गुरुवार, 7 अप्रैल 2016

गैस ट्रबल / गैस्ट्रो इण्टेस्टाइनल विकृति आयुर्वेदिक चिकित्सा

आधुनिक परिवेश की जीवन शैली इतनी परिवर्तित हो गई है कि किसी व्यक्ति को समय पर भोजन का समय ही नहीं मिलता। किसी पार्टी में भोजन करते-करते रात के दो बज जाते हैं । फिर होटलों की पार्टियों में अधिक मिर्च-मसालों व अम्लीय रसों से बने व्यंजन खाने से पाचन क्रिया विकृति होती है तो गैस ट्रबल अर्थात् गैस्ट्रो इण्टेस्टाइनल की विकृति होती है ।
गैस्ट्रो इण्टेस्टाइनल से 85 प्रतिशत स्त्री-पुरुष पीडि़त रहते हैं । बाजार में छोले-भूठरे, गोल-गप्पे, चाट-पकौड़ी और समोसे-कचैड़ी खाने वाले गैस ट्रबल से अधिक पीडि़त होते हैं। गैस की विकृति में यदि चिकित्सा मंे विलम्ब किया जाएं और आहार में चटपटे खाद्य पदार्थों का सेवन किया जाएं तो पेट में अल्सर हो सकता है । गैस की विकृति उच्च रक्तचाप, हृदय रोग, गुर्दों की विकृति हो सकती है । गैस विकृति को जानने के लिए भोजन की पाचन क्रिया के सम्बन्ध में जान लेना आवश्यक है । भोजन को पचाने में आमाशय को तीन से पाँच घण्टे लगते हैं । प्रोटीन खाद्य पदार्थों को पचाने में अधिक समय लगता है । जबकि कार्बोहाइड्रेट जल्दी पच जाते है। भोजन में वसायुक्त खाद्य पदार्थों की पाचन क्रिया देर से होती है । आमाशय में भोजन की पाचन क्रिया प्रारम्भ होती है । विभिन्न पाचक रसों की उत्पत्ति गैस्ट्रिक ग्लैण्ड से होती है । इन ग्लैण्डों से हाइड्रोक्लोरिक एसिड, टेनिन, पेप्सिन, लिपेज आदि पाचक रसों की उत्पत्ति होती है । हाइड्रोक्लोरिक एसिड प्रोटीन के साथ एक विशेष किस्म का रसायन का निर्माण करता हैं । भोजन की पाचन क्रिया में भाग लेने वाले सभी पाचक रस (एंजाइम) भोजन के विभिन्न पदार्थों को पचाने में सहायता करते हैं । टेनिन दूध को दही में परिवर्तित करता है । क्रीम व अण्डे की जर्दी में पाएं जाने वाली वसा (चर्बी) का लिपेज तोड़ कर पचाने में सहायता करता है । हाइड्रोक्लोरिक एसिड व प्रोटीन से मिले रसायन को पेप्सिन पचाने का कार्य करता है । पेप्सिन की सहायता से टेनिन से बनी दही की पाचन क्रिया सम्भव होती है। भोजन को पचाकर आमाशय तरल रूप में परिवर्तित करता है । गैस विकृति के अनेक कारण उत्पन्न हो सकते हैं । अम्ल पित्त (एसिडिटी) के कारण भी गैस की उत्पत्ति हो सकती है। अधिक मिर्च-मसालों व अम्लीय रसों से बने खाद्य पदार्थ शरीर में अम्ल की मात्रा बढ़ाकर गैस की उत्पत्ति करते हैं । शराब पीने वाले गैस ट्रबल से अधिक पीडि़त देखे जाते हैं । धूम्रपान की आदत भी गैस की विकृति को बढ़ाती है । जबकि सिगरेट पीने वाले कहते हैं कि सिगरेट पीने से उनकी गैस नष्ट हो जाती है । उनका ऐसा सोचना हानिकारक होता है । भोजन जब पेट में अधिक फर्मेण्टेशन क्रिया करता है तो पाचक रस बनते हैं और गैस बनने लगती है । चिकित्सकों के अनुसार आंतों की कोई विकृति भी गैस की उत्पत्ति कर सकती हैं । भोजन करते समय कोई व्यक्ति अधिक नर्वस होता है तो उसके पेट में अधिक वायु भर जाती है । डकार आने तक कुछ लोग भोजन करते जाते हैं। अल्सर से पीडि़त स्त्री-पुरुष गर-गर डकार लेने की कोशिश करते देखे जाते हैं । भोजन के साथ बार-बार जल पीने वाले व्यक्ति गैस के अधिक शिकार बनते हैं । पूरी तरह पका नहीं होने पर भोजन करने पर गैस की शिकायत बढ़ सकती है । ऐसे अधपके भोजन में बैक्टीरिया बढ़ जाते हैं और गैस की उत्पत्ति करते हैं । स्टार्च वाले खाद्य पदार्थ अधिक गैस उत्पन्न करते हैं । आलू, प्याज, दालें, फलियाँ, चुकंदर, मूली, फूलगोभी, अंगूर, केला आदि खाने से गैस अधिक बनती है । होटल में बने खाद्य पदार्थों के खाने से गैस की विकृति हो सकती है ।

