शनिवार, 9 अप्रैल 2016

चिकनपॉक्स या छोटी माता


चिकनपॉक्स वेरीसेला जोस्टर नामक वायरस से होने वाली समस्या है। यह एक प्रकार का संक्रामक रोग है जो खांसने, छींकने, छूने या रोगी के सीधे संपर्क में आने से फैलता है।
अधिकतर पीडित बच्चे
नवजात से लेकर 10-12 साल की उम्र के बच्चों को चिकनपॉक्स की समस्या ज्यादा होती है लेकिन कई मामलों में ये इससे अधिक उम्र के लोगों को भी हो सकती है। एक बार यह रोग होने और इसका पूरा इलाज लेने के बाद इसके दोबारा होने की आशंका कम हो जाती है लेकिन 50 वर्ष से अधिक आयु वाले लोगों को कमजोर रोग प्रतिरोधक क्षमता के कारण यह बीमारी फिर से हो सकती है। इसके अलावा गर्भवती महिलाएं, कमजोर रोग प्रतिरोधक क्षमता वाले लोग, लंबे समय से किसी बीमारी से ग्रस्त व्यक्ति और चिकनपॉक्स से पीडित मरीज के सीधे संपर्क में आने से भी यह रोग हो सकता है।
लक्षण
सिरदर्द, बदनदर्द, बुखार, कमजोरी, भोजन में अरूचि, गले में सूखापन और खांसी आदि होने के बाद दूसरे दिन से ही त्वचा पर फुंसियां उभरने लगती हैं।
डॉक्टरी सलाह जरूरी
मरीज को यदि चिकनपॉक्स के साथ बैक्टीरिया का संक्रमण, मेनिनजाइटिस (दिमाग का बुखार), इनसेफिलाइटिस (दिमाग में सूजन), गुलेन बेरी सिंड्रोम (कमजोर इम्युनिटी से नर्वस सिस्टम का प्रभावित होना), निमोनिया, मायोकारडाइटिस (ह्वदय की मांसपेशियों को क्षति), किडनी और लिवर में संक्रमण हो जाए तो तुरंत डॉक्टर को दिखाना चाहिए वर्ना स्थिति गंभीर हो सकती है।
दो हफ्ते रहता असर
आमतौर पर लोग इन्हें माता समझकर झाड़ा या घरेलू उपचार कराने लगते हैं जो कि गलत है। इसके लिए डॉक्टर को दिखाना जरूरी होता है। चिकनपॉक्स में शरीर पर उभरे दाने यानी पानी वाली फंुसियां एंटीवायरल दवाओं और एहतियात बरतने से दो हफ्ते में ठीक होने लगती हैं। लेकिन ध्यान रहे कि मरीज के सीधे संपर्क मे आने वाले लोग स्वयं भी पूरी तरह से सावधानी बरतें।
शुरूआत
गर्मियों की शुरूआत से ही चिकनपॉक्स के वायरस ज्यादा सक्रिय हो जाते हैं और रोग का कारण बनते हैं। ऎसे में ज्यादा सावधानी बरतना जरूरी है।
बचाव कैसे
इससे बचाव के लिए बच्चों का समय-समय पर टीकाकरण होना चाहिए। ये वैक्सीनेशन दो डोज में दी जाती हैं। पहली डोज बच्चे के 12-15 माह के होने पर और दूसरी डोज 4-5 साल की उम्र में दी जाती है। बीमारी के दौरान मरीज को वेलसाइक्लोवीर और एसाइक्लोवीर जैसी एंटीवायरल दवाएं दी जाती हैं।
मरीज की देखभाल
चिकनपॉक्स होने पर मरीज को अलग कमरे में रखें, उसके द्वारा इस्तेमाल की गई चीजों को घर के अन्य लोग प्रयोग में न लें। देखभाल करने वाले लोग मुंह पर मास्क लगाकर रखें। इस समस्या में डॉक्टर मरीज की स्थिति देखने के बाद ही उसे नहाने के निर्देश देते हैं। इस दौरान रोगी को ढीले और सूती कपड़े पहनाएं व इन्हें रोजाना बदल दें। चिक नपॉक्स में मरीज को खट्टी, मसालेदार, तली-भुनी और नमक वाली चीजें खाने के लिए न दें क्योंकि इससे फुंसियो में खुजली बढ़ सकती है। उसके खाने में सूप, दलिया, खिचड़ी और राबड़ी जैसी हल्की व ठंडी चीजों को शामिल करें। बीमारी के बाद व्यक्ति कमजोरी महसूस करने लगता है जिसके लिए उसे पौष्टिक आहार, फल व जूस, दूध, दही, छाछ जैसे तरल पदार्थ दें।
डॉ. आर. एस. खेदड़, अतिरिक्त निदेशक मेडिसिन,
फोर्टिस हॉस्पिटल, जयपुर
आयुर्वेदिक चिकित्सा
1. आयुर्वेद में चिकनपॉक्स को लघुमसूरिका कहते हैं। यह रोग शरीर की मेटाबॉलिक दर मे गड़बड़ी से होता है जिसके लिए संजीवनी और मधुरांतक वटी तुरंत राहत के लिए दी जाती है। गिलोय की 5-7 इंच लंबी बेल को कूटकर इसका रस निकाल लें या गर्म पानी में उबालकर, ठंडा होने पर इसे मसल लें और छानकर सुबह और शाम को प्रयोग करें।
2. तुलसी के 5 पत्ते, 5 मुनक्का, 1 बड़ी पीपली (छोटे बच्चों को 1/4 पीपली व बड़े बच्चों को 1/2 पीपली) को कूटकर रस निकाल लें या सिल पर पीसकर पेस्ट बना लें। छोटे बच्चों को 1/2 चम्मच व बड़े बच्चों को एक चम्मच सुबह-शाम को दें।
3. यदि फुंसियों में ज्यादा खुजली हो तो छोटे बच्चों को 1/4 चम्मच और बड़े बच्चों को 1/2 चम्मच हल्दी को 1/2 गिलास दूध में मिलाकर दिन मे दो बार देने से लाभ होगा। तुलसी के 5 पत्तों को चाय बनाते समय उबाल लें और छानकर पीने से दर्द, खुजली में राहत मिलती है।
4. नीम की ताजा पत्तियों को मरीज के बिस्तर पर या आसपास रखने से कीटाणु नष्ट हो जाते हैं। इसके अलावा मरीज को खाने में नमक वाली और गर्म चीजें देने की बजाय राबड़ी व ठंडे तरल पदार्थ दें।

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