस शहद के फेसपैक में नींबू का रस, दूध और बादाम मिलाया जाता है। ये त्वचा पर पड़े काले धब्बों और उसके रूखेपन के लिए एक परफेक्ट उपचार है। नींबू का रस डेड स्किन सेल्स एक्सफोलिएट करता है और साथ ही, त्वचा से गंदगी भी हटाता है। बादाम में विटामिन ई होता है जो स्किन टोन को हल्का करता है और वहीं, दूध में बेटा हाइड्रॉक्सी एसिड होता है जो डेड स्किन सेल्स से छुटकारा दिलाता है। और जहां तक बात शहद की है, वो न सिर्फ एक नैचुरल मॉइश्चुराइज़र है जो आपकी स्किन को हाइड्रेट करता है, बल्कि इसके एंटीबैक्टीरियल तत्व स्किन के बैक्टीरियल इंफेक्शन से भी लड़ते हैं। इसमें एंजाइम्स होते हैं जो आपकी त्वचा तो सॉफ्ट और ग्लोइंग बनाते हैं।
शहद फेसपैक बनाने और लगाने का तरीका
नींबू का रस, मिल्क पाउडर और शहद, तीनों की दो-दो चम्मच मात्रा को मिला लें।
अब इसमें भीगे हुए बादाम का एक चम्मच पेस्ट मिला लें।
इस फेस पैक को चेहरे पर लगाएं और नैचुरली सूखने दें।
12-15 मिनट बाद जब फेसपैक सूख जाए तो उसे गुनगुने पानी से धो लें l
चेहरे से दाग-धब्बे हटाने के लिए इस फेसपैक का इस्तेमाल नियमित रूप से करें।आप देखेंगे कि कुछ ही दिन में आपका चेहरा खिल गया है। उसका रंग तो बेहतर हुआ ही है, साथ ही स्किन का टेक्चर भी सुधरा है।