आयुर्वेद औषध् चिकित्सा:-
गैस की उत्पत्ति का कारण ज्ञात करके उसकी चिकित्सा करनी चाहिए । रोगी व्यक्ति को सबसे पहले कब्ज नष्ट करने के लिए औषधि लेनी चाहिए । कब्ज के कारण उत्पन्न गैस की विकृति सरलता से नष्ट होती है ।
– उदावर्त हर गुटिका, गैसान्तक वटी में से कोई एक औषधि सेवन करने से गैस की विकृति नष्ट होती है ।
– लशुनादि वटी 1 या 2 गोली भोजन करने के बाद हल्के गर्म जल के साथ सेवन करने से गैस रोग नष्ट होता है ।
– रविसुन्दर वटी की 1-1 गोली दिन में दो बार हल्के गर्म जल के साथ सेवन करने से अजीर्ण, मंदाग्नि, उदर शूल, पेट में गैस भरने की विकृति नष्ट होती है ।
– शरीर में वायु अधिक हो जाने पर हृदय की धड़कन बढ़ जाती है । ऐसे समय रोगी बेचैन हो उठता है । अर्जुनारिष्ट 15 से 25 ग्राम मात्रा में लेकर इतना ही जल मिलाकर भोजन के बाद सेवन करने से पेट में वायु भरने की विकृति नहीं होती हैं ।
– हिंग्वाष्टक चूर्ण 3-3 ग्राम मात्रा में दो-तीन बार हल्के गर्म जल के साथ सेवन करने से गैस की विकृति से छुटकारा मिलता हैं ।
– शिवाक्षार पाचक चूर्ण 2 से 4 ग्राम मात्रा में दिन में दो बार भोजन के बाद हल्के गर्म जल के साथ सेवन करने से अजीर्ण, आध्मान (अफारा), गैस्ट्रिक ट्रबल आदि नष्ट होते हैं ।
– भोजन के बाद 15 से 25 ग्राम मात्रा में इतना ही जल मिलाकर द्राक्षासव का सेवन करने से गैस विकृति नष्ट होती है । पाचन क्रिया भी तीव्र होती हैं ।

घरेलू चिकित्साः-
-लहसुन की एक या दो कलियां शुद्ध देसी घी में भून कर खाने से गैस की विकृति का निवारण होता है ।
-हरड़, बहेड़ा और आंवला से निर्मित त्रिफला चूर्ण 3 से 5 ग्राम मात्रा में रात्रि में हल्के गर्म जल के साथ सेवन करने से कब्ज के साथ गैस का अंत होता हैं ।
-अजवायन और काला नमक 10-10 ग्राम मात्रा में कूट कर रखें । 3-3 ग्राम चूर्ण हल्के गर्म जल के साथ दिन में दो बार सेवन करने से गैस का निवारण होता है ।
-सनाय की पŸाी 3 ग्राम मात्रा में लेकर, 250 ग्राम दूध में उबालकर, छानकर पीने से गैस नष्ट होती है ।
-लवण भास्कर चूर्ण 3 ग्राम मात्रा में भोजन के बाद ताजे जल के साथ सेवन करने से बहुत लाभ होता हैं । मंदाग्नि, अजीर्ण और कब्ज भी नष्ट होती है ।
-हरड़ 50 ग्राम, पिप्पली 40 ग्राम और निशोथ 10 ग्राम कूट कर चूर्ण बनाकर रखें । प्रतिदिन 3-3 ग्राम चूर्ण गुड़ के साथ खाकर जल पीने से गैस विकृति नष्ट होती है ।
-अर्जुन वृक्ष की छाल को कूट कर 20 ग्राम चूर्ण को जल में देर तक उबाल कर क्वाथ बनाएं । इस क्वाथ को छान कर सुबह-शाम सेवन करने से गैस विकृति से छुटकारा मिलता है ।

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