सोमवार, 26 दिसंबर 2016

*MANAGEMENT OF PID* *(कुक्षि/गर्भाशय-शोथ चिकित्सा)*

*MANAGEMENT OF PID*
*(कुक्षि/गर्भाशय-शोथ चिकित्सा)*
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एक अनुमान के मुताबिक, लगभग 1.5 प्रतिशत युवा (किशोरियों व पहली बार माँ बनने वाली) महिलाओं को हर वर्ष कुक्षि/गर्भाशय-शोथ (Pelvic inflammatory disease - PID) होती है। दुर्भाग्यवश इनमें से कई महिलाओं को बाद में वन्ध्यत्व (Infertility) हो जाता है।

*हेतु व सम्प्राप्ति (Etio-pathogenesis):*

अनेकों प्रकार के जीवाणु (Bacteria) गर्भाशय (Uterus), गर्भाशय-नलिकाओं (Fallopian tubes), व डिम्बाशयों (Ovaries) में संक्रमण पैदा करके इन अवयवों में शोथ पैदा करते हैं, जिसे कुक्षि/गर्भाशय-शोथ (PID) कहते हैं।

*रूप (Clinical manifestations):*

अधिकांश युवा महिलाओं को आरम्भिक अवस्था में प्रायः कोई कष्ट नहीं होता व उन्हें मालुम ही नहीं पड़ता कि उनके प्रजनन अंगों (गर्भाशय, गर्भाशय-नलिकाओं, व डिम्बाशयों) में किसी प्रकार की कोई ख़राबी है।

रोग बढ़ने अथवा जीर्ण होने पर निम्नलिखित कुछ अथवा सभी कष्ट हो सकते हैं -

● कुक्षि-शूल (Lower abdominal pain);
● योनि-स्राव (Vaginal discharge);
● ज्वर (Fever);
● मूत्रदाह (Burning with urination);
● कष्ट-मैथुन (Painful coitus); व
● अनियमित आर्तव (Irregular menstruation)।

*उपद्रव (Complications):*

सम्यक् चिकित्सा न करने पर निम्नलिखित उपद्रव होने की सम्भावना रहती है -

● वन्ध्यत्व (Infertility);
● अस्थानिक गर्भावस्था (Ectopic pregnancy);
● जीर्ण कुक्षि-शूल (Chronic pelvic pain); व
● विषार्बुद (Cancer)।

*आदर्श चिकित्सा (Treatment protocol):*

कुक्षि/गर्भाशय-शोथ (PID) की सम्यक् चिकित्सा करना आवश्यक है। ऐसा न करने पर रोग जीर्ण रूप धारण कर लेता है, जिससे बाद में उपरोक्त कई प्रकार के उपद्रव होने की प्रबल सम्भावना रहती है ।

निम्नलिखित आदर्श चिकित्सा (Treatment protocol) के अनुसार चिकित्सा करने पर अपेक्षित लाभ मिलने की अधिक सम्भावना रहती है -

I. संक्रमणहर औषधियाँ (Anti-infective / antibacterial drugs);
II. शोथहर औषधियाँ (Anti-inflammatory drugs);
III. गर्भाशय-बल्य औषधियाँ (Uterine tonics);
IV. बीज-बल्य औषधियाँ (Drugs to promote ovulation); व
V. रसायन औषधियाँ (Antioxidants)।

*I. संक्रमणहर औषधियाँ (Anti-infective / anti-bacterial drugs):*

निम्न औषधियों को अधिकतम सहनीय मात्रा (Maximum tolerated dose) में तथा लम्बे समय (6 सप्ताह से 6 माह) तक प्रयोग करने पर, प्रायः अपेक्षित लाभ मिल जाता है -

1. चिरायता, अतिविषा, गन्धक, यशद
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2. ताम्र (भस्म / आरोग्यवर्धिनी);
3. मल्ल (सिन्दूर / समीरपन्नग रस);
4. पारद (रससिन्दूर / हिंगुल);
5. गुग्गुलु (शुद्ध / कैशोर / पञ्चतिक्तघृत);
6. दशमूल (क्वाथ / अरिष्ट);
7. मञ्जिष्ठा (महामञ्जिष्ठादि क्वाथ);
8. सारिवा (वटी / सारिवादि अरिष्ट);
9. निम्ब (पञ्चतिक्तघृत);
10. हरिद्रा (चूर्ण); इत्यादि।

_नोट: ताम्र, मल्ल, नारद आदि विष द्रव्यों को सहनीय मात्रा में ही दें तथा हर 45 दिन के बाद एक सप्ताह तक बन्द करें। इन्हें प्रयोग करते समय आमाशय-शोथ होने पर शीतल औषध व आहार दें। हर माह यकृत् परीक्षा (LFT) व वृक्क परीक्षा (KFT) कराते रहें। किसी भी प्रकार की यकृत् अथवा वृक्क में विकृति के संकेत आने पर औषधियाँ तत्काल बन्द करके उचित चिकित्सा करें।_

*II. शोथहर औषधियाँ (Anti-inflammatory drugs):*

1. शल्लकी, एरण्डमूल, जातीफल
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2. गुग्गुलु (शुद्ध / कैशोर / शिग्रु / महायोगराज );
3. दशमूल (क्वाथ / अरिष्ट);
4. हरिद्रा (चूर्ण);
5. रास्ना (सप्तक क्वाथ);
6. शिग्रु (गुग्गुलु);

*III. गर्भाशय-बल्य औषधियाँ (Uterine tonics):*

1. अशोक, लोध्र, लज्जालु (Gynorm tablet) + उलटकम्बल, हीराबोल, घृतकुमारी
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2. शतावरी (चूर्ण / फलघृत) ।

*IV. बीज-बल्य औषधियाँ (Drugs to promote ovulation):*

1. पुत्रञ्जीव, शतावरी, शिलाजतु, त्रिवंग
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2. शिवलिंङ्गी (चूर्ण); इत्यादि।

*V. रसायन औषधियाँ (Antioxidants):*

1. शिलाजतु, आमलकी, मुक्ताशुक्ति, स्वर्णमाक्षिक, अभ्रक, यशद
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2. मुक्ताशुक्ति, आमलकी, अभ्रक, यशद
